चीन के विदेश मंत्री का दौरा

चीन के विदेश मंत्री वांग यी की दो दिवसीय भारत यात्रा काफी सीमा तक सफल रही है। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भेंटवार्ता की। इससे पहले एस. जयशंकर और अजीत डोभाल भी चीन गए थे और उससे भी पहले रूस के शहर कज़ान में विगत वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भी भेंटवार्ता हुई थी। चाहे दोनों देशों के संबंधों में सुधार आता तो दिखाई दे रहा है परन्तु भारत की ओर से बेहद सावधानीपूर्वक और सोच-समझ कर ही ये कदम उठाए जाते रहे हैं, क्योंकि विगत लम्बी अवधि से भारत का यह अनुभव रहा है कि चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
चीन ने हमेशा अपने हितों को ही दृष्टिगत रखा है। चाहे पिछले 75 वर्ष से दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध बने रहे हैं। किसी समय चीनी नेता चाओ इन लाई ने भारत आकर पंडित जवाहर लाल नेहरू से भावपूर्ण भेंट की थी और दोनों ने पंचशील के सिद्धांतों पर चलने की प्रतिबद्धता भी दिखाई थी परन्तु वर्ष 1962 में सीमाओं के मामले को लेकर चीन ने जिस तरह अचानक भारत पर हमला किया था, वह आश्चर्यजनक था और परेशान करने वाला भी। उसके बाद दोनों देशों में आपसी व्यापार और कूटनीतिक संबंध तो चलते रहे परन्तु दोनों के संबंधों में अविश्वास का आलम बना रहा, जो आज भी जारी है। चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण दक्षिणी चीन सागर में उसके दर्जन भर पड़ोसी देशों से विवाद हैं। भारत के साथ भी विगत लम्बी अवधि से चीन ने विवाद छेड़ा हुआ है और लगातार भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रच कर पाकिस्तान से गहन मित्रता निभा रहा है। वह उसकी प्रत्येक पक्ष से सहायता भी कर रहा है। इसके बदले में उसने सड़कों और बंदरगाहें बनाने को लेकर पाकिस्तान में व्यापक स्तर पर अपना निवेश कर लिया है, जिसके फलस्वरूप भारत के साथ टकराव में वह हमेशा पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है। उसकी आर्थिक सहायता करने के साथ-साथ उसे प्रत्येक तरह के आधुनिक हथियार भी देता रहा है। कुछ समय पहले भारत की ओर से किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के समय भी चीन डट कर पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है। उसने भारत के सीमांत मामलों को हमेशा लटकाये रखने को अधिमान दिया है, जिस कारण दोनों देश अक्सर टकराव की स्थिति में रहते हैं। वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सीमांत मामले को लेकर दोनों देशों के सैनिकों में कड़ा टकराव पैदा हो गया था, जिसमें दोनों देशों के अनेक सैनिक मारे गए थे। उसके बाद दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के समक्ष आ खड़े हुए थे। 
इसके बाद इस मामले को लेकर दोनों देशों के सैनिक और सिविल अधिकारियों के बीच दर्जनों बैठकें हुईं, जिनके बाद विगत वर्ष 21 अक्तूबर को दोनों देशों में यह समझौता हुआ कि वे स्थिति का सामान्य करने के लिए सीमा से अपने-अपने सैनिक पीछे हटा लेंगे, परन्तु इसके बावजूद अब तक दोनों देशों में उठा यह विवाद हल नहीं हो सका। इस सब कुछ के दौरान दोनों देशों में असंतुलित व्यापार चलता रहा है, जो अक्सर भारत के लिए घाटे वाला सिद्ध होता रहा है, परन्तु अब विशेष यत्नों से संबंधों में सुधार लाने के बाद दोनों देशों ने  एक-दूसरे के साथ कुछ सहयोग करने के लिए सहमति प्रकट की है। शंघाई कार्पोरेशन आर्गेनाइजेशन की वार्षिक बैठक इस बार अगस्त मास के अंत में चीन के तयानजिन शहर में हो रही है। भारत इस संगठन का महत्त्वपूर्ण सदस्य है। चीन की ओर से निमंत्रण दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस कान्फ्रैंस में जाने के लिए हरी झंडी दे दी है। अब चीनी विदेश मंत्री के भारत आने पर जिस तरह दोनों देशों के प्रमुखों ने एक दूसरे के प्रति सद्भावना और मेल-मिलाप के संकेत दिए हैं। उनसे आगामी समय में दोनों देशों के संबंध अच्छे होने की सम्भावना ज़रूर बनती दिखाई दी है। यदि ऐसा होता है तो यह स्थिति दोनों देशों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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