विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के कछुए 

कछुए क्लास रेप्टीलिया-उपक्लास ऐनेप्सिडा और आर्डर कीलोनिया के अंतर्गत आते हैं। कुछए की करीब 200 प्रजातियां होती हैं। इनमें समुद्री, अलवणीय तथा स्थलीय कछुए आते हैं। इनमें से कछुए की कुछ जातियां निम्न हैं।
स्थलीय कछुआ 
यह एशिया, अफ्रीका और यूरोप में पाया जाता है। यह प्राय: उष्ण कटिबंधीय एवं शीतोष्ण क्षेत्रों में दूर-दूर तक पाया जाता है। यह स्थलीय, दिवाचर एवं तृणभक्षी होता है हालांकि कभी-कभी यह कृमियों और कीटों का भी आहार कर लेता है। ठंडे मौसम में यह जमीन के भीतर शीतनिष्क्रियता की अवस्था में पड़ा रहता है। इसकी आयु 100 वर्ष या उससे भी कहीं अधिक होती है। इसका कवच अंडाकार होता है जिसके ऊपर सुविकसित श्रृंगीय शल्क बने होते हैं।
इसके पैर जमीन पर चलने के लायक बने होते हैं। उंगलियों के अंत में नखर होते हैं। टेस्ट्यूडो एलीगेन्स नामक कछुआ इसी श्रेणी में आता है। यह भारत एवं लंका में सूखे घास के मैदानों में पाया जाता है, यह गर्म मौसम में पानी के भीतर चला जाता है, और ठंडे मौसम में शीत निष्क्रिय हो जाता है। यह करीब एक फुट लंबा होता है। नर का आकार मादा से छोटा होता है।
समुद्री कछुआ 
 इसे हरा टर्टल भी कहते हैं क्योंकि इसकी वसा हरी होती है। इसे खाया भी जाता है। यह हिंद महासागर, प्रशांत और अटलांटिक महासागर में पाया जाता है। इसकी अगली टांगें पंख जैसे चप्पू की तरह होती हैं। पिछली टांगें नखरयुक्त होती हैं। शीर्ष और गर्दन पूरी तरह सिकोड़े नहीं जा सकते। पूंछ बहुत छोटी होती है। इसमें अस्थिल कटक नहीं पाये जाते। कवच में आस्टियोडर्म और श्रृंगीय शल्क होते हैं। 
समुद्री कछुए जल नहीं पीते बल्कि आंखों के ऊपर स्थित एक जोड़ी ग्रंथियों के द्वारा वे समुद्र से लवण प्राप्त करते हैं। ये अधिकतर समुद्री शैवालों पर निर्वाह करते हैं लेकिन मछलियां भी खा लेते हैं। ये समुद्र तट पर आ कर 200 तक अंडे देते हैं। कीलोन मिडास एवं कीलोन वर्गेटा नामक कछुए इसी श्रेणी में आते हैं। ये बंगाल की खाड़ी में पाये जाते हैं। इनकी ऊपरी सतह जैतूनी रंग की होती है जिस पर संगमरमर के जैसी बारीक धारियां बनी होती हैं। निचली सतह हल्की पीली होती  है।
नदी का कोमल कछुआ 
 इसकी अनेक जातियां हैं जो एशिया, अफ्रीका और उत्तर अमरीका की नदियों में पायी जाती हैं। इसके कवच के ऊपर श्रृंगीय शल्क नहीं होते बल्कि नरम खाल का एक आवरण होता है। कैरापेस तथा प्लैस्ट्रांन परस्पर जुड़े नहीं होते।  ट्रायोनिक्स गैंजोटिकस उत्तर भारत की नदियों में पाया जाता है। इसका कवच दो फुट लंबा होता है और यह ऊपर से जैतूनी तथा नीचे से पीला होता है। इसका शीर्ष नुकीला होता है। इस पर एक लंबी काली धारी बनी होती है। इसमें श्रृंगीय चोंच नहीं होती बल्कि मांसल होंठ होते हैं। कैरोपेस में दो न्यूकल अस्थिल प्लेटें होती हैं। हर टांग में तीन नखर होते हैं। एमिडा नरम कवच वाला कछुआ है। यह भारत की नदियों में पाया जाता है। इसकी पसलियां कैरोपस की पर्शकाप्लेटों से आगे तक निकल जाती हैं। (उर्वशी)

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