असाधारण संगीतकार ओपी नैय्यर के अनसुने किस्से

भारत में ऐसा कोई संगीतकार न था जो अपनी फिल्मों में कम से कम एक गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में न रखना चाहता हो। लेकिन यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि असाधारण प्रतिभा के धनी व विख्यात संगीतकार ओमकार प्रसाद नैय्यर जो ओपी नैय्यर के नाम से अधिक जाने जाते हैं, ने कभी भी लता की आवाज़ का इस्तेमाल अपनी बनायी धुनों के लिए नहीं किया, यह अलग बात है कि लता की बहन आशा भोंसले की आवाज़ में उन्होंने सैंकड़ों सदाबहार गीत रिकॉर्ड कराये। नैय्यर लता को इतना नापसंद करते थे या उनका विरोध करते थे कि मध्य प्रदेश सरकार जो पुरस्कार लता के नाम पर देती है उसे भी उन्होंने लेने से इंकार कर दिया था। लता के बॉलीवुड में अनेक संगीतकारों व गायकों (विशेषकर मुहम्मद रफी) से विवाद, तकरार व मतभेद हुए, जिनका समय के साथ खात्मा भी हो गया, लेकिन जो प्रतिद्वंदिता व कड़वाहट नैय्यर और लता के बीच थी वह कभी समाप्त न हो सकी और दुनिया बेहतरीन धुनों व शानदार आवाज़ के संगम से वंचित रही। 
आखिर दोनों के बीच यह दुश्मनी व नफरत क्यों हुई? एक स्वतंत्र संगीतकार के रूप में नैय्यर की पहली फिल्म ‘आसमान’ थी। इस फिल्म में लता को गाने के लिए अनुबंध किया गया था। नैय्यर व उनके बेकग्राउंड साजिंदे रिकॉर्डिंग करने के लिए घंटों तक लता की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन वह नहीं आयीं। नैय्यर ने कसम खायी कि उनकी फिल्मों में लता कभी गाना नहीं गायेंगी। लता ने दावा किया था कि वह नैय्यर के स्टूडियो इसलिए नहीं पहुंच पायीं क्योंकि वह एक अन्य रिकॉर्डिंग में व्यस्त हो गईं थीं। यह घटना 1950 के दशक के शुरू में हुई थी और इसके कारण जो गलतफहमी उत्पन्न हुई वह कभी खत्म न हो सकी बल्कि समय के साथ अधिक तीव्र होती चली गई। 
लता की बहन आशा भोंसले के साथ नय्यर ने बहुत लम्बे समय तक काम किया, लेकिन इस संबंध का अंत भी कड़वाहट में हुआ और फिर इन दोनों ने भी कभी साथ काम नहीं किया। आशा व नय्यर की पहली मुलाकात 1952 में ‘छम छमा छम’ गीत की रिकॉर्डिंग पर हुई थी। उस समय तक आशा अपनी बड़ी बहन लता के साये में रहती थीं। नय्यर ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह अपना व्यक्तिगत रास्ता स्वयं बना सकती हैं। नैय्यर के मार्गदर्शन में आशा ने अपनी स्वतंत्र व आकर्षक शैली विकसित की। कैबरे-शैली गायन में भी उन्होंने महारत हासिल की और उसमें प्रेम का भाव वह लेकर आयीं। नय्यर के संगीत निर्देशन में जो उन्होंने मुहम्मद रफी के साथ युगल गीत गाये वह सभी अपने समय में चार्टबस्टर थे। ‘कश्मीर की कली’ व ‘तुमसा नहीं देखा’ के गीत तो आज तक लोगों की ज़बान पर हैं। ‘नया दौर’ का युगल गीत ‘उड़ें जब जब जुल्फें तेरी’ को कौन भूल सकता है, जिसमें तीनों नय्यर, रफी व आशा ने कमाल कर दिया था। 
लेकिन लम्बे प्रोफेशनल साथ के बावजूद 1972 में नय्यर व आशा कड़वी यादों के साथ एक-दूसरे से अलग हो गये और फिर दोनों ने कभी भी साथ काम नहीं किया। दोनों का साथ अंतिम गीत ‘चैन से हम को कभी आप ने जीने न दिया’ था। इस गीत के लिए आशा को 1974 में फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ महिला गायिका का अवार्ड मिला था। नय्यर ने आशा की तरफ से यह अवार्ड स्वीकार किया, लेकिन उसे बाद में आशा को देने की बजाय रास्ते में ही फेंक दिया। अनुमान यह है कि दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता कायम हो गया था। नय्यर से अलग होने के बाद आशा का आरडी बर्मन के साथ गहरा पर्सनल व प्रोफेशनल रिश्ता रहा। 
बहरहाल, हमेशा सफेद कपड़ों व हैट के साथ सार्वजनिक स्थलों पर दिखायी देने वाले नय्यर का जन्म 16 जनवरी, 1926 को लाहौर में हुआ था। संगीत में उन्होंने कभी औपचारिक ट्रेनिंग हासिल नहीं की थी, लेकिन उन्होंने अपनी एक विशिष्ट शैली विकसित की और वह पंजाबी रिदम को मुंबई की फिल्मों में लेकर आये। नैय्यर के तीन भाई थे। बड़े भाई कर्नल जीपी नैय्यर सेना में डेंटिस्ट थे, उनका निधन 2010 में हुआ। फिर डा. एचपी नैय्यर फिजिशियन थे, उनका निधन 2005 में हुआ और सबसे छोटे भाई डा. पीपी नैय्यर भी फिजिशियन थे, उनका ऑस्ट्रेलिया में अपहरण हो गया था और तब से वह लापता हैं। नय्यर जब लाहौर रेडियो स्टेशन में गायक थे तो उनकी मुलाकात सरोज से हुई जो स्टेज डांसर थीं। सरोज ने ही ‘प्रीतम आन मिलो’ गीत के बोल लिखे थे। नय्यर व सरोज ने शादी कर ली, दोनों के तीन बेटियां सोनिया, अन्नपूर्णा व लक्ष्मी  और एक बेटा आशीष हुए। लक्सेम्बर्ग की एक्टर निहारिका रायजादा नैय्यर के भाई की पोती हैं। 
नैय्यर इतने तुनक मिज़ाज थे कि 1979 में अपने परिवार के चर्चगेट, मुंबई के मकान से अलग हो गये। पहले होटल में रहने लगे और फिर 1989 से विरार में गायिका माधुरी जोगलेकर के साथ रहने लगे। इसके बाद वह ठाणे में रानी नखवा व उनके परिवार के साथ पेइंग गेस्ट के रूप में रहने लगे। उन्होंने अपनी मय्यत में अपने परिवार की शिरकत पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिल का दौरा पड़ने से 28 जनवरी, 2007 को उनका निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार में उनके परिवार का कोई सदस्य या बॉलीवुड का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि वह यादगार नगमें देने वाले महान संगीतकार थे और इसलिए भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 3 मई, 2013 को एक डाक टिकट जारी किया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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