मालिक का गुलाम

‘क्या बात है कालू, तुम उदास दिख रहे हो?’ लालू गधे ने कालू गधे से पूछा। 
‘राजा एक्सीडेंट में घायल हो गया है।’ कालू गधा रोआंसा होकर बोला। 
‘कैसे?’ लालू ने हैरानी से पूछा। 
‘अरे, कुछ मत पूछो।’ कालू गधा बोला,‘मालिक ने राजा को मोटरसाइकिल पर सामान लादकर दूसरे शहर भेजा था। न जाने कैसे मोटरसाइकिल गिर गई और राजा घायल हो गया।’ यह सुनकर लालू भी दु:खी हो उठा। राजा की सूरत उसकी आंखों के आगे नाच उठी। 
मालिक का छोटा बेटा है राजा। उसी की वजह से वे दोनों गधे आज यहां हैं वरना मालिक ने कब की उनकी छुट्टी कर दी होती। 
लालू का गुस्सा मालिक पर फूट पड़ा। जब से मोटरसाइकिल लाया है, उसने कालू और उसकी तरफ देखना ही बंद कर दिया है। जब देखो तब मोटरसाइकिल को पोंछता और चमकाता रहता है। बड़ा मतलबी है। मोटरसाइकिल आते ही ऐसे मुंह मोड़ लिया, जैसे गधों से उसका कोई वास्ता ही न हो। 
गधे बेचारे ईमानदारी से अपने मालिक की सेवा करते थे। उन्हीं की बदौलत तो उनका मालिक पैसे वाला हो गया था और उसने मोटरसाइकिल खरीद ली थी। लेकिन फिर वही मालिक मोटरसाइकिल को ही अपना सब कुछ समझने लगा। 
वह तो राजा ही था, जिसने उन्हें बिकने नहीं दिया वरना मालिक की जिद थी कि अब गधों का कोई काम नहीं है, उन्हें बेच देना चाहिए। राजा ने ही उसे ऐसा करने से मना किया। वही दोनों को चारा वगैरह खिलाता था। 
‘अब हमारा क्या होगा,कालू।’ लालू गधे ने कुछ घबराते हुए पूछा। 
‘होगा क्या, अब हमें चारा नसीब नहीं होगा। भूख से एक दिन हमारी जान निकल जाएगी।’ कालू ने गुस्से से कहा। 
लालू अचानक ही बोल पड़ा, ‘चलो, उस मोटरसाइकिल के पास। उसे फटकार लगाएं।’
कालू गधे ने सोचा, ‘आज बदला लेने का अच्छा मौका है।’ वह लालू गधे के साथ मोटरसाइकिल के पास चल दिया। जब मोटरसाइकिल थोड़ी दूर रह गई तो दोनों ने दौड़कर उसमें दुलत्ती मारी। 
मोटरसाइकिल घबरा गई, ‘क्यों भाइयो, अपने पैर तोड़ने का इरादा है क्या?’
‘अपने पैरों को तो नहीं, लेकिन तेरे हाथ-पैर तोड़ने का इरादा ज़रूर है। तेरी वजह से राजा घायल हुआ और आज हम मालिक के गुलाम बन गए हैं।’ कालू गुस्से से उबलता हुआ बोला। 
‘अरे भाई, मेरे कहने का मतलब है कि तुम मुझे मारोगे तो मुझ पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन तुम्हारे पैर टूट गए तो तुम्हें बड़ी परेशानी हो जाएगी।’ मोटरसाइकिल ने सफाई देते हुए कहा। 
‘अच्छा, तो तू अपने आपको इतनी ताकतवर समझती है।’ लालू गधा बोला। 
‘नहीं भाई, तुम मुझे गलत समझ रहे हो। मेरे कहने का मतलब तो यह है कि मुझे दु:ख-दर्द कुछ नहीं होता।’ मोटरसाइकिल ने लालू और कालू को समझाया। 
‘अच्छा, तुम कोई खास हाड़-मांस की बनी हो जो तुम्हें दु:ख-दर्द नहीं होता।’ लालू गधे ने कहा। 
‘मेरी बात का बुरा मत मानना। तुम लोग कुछ जानते नहीं, इसीलिए तो तुम्हें गधा कहा जाता है।’ मोटरसाइकिल ने जवाब दिया।
‘अरे, हम लोग तुम्हारी तरह किसी को दु:ख नहीं पहुंचाते। तुमने बेचारे राजा की क्या हालत कर दी है। दर्द से तड़प रहा है।’ कालू ने आंखें दिखाते हुए कहा। 
‘तो इसमें मेरी क्या गलती है?’ मोटरसाइकिल ने भी कुछ सख्ती से कहा, ‘तुम लोग ही बताओ मैं क्या कर सकती थी?’
‘तुम राजा को गिरने से तो बचा ही सकती थी।’ कालू ने कहा। 
‘अरे भाई, तुम लोग समझने की कोशिश क्यों नहीं करते? मुझ में और तुम में जमीन-आसमान का अंतर है। तुम ठहरे जानवर, मैं ठहरी मशीन। तुम में सोचने-समझने की शक्ति होती है। तुम लोग किसी को गिरने से बचा सकते हो। मैं तो खुद दूसरों की मदद से चलती हूं। किसी को गिरने से क्या बचाऊंगी। मुझ पर सवार मालिक चाहता है तो मैं चलती हूं, नहीं तो खड़ी रहती हूं।’ मोटरसाइकिल ने अपने बारे में बताया। 
कालू और लालू को लगा कि मोटरसाइकिल ठीक ही कह रही है। उसका सोचने-समझने से कोई वास्ता नहीं है। वे उसे अभी तक गलत समझ रहे थे। वह तो मशीन है, सिर्फ मशीन। उसे जैसे चलाया जाता है, वैसे ही चलती है। 
लालू गधा मन ही मन सोच रहा था, ‘हम जानवर ही सही, लेकिन इस मशीन से अच्छे हैं। अपनी बुद्धि से कुछ सोच-समझ तो सकते हैं। अपनी बुद्धि से सही-गलत का फैसला ले सकते है। यह तो दूसरों की गुलाम है। ऐसी गुलाम जो अच्छाई-बुराई का ख्यालकि, बिना चालक की मर्जी पर अंधी होकर चलती है और तब तक चलती रहती है, जब तक कि उसे रोका नहीं जाता।’ 
‘माफ करना मोटरसाइकिल बहन, हम दोनों तुम्हारी मजबूरी को नहीं समझ सके।’ लालू गधे ने कहा। 
‘भाई, तुम लोग अपने को मालिक का गुलाम कह रहे थे। अब तुम ही बताओ कि मालिक का गुलाम कौन है?’ मोटरसाइकिल ने पूछा। 
‘मालिक की गुलाम तो तुम हो, हम नहीं।’ लालू और कालू दोनों गधों ने एक साथ जवाब दिया। (सुमन सागर)

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