कहानी-सात घंटे

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)

मीना ने जवाब दिया, ‘ठीक है, ऐसा ही होगा। बस मेरी एक बात तुम्हें माननी होगी।’
‘कहिए’।
‘मुझे कुछ भी कहो, पर सुमि को कोई डराएगा या धमकाएगा नहीं।’
‘मैं भी यही चाहता हूँ। बहुत प्यारी बच्ची है। उसे पूरी तरह दहशत से दूर रखने के लिए ज़रूरी है कि सब कुछ वैसा ही हो, जैसा हमने कहा। वैसे बच्ची के मम्मी-पापा कहां हैं?’
‘दोनों आफिस के काम से बाहर गए हैं। एक साथ परसों लौटेंगे।’
‘फोन तो करेंगे।’
‘कुछ देर में, अपनी मीटिंग के बाद’
‘आप उनसे यही कहिए कि सब सामान्य है। बच्ची से बात न कराएं।’
‘यह मुश्किल है। क्या फोन स्विच आ़फ कर दूँ।’
‘नहीं इससे शक होता है।’
‘बच्ची से थोड़ी सी बात उसके मम्मी-पापा की करवा दूं।’
‘नहीं, वह छूटते ही बोलेगी कि दो अंकल आए हैं।’
‘कोई बात नहीं, मैं जैसे-तैसे निभाऊंगी।’
‘और किसी के आज घर आने की उम्मीद है।’
‘नहीं, इस बारिश में तो और भी कम।’
‘ठीक है, अब आप हमारे कहे अनुसार कुछ घंटे बिताईए, मेरा वायदा रहा कि आपकी नातिन को और आपको खरोंच तक नहीं आएगी।’
’मैं मोबाईल को अलमारी के ऊपर सुमि की पहुंच से बाहर रख रही हूँ। अब फोन बजने पर मैं ही उठा पाऊंगी, और मैं तुम्हारे कहे अनुसार मैनेज कर लूंगी।’
‘ठीक है, माताजी, जो भी तकलीफ दे रहे हैं, उसके लिए माफी।’
मीना चली गई तो बड़े आगंतुक ने अपने से छोटे को डांटा, ‘छोटू तूने इन्हें बुढ़िया कहकर बदतमीजी से बात क्यों की? तुझे मैंने कितनी बार समझाया है कि सही ढंग से बात किया कर, खास कर बुजुर्गों से।’
‘गलती हो गई, उस्ताद। मैंने सोचा कि डराने-धमकाने से जल्दी बात मानने लगेंगी।’
‘खैर जो हुआ सो हुआ अब आगे ठीक से बात करना।’
इतने में मीना एक टेऊ में चाय व मीठा लेकर आ गई। ‘लो बारिश तेज़ है, गर्मागर्म चाय अच्छी लगेगी।’
‘अरे माताजी, आपने तकलीफ.....’
‘इसमें तकलीफ क्या है बेटा। घर में कोई आए तो चाय नहीं पिलाते क्या?’
छोटू उठकर मीना के पास आया, ‘माताजी, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बदतमीजी से बात की।’
‘क्यों तुमने बुढ़िया ही तो कहा था और मैं बुढ़िया हूँ भी’, मीना ने हंस कर कहा।
अब उस्ताद ने कहा, ‘नहीं मांजी। आप एक बार कह दो माफ कर दिया। तभी हम चाय का स्वाद ले सकेंगे।’
मीना ने कहा- ‘चलो माफ किया।’ तो दोनों चाय का प्याला उठाने लगे।
इतने में एक झटके की आवाज़ हुई।
‘यह आवाज़ कैसी?’ चौकन्ना होकर उस्ताद ने अपनी जेब में हाथ डाला।
‘एक खिड़की की कुंडी खराब है। तेज़ हवा में खुल जाती है।’
‘माताजी जब भी वह खुले आप प्लीज बंद कर दें। हम खिड़की के पास नहीं जा सकते हैं।’
‘ठीक है मैं ऐसा ही करूंगी।’
मीना ने खिड़की बंद की व फिर सुमिता के पास चली गई।
‘सुमिता, मुझे तुमसे एक बात करनी है। मेरी एक छोटी सी बात मानोगी न?’
‘मेरी प्यारी-प्यारी नानी आपकी तो मैं हर बात मानूंगी।’
‘कोई भी फोन करे तो आज आप मत उठाना। मम्मी-पापा से भी आज बात मत करना। कल जी-भर, जितना चाहे करना।’
‘पर क्यों नानी।’
‘बेटी आज फोन वालों ने आकर कहा था कि आज कम से कम बात करो क्योंकि लाईन पर बहुत लोड है, यह लोड कम रखना है।’
‘ऐेसा भी होता है नानी? मैंने तो कभी नहीं सुना।’
’ऐसा होता है बेटी, बहुत कम होता है। इसलिए तुमने नहीं सुना। मैं मम्मी-पापा को बस एक मिनट में बता दूंगी कि आज यह प्राब्लम है, कल डिटेल में बात करेंगे।’
‘ठीक है नानी, आप कह देना।’
‘सुमिता आज थकी लग रही हो। तुम कुछ देर सो क्यों नहीं जाती?’
‘नहीं नानी, पहले होमवर्क पूरा करूंगी। पर आप को अपना वायदा याद है कि नहीं?’
‘कौन सा वायदा?’
‘आपने पक्का वायदा किया था कि जब तेज़ बारिश होगी तो पकौड़े ज़रूर खिलाओगी।’
‘ओह’ मीना ने हंस कर कहा- ‘अपने मतलब की बात तुम खूब याद रखती हो।’
सुमि भी हंस पड़ी।
‘अच्छा तुम होमवर्क करो, मैं पकौड़े बनाती हूँ। पर पर इस बात का ध्यान रखना कि कोई भी बेल बजाए तो दरवाजा मैं ही खोलूंगी।’
‘क्यों नानी?’
‘इसलिए कि बाहर दो बंदर घूम रहे थे। तेज़ बारिश है। कहीं दरवाजा खुलने पर अंदर न आ जाएं। इसलिए तुम आराम से अंदर बैठो, बाहर की जिम्मेदारी मेरी है।’
‘ठीक है नानी।’
इतने में फिर तेज़ हवा से खिड़की खुल गई तो मीना उसे बंद करने चली गई।
थोड़ी ही देर में गर्म पकौड़े की प्लेट सुमि के सामने थी।
‘ओह प्याज के पकौड़े, आई लव प्याज के पकौड़े। थैंक यू नानी।’
‘अभी प्याज के पकौड़े खा, फिर पालक और पनीर के भी मिलेंगे।’
‘पार्टी है नानी, यह तो पार्टी है।’ सुमि खुशी से झूम उठी।
थोड़ी देर बाद मीना ने एक प्लेट में अलग-अलग तरह के पकौड़े सजाए, कटोरी में चटनी रखी और दूसरे कमरे में जाकर कहा, ‘लो बेटा, सुमि ने बारिश में पकौड़ों की फरमाईश की तो मैंने कुछ पकौड़े तुम्हारे लिए भी बना दिए।’ ’ (क्रमश:)

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