सपनों जैसा आनंद है सिक्किम की यात्रा
सैर करने वाले मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। एक, जो बिना किसी योजना के यात्रा करते हैं। वह बिना किसी एजेंडा के ट्रिप पर निकल जाते हैं और प्रतीक्षा करते हैं कि नई लोकेशन उनके सामने अपने आप खुलती चली जायें यानी वह अनिश्चित व अनपेक्षित के लिए गुंजाइश रखते हैं। दूसरे प्रकार के पर्यटकों में इस किस्म का समभाव नहीं होता है। वह अपनी छुट्टियां मनाने के लिए निश्चित कार्यक्रम बनाते हैं और उसी के अनुसार चलने का प्रयास करते हैं। मैं खुद को दूसरी श्रेणी में रखता हूं।
अगर मेरी तरह आपकी परवरिश भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में हुई है तो छुट्टियां मनाने की सभी चर्चाओं में मसूरी आवश्यक रूप से शामिल होगा (जब हिल स्टेशनों का मूल्यांकन किया जा रहा हो) और गोवा का (अगर बात समुद्र के किनारे जाने की हो रही हो)। हालांकि बचपन में मैं कई बार मसूरी गया हूं, लेकिन उससे आगे का हिमालय क्षेत्र मेरे लिए रहस्य ही रहा है। इस कमी को पूरा करने के लिए मैं हाल ही में एक सप्ताह के लिए सिक्किम की यात्रा पर गया। मैंने अपना कार्यक्रम बनाने में अधिक समय बर्बाद नहीं किया और जल्दी से इस पहाड़ी राज्य की टॉप साइट्स पर निशान लगा दिया- नाथूला पास, गुरुडोंगमार झील और युमथांग घाटी।
फरवरी में गंगटोक में कड़ाके की ठंड पड़ती है। मैं सुबह के समय इस शहर में पहुंचा था, उद्देश्य सिर्फ इसे देखना ही नहीं था बल्कि मैं उम्मीद कर रहा था कि मैं बर्फीली चोटियों के बीच होऊंगा। मैंने इस समय यहां जाने का इसलिए निर्णय लिया था ताकि सिक्किम को उसके जाड़े के पूर्ण वैभव में देख सकूं, यह जानते हुए भी कि कुछ चुनौतियों का अवश्य सामना करना पड़ेगा। कम तापमान और तेज़ ठंडी हवाएं जो आंखों में पानी ले आती हैं- यह कीमत थी जो मुझे चुकानी थी, अगर मुझे बर्फीले रास्तों को देखना था बर्फीले मैदानों में खिलवाड़ करना था। ज़ाहिर है, इस मोलभाव की प्रकृति परवाह नहीं करती है।
ठंडे और ग्रे गंगटोक ने मेरा स्वागत किया। बादल भरे आसमान में सूरज तो बस एक सुझाव था और देर शाम तक मेरे मुंह से कार्बन डाइऑक्साइड गहरे जमे धुएं की तरह ऐसे निकल रही थी जैसे मैं चेन स्मोकिंग कर रहा हूं। सिक्किम की राजधानी में मैंने बाज़ारों और मठों को देखा, दिन में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए रोशनी की बौछार हो जाती थी। मेरे लिए आकर्षण के स्पॉट्स वह थे, जहां से मैं दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी (8,586 मी) कंचनजंगा को बिना किसी बाधा के देख सकूं। जब मैं एक ऐसे ही स्पॉट पर पहुंचा तो मेरे गाइड (जो चालक की भूमिका में भी था) ने धुंध की एक मोटी परत की ओर इशारा करते हुए कहा कि जब आसमान साफ होता है तो दूर से ही कंचनजंगा को धूप में नहाते हुए देखा जा सकता है। मैंने अफसोस के साथ उसकी बात को स्वीकार किया। मैंने धुंध भरे क्षितिज को कई बार अपनी आंखों से भेदने का प्रयास किया, लेकिन अफसोस कि मैं नाकाम रहा, कंचनजंगा दिखायी नहीं दिया। मैं हताश होटल लौट आया।
अगली सुबह मुझे नाथू ला जाना था। गाइड ने बताया कि भारी बर्फबारी की वजह से सड़क बंद हो गई है। नाथू ला जाने के लिए पर्यटक परमिट लेना पड़ता है, वह अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। मेरी हॉलिडे योजना पर नौकरशाही की गाज गिर गई। इससे अगले दिन मुझे बताया गया कि गुरुडोंगमार झील भी नहीं जाया जा सकता। सड़कों पर से बर्फ हटाने में कई दिन लगेंगे। मुझे सिक्किम के जाड़ों का अच्छा स्वाद मिल रहा था। जब मैं उत्तरी सिक्किम में छोटे से टाउन लाचुंग जा रहा था तो मेरे गाइड को मुझ पर रहम आया और वह बोला, ‘जब आप इतनी दूर आ ही गये हैं तो मैं आपको बर्फ दिखाये बिना नहीं जाने दे सकता।’ हम एक पतली, नागिन की तरह लहराती पगडंडी पर पहाड़ की तरफ जाने लगे।
जल्द ही ढलान पर कोनिफेर (शंकुधर वृक्ष) ऐसे दिखायी देने लगे जैसे उन पर बूरा छिड़क दिया गया हो और जैसे जैसे हम ऊपर चढ़ते गये पेड़ तुषारावरण (फ्रॉस्ट) से मोटे होते चले गये। सड़क के दोनों किनारों पर कीचड़दार बर्फ जमा हो गई थी। पहाड़ों पर कारपेट की तरह बर्फ जम गई थी, पूजा ध्वज फड़फड़ा रहे थे, शांत पुल के नीचे नदी बह रही थी। मैं इन्हीं यादों के साथ घर लौटकर भी खुश रहता, लेकिन सिक्किम के मौसम देवताओं को अब मुझ पर दया आ गई थी, वह उदार हो गये थे।
अगली दोपहर मेरी खिड़की के बाहर की दुनिया अचानक धुंधली हो गयी। हजारों रुई की गेंदें आसमान में तैर रही थीं। मुझे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। मैं होटल के कमरे से बाहर निकल आया। एक सप्ताह की निराशा के बाद मैं स्नोफॉल देख रहा था। रातभर बर्फबारी होती रही और अगली सुबह भी। लाचुंग बदल गया था। हर जगह बर्फ की मोटी परत जम चुकी थी। जब हम गंगटोक लौट रहे थे तो बर्फ के टुकड़े हमारी कार पर गिर रहे थे। गंगटोक से घर लौटने पर मैं सोचने लगा कि जो यतन से कार्यक्रम बनाया था वह तो ध्वस्त हो गया, लेकिन जो अनिश्चित व अनपेक्षित देखने को मिला वह सुंदर और यादगार था। अब मैं पर्यटकों की पहली श्रेणी में आ चुका था।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर