इन्सानी डर और अज्ञानता का शिकार हो रहे सांप

प्रकृति के सबसे रहस्यमयी जीवों में से एक सर्प यानी सांप भी है। अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिस्थितिकीय संदर्भों में इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सांपों को हम इंसान अकसर डर और घृणा की दृष्टि से देखते हैं। इस सोच को जितना जल्दी हो हमें बदल देना चाहिए, ऐसा सर्प विशेषज्ञों यानी हर हेर्पेटोलॉजिस्टों का मानना है, क्योंकि सांप हमारी पारिस्थितिकीय संतुलन के सबसे महत्वपूर्ण जीवों में से एक हैं। अगर ये नहीं रह जाएंगे तो इंसान के सामने अनेक समस्याएं उठ खड़ी होंगी। 
दरअसल सांपों को लेकर अपने देश भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अनगिनत मिथक फैले हुए हैं। लोगों के दिलोदिमाग में सांपों को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। यही कारण है कि लोग उन्हें देखते ही मार देते हैं। भारत में करीब 300 प्रकार के सांप पाये जाते हैं। लेकिन इन 300 सर्प प्रजातियों में से केवल 4-5 प्रजातियां ही ऐसी हैं, जो जानलेवा हैं। लेकिन इंसानों के दिलोदिमाग में सांपों को लेकर इस कदर डर, दहशत और घृणा भरी होती है कि किसी भी तरह के सांप को देखते ही लोग उसे तुरंत  मार डालते हैं।
सांपों पर पहले ही कई तरह के कहर टूटे हुए हैं। वनों की कटाई, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग, शहरीकरण और सांपों की बढ़ती तस्करी आदि कारणों से सांपों की आम ही नहीं जहरीली प्रजातियां भी बेहद संकट में हैं। अगर हम भारतीय संदर्भों में समझें तो सांप किसानों के मित्र हैं। अगर सांप न हों तो खेतों में चूहों की इतनी ज्यादा संख्या हो जाए कि ज्यादा से ज्यादा फसल चूहे ही चट कर जाएं। सांप पारिस्थितिकी तंत्र में प्रिडेटर यानी शिकार करने वाले जीवों के रूप में काम करते हैं, जिस कारण जैव विविधता में संतुलन बना रहता है। 
सर्प पर अनेक वैज्ञानिक विभिन्न विश्वविद्यालयों, संग्रहालयों, वन विभाग आदि में सांपों को लेकर जागरूकता दिवस या सैमीनार का आयोजन करते हैं। इस दिन सांपों की प्रदर्शनी लगायी जाती है, सर्प दर्शन शिविर आयोजित किए जाते हैं, साथ ही आम और खास लोगों को सर्प विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है कि किस तरह सांप इंसान का शत्रु नहीं बल्कि मित्र है। सवाल है क्या इस दिन का कोई खास असर पड़ा है? वैज्ञानिकों और सर्प विशेषज्ञों द्वारा आम लोगों को समझाये जाने का क्या असर हुआ है और क्या अब सांप पहले से ज्यादा सुरक्षित हैं? पूरी तरह से तो नहीं। मगर यह बात माननी होगी कि हाल के सालों में सांपों को लेकर पहले के जैसी अज्ञानता, दहशत और घृणा अब नहीं रही। कम से कम पढ़े लिखे लोग अब मानने लगे हैं कि सांप इंसान का दुश्मन नहीं, उसका दोस्त है। लेकिन यह भी सच है कि आज भी लोगों में यह जागरूकता बहुत कम आयी है। सिर्फ मुट्ठीभर लोग ही सांपों को लेकर हाल के सालों में अपने विचार बदल सके हैं और उनमें भी शहरी और शिक्षित लोगों के बीच ही यह सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।
जबकि सांपों को लेकर यह संवेदना और मित्रता का भाव शहरों से ज्यादा गांवों में लोगों के लिए ज़रूरी है। क्योंकि सांपों की अधिकतम आबादी, गांवों और जंगलों में ही मौजूद है। हालांकि अब धीरे-धीरे इन जगहों में भी सर्प मित्र संगठनों का विस्तार हो रहा है। ये सर्प मित्र लोगों को सांपों से मित्रतापूर्वक परिचय कराने के लिए इनके घरों में जब सांप घुसते हैं तो ये उन्हें इनको मारने से मना करते हैं और कहते हैं, आप तुरंत हमें बुलाएं, हम इनको पकड़कर आपके डर और आपकी दहशत से बहुत दूर ले जाएंगे और ऐसा हो भी रहा है। हाल के सालों में हजारों सर्प मित्रों ने आम लोगों द्वारा सांपों को मारे जाने से बचाया है। इसलिए कहना चाहिए कि इस दिन और इस आह्वान का धीरे-धीरे असर हो रहा है।
हालांकि भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत सांपों की भी अनेक प्रजातियां संरक्षित हैं, जिनकी तस्करी या हत्या करना दंडनीय अपराध है। लेकिन अब के कुछ सालों पहले तक तो लोग ऐसे कानूनों को जानते भी नहीं थे। मानने की बात तो दूर ही है। लेकिन अब धीरे-धीरे लोग इस कानून को जानने लगे हैं और इसका किसी हद तक पालन भी करने लगे हैं। लेकिन इसके बाद भी सांपों के संरक्षण के संदर्भ में चुनौतियां किसी भी तरह से कम नहीं हुई हैं। आज भी गांवों में लाखों लोग ऐसे हैं, जो सांपों को देखकर इस कदर उत्तेजित हो जाते हैं कि वो जब तक सांप को मार न डालें, चैन की सांस नहीं लेते। दरअसल आज भी गांवों में सांपों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां और डर व दहशत मौजूद है, जिस कारण हम लोग बेहद प्यारे और मासूम जीव सांप की जान के दुश्मन बन बैठे हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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