एकता कैसी हो?

एक ही मुहल्ले के पांच ऐसे लड़के थे, जो एक ही विद्यालय में पढ़ने जाया करते। मगर उनमें परस्पर मेल नहीं था। अतएव वे एक साथ मिलकर न तो विद्यालय जाते और न घर लौटते। पता नहीं, उनमें कैसा मनमुटाव था।
पलटू शरारती था। वह बलिष्ठ भी था। पढ़ता-लिखता नहीं। अपनी ताकत का उसे गुमान था। सोचता, पढ़-लिखकर क्या होगा। ताकत की धाक सब मानेंगे। उसने विद्यालय जाने वाले उन लड़कों की कमजोरी भांप ली, जो अकेले जाया-आया करते। फिर मौका पाकर एक-एक कर सभी को उसने परेशान करना शुरू कर दिया। ऐसा होने पर वह विद्यालय देर से पहुंचता। कभी यह तो कभी वह। घर लौटने पर भी ऐसा होता। फिर भी कोई परेशानी किसी को नहीं बताता। पलटू की मनमानी बढ़ती चली।
एक दिन श्वेत ने अपनी कक्षा के अध्यापक को पलटू की शरारत के बारे में बताया। विद्यालय देर से पहुंचने की वजह का जब वह जायजा ले रहे थे। अध्यापक ने कुछ देर सोचा। फिर बोले, ‘यह कहो कि तुम लोग उस राह से कितने लड़के विद्यालय आते हो? सभी खड़े हो जाओ।’
‘पांच, श्वेत बोला।
सभी अपनी जगह खड़े हो गए। अध्यापक के पूछने पर पता चला कि अन्य चारों के साथ भी अकेला पाकर शैतानी करता है। डराता-धमकाता है पलटू।
‘पलटू की शैतानी से बचने का एक ही तरीका है और वह है एकता।’ अध्यापक ने कहा।
‘एकता!’ सभी चौंक पड़े।
‘हां, एकता में बल है। बहुत बड़ी ताकत होती है।’
‘हमें करना क्या है?’ उदय ने पूछा।
‘एक साथ विद्यालय आओ और एक साथ विद्यालय से घर जाओ। तुम्हें एक साथ आते-जाते देखकर हो सकता है कि उसका हौसला पस्त हो जाए।’ अध्यापक ने आगे कहा, ‘इसके बावजूद भी अगर किसी एक के साथ वह बदसूलकी करें तो डरो नहीं, सभी मिलकर उसका डटकर मुकाबला करो। उसकी सारी हेकड़ी खत्म हो जाएगी। याद रहे, एकता कमजोरों की सबसे बड़ी ताकत होती है। यह मूलमंत्र अमल में लाओ।’
अगले दिन से पांचों लड़के आपसी मनमुटाव भूलकर एक हो गए। साथ मिलकर विद्यालय आने लगे। वापस घर के लिए भी साथ निकलते।
पांचों की एकता ने पलटू को चौंकाया। कुछ सोचने पर मजबूर किया। फिर एक युक्ति निकाली। किसी एक के साथ छेड़खानी शुरु कर कर दी। ऐसे करते ही सभी उस पर टूट पड़े ऐसी स्थिति के लिए पलटू तैयार नहीं था। पांचों ने मिलकर उसकी ऐसी धुनाई की कि फिर वह उन पांचों को दिखाई ही नहीं दिया।
अपनी कामयाबी देख पांचों विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ा। एकता की ताकत समझ में आयी। सफलता पर हर्षित हुए। 
धीरे-धीरे उन्हें अपनी एकता की ताकत पर अभिमान हो उठा। वे उसका दुरुपयोग करने लगे। वे किसी के बाग-बगीचे में घुस जाते और फले हुए आम, अमरुद, केले, पपीते आदि खाने लगते। विरोध करने पर वे अपनी एकता का परिचय देकर निकल जाते। किसी खोमचेवाले की खाद्य सामग्री पांचों मिलकर खा जाते और पैसा मांगने पर बाद में देंगे, कहकर टाल देते। लड़ाई-झगड़ा करने पर उतारु हो जाते। बेचारा खोमचावाला असहाय हो जाता।
पांचों विद्यार्थियों की शिकायतें जब अध्यापक जी के कानों में पहुंची तो वह गंभीर हो गए और एक दिन कक्षा में उन विद्यार्थियों को संबोधित कर कहा, ‘देखो, एक वह भी दिन था, जब तुम पांचों आपसी बैर-भाव और फूट की वजह से पलटू नाम के लड़के से तंग-परेशान रहा करते थे। वैसी स्थिति में मैंने तुम्हें एकता की ताकत के बारे में जानकारी दी। फिर उसे अमल में लाकर तुमने पलटू पर जीत हासिल की। उसकी शैतानी से तुम्हें छुटकारा मिला। अच्छी बात है।’
‘बिल्कुल।’ पांचों ने स्वीकारा।
‘लगता है, एकता की ताकत से तुम सभी अच्छी तरह परिचित हो गए।’ अध्यापक ने कहना जारी रखा, ‘आज सुनो, कैसी एकता अच्छी होती है और कैसी बुरी।’
‘कहिए।’ समवेत स्वर उभरा।
‘आत्मरक्षा के लिए जुटायी गयी एकता अच्छी ही नहीं, खूब ज़रुरी भी होती है। परोपकार के कार्यों के लिए बनी एकता भी बहुत अच्छी होती है।’ अध्यापक ने आगे कह, ‘और हां, दूसरों को पीड़ा-कष्ट या किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने वाली एकता कभी भी अच्छी नहीं हुआ करती। दरअसल यह एकता का दुरुपयोग है। एक तरह का अपराध है। ऐसी एकता बदनाम होती है। उसकी ताकत धीरे-धीरे क्षीण भी होती है क्योंकि उसके ढेर सारे शत्रु भी हो जाते हैं। ऐसी एकता से दूर रहनी चाहिए। अन्यथा कभी भी बुरे दिन का सामना करना पड़ सकता है। लेने के देने हो सकते हैं। ऐसे निन्दनीय कार्य से बचो।’
‘ऐसी बात है!’ पांचों में कोई एक उठ खड़ा हुआ।
‘बिल्कुल।’
‘हमें मालूम नहीं था। हम राह भटक गए थे। इसी वजह से एकता की ताकत का दुरुपयोग करने लगे थे। लगता है, आप तक हमारे कारनामों की शिकायत ज़रुर पहुंची होगी।’
मॉरे ईल एक खतरनाक समुद्री मछली है, जो नहाते हुए लोगों, गोताखोरों को मार डालती है। इसके बारे में यहां तक कहा जाता है कि यह पानी में अगर मनुष्य को अकेला पा ले तो उसे कंधों से पकड़ लेती है और घसीटकर पानी के भीतर ले जाती है और तब तक नहीं छोड़ती, जब तक वह मर नहीं जाता। मॉरे ईल के काटने पर बड़े और घातक घाव भी हो जाते हैं। 
इसकी लगभग 120 जातियां हैं। अधिकांश जातियों की मॉरे ईलें गर्म सागरों में मूगें की दीवारों के आसपास रहना पसंद करती हैं। यह खुले सागरों में कम मिलती है। इसकी कुछ जातियां विषैली होती हैं। सभी जातियों की शारीरिक संरचना में अंतर होता है। कुछ जातियों की लंबाई 15 सेंटीमीटर होती है जबकि कुछ जातियां 4 मीटर या इससे भी अधिक लंबी होती हैं। इसका सिर और शरीर का अगला भाग शेष शरीर की तुलना में ज्यादा भारी होता है। इसके गलफड़ों की थैली में एक छोटा सा छेद होता है। 
मॉरे ईल निशाचर है। यह दिन के समय आराम करती है और रात के समय सक्रिय होती है। यह पेटू मछली है और बहुत अधिक भोजन करती है। यह ऑक्टोपस खाती है। कुछ जातियों की मॉरे ईलें मृत और जीवित दोनों प्रकार के समुद्री जीवों को अपना आहार बनाती हैं। मॉरे ईल को सांस लेने के लिए लगातार मुंह से पानी अंदर लेते रहना पड़ता है, जिसके कारण यह केवल उसी शिकार को अपना आहार बनाती है,जिसे वह सरलता से निगल सके। 
मॉरे ईल का समागम और प्रजनन बड़ा रोचक होता है। समागम काल में नर और मादा दोनों के शरीर के रंग अधिक गहरे और चमकीले हो जाते हैं तथा मादा कुछ अधिक मांसल दिखाई देने लगती है। इस समय नर और मादा बहुत अधिक आक्रामक हो जाते हैं तथा मानव के निकट होने पर उस पर आक्रमण कर देते हैं। मॉरे ईल ताजे पानी की ईल के समान प्रजनन हेतु प्रवास नहीं करती। यह प्राय: मूंगे की दीवार के पास कुछ गहराई वाले स्थानों में समागम करती है। मादा मॉरे ईल समागम के बाद नर से अलग हो जाती है तथा शीघ्र ही बहुत बड़ी संख्या में अंडे देती है। इसके अंडों में योल्क की मात्रा बहुत अधिक होती है। कुछ समय बाद मॉरे ईल के अंडे परिपक्व होकर फूटते हैं तथा इनसे लारवे निकलते हैं। इसके नवजात लाखों की लंबाई 5 सेंटीमीटर मीटर से 10 सेंटीमीटर तक होती है एवं ये फीते के आकार के होते हैं।
मॉरे ईल को प्राचीनकाल से ही एक खतरनाक मछली समझा गया। खतरनाक और विषैली होते हुए भी प्राचीनकाल से ही विश्व के अनेक भागों में इसका शिकार किया जाता रहा है और इसका उपयोग भोजन के रूप में किया जा रहा है। हालांकि कुछ जातियां विषैली होती हैं, इसके बावजूद इसका खूब शिकार होता है। कभी कभी यह इतनी आक्रामक हो जाती है, अगर इसे पकड़ लिया जाता है तो यह उल्टा पकड़ने वाले पर ही हमला कर देती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
‘सभी अनुमान है।’ अध्यापक बोले।
‘समय पर आपने हमें सावधान कर दिया। अब हम गलत राह छोड़ देंगे और सही राह पकड़ेंगे।’
‘सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता।’ अध्यापक ने उसकी सराहना की। (सुमन सागर)

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