क्या यह दुनिया की अंतिम कार्य-संस्कृति है हाइब्रिड वर्क कल्चर ?

कार्य-संस्कृति या वर्क कल्चर की अवधारणा जिस 18वीं 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति से जन्मी है, क्या अब वह अपने विकास का सफर पूरा कर चुकी है? इन दिनों दुनिया के जाने माने औद्योगिक और कारोबारी शहरों में जिस हाईब्रिड वर्क कल्चर ने डेरा जमाया हुआ है, क्या वह अब तक के कुछ कुछ दशकाें बाद बार-बार बदलने वाली वर्क कल्चर का आखिरी पड़ाव है? क्या हाईब्रिड वर्क कल्चर वास्तव में कामकाजी मनुष्य की अल्टीमेट कार्य-संस्कृति है या फिर जैसे औद्योगिक क्रांति के बाद 20वीं सदी में टेलीफोन-टाइपराइटर वर्क कल्चर ने फैक्टरी वर्क कल्चर को गायब होने के लिए मजबूर कर दिया था और फिर टेलीफोन टाइपराइटर कार्य-संस्कृति को कम्प्यूटर ऑफिस वर्क की संस्कृति खा गई थी, जो बाद में इंटरनेट और आईटी बूम के बाद गायब हुई और रिमोट वर्क कल्चर ने जन्म लिया, जिसके बाद आयी कोविड महामारी और इसके गर्भ से निकली वर्क फ्रॉम होम की अंतिम परिणिति हाईब्रिड वर्क कल्चर ने अंतत: डेरा जमाया, तो क्या कार्य-संस्कृति का यह लंबा सफर अब खत्म हो चुका है या इसके बाद भी हमें अभी कई कार्य-संस्कृतियां देखने को मिलेंगी?
अगर विशेषज्ञों की माने तो यह हाइब्रिड वर्क कल्चर यानी आंशिक रूप से ऑफिस और आंशिक रूप से घर से रिमोट तरीके से किया जाने वाला ऑफिस का काम अंतिम दफ्तरी कार्य-संस्कृति नहीं है। हालांकि फिलहाल इसे भविष्य की वर्क कल्चर के रूप में पेश करते हुए इसके साथ दुनियाभर के ऑफिस कल्चर ने एक संतुलन बनाया हुआ है और इस संतुलन में बहुत कुछ ऐसा है जैसा अभी तक की बाकी कार्य-संस्कृतियों में नहीं था। मसलन यह बेहद लचीली कार्य-संस्कृति है। कर्मचारियों को कहीं से भी काम करने की आजादी होती है। साथ ही ज़रूरी सहयोग यानी कोलेबरेशन मीटिंग्स के लिए ये सब लोग दफ्तरों में भी हाज़िर हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उत्पादकता के लिहाज से यह अब तक की सबसे शानदार कार्य-संस्कृति है। क्योंकि घर से कर्मचारी दफ्तर के मुकाबले ज्यादा काम करते हैं और चूंकि इस कार्य-संस्कृति में कहीं से भी काम करने की छूट है, इसलिए वो अपनी मर्जी से जहां भी होते हैं, वहां से दफ्तर के काम को 200 प्रतिशत देते हैं। 
इसलिए यह कार्य-संस्कृति जहां कर्मचारियों को दफ्तर आने जाने की आजादी देती है, वहीं नियोक्ता यानी एम्प्लॉयर को ज्यादा प्रोडक्टिविटी और कम खर्च की सुविधा मुहैय्या करवाती है। हाईब्रिड वर्क कल्चर में कंपनियों का अपने दफ्तरों को चलाने में बिल्कुल मामूली खर्च होता है और उन्हें कर्मचारियों के नियमित ऑफिस आने के मुकाबले इस तौर तरीके में 15 से 20 प्रतिशत ज्यादा किया हुआ काम मिलता है, जिससे उनकी आय भी बढ़ती है। सबसे बड़ी बात यह है कि हर समय कंपनी में कर्मचारियाें की मौजूदगी से जो खर्च, जो दबाव रहता है, उससे भी मुक्ति मिलती है और सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरीके से आप देश और दुनिया के किसी भी कोने में बैठे कर्मचारियों को अपने यहां रख सकते हैं। कहने का मतलब हाईब्रिड वर्क कल्चर, वर्क-लाइफ बैलेंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य और उनका निजी जीवन भी बेहतर होता है।
लेकिन इतनी सारी सुविधाओं या कहें फायदों के भी विशेषज्ञों के मुताबिक यह दुनिया की आखिरी या अल्टीमेट वर्क कल्चर नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि बहुत ही जल्द एक नई वर्क कल्चर से दुनिया दो चार होने जा रही है। दरअसल वर्क कल्चर हमेशा समाज, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के हिसाब से बनती, बिगड़ती या बदलती रहती है। विशेषज्ञों के मुताबिक बहुत जल्द महज 2030 तक जिस नई वर्क कल्चर से दुनिया का सामना होने जा रहा है, वह है- पुली वर्चुअल वर्क कल्चर या मेटावर्ष कार्य स्पेस। जी हां, थ्रीडी वर्चुअल रिएलिटी के जरिये लोग कहीं बिना यात्रा किये भी भविष्य के कामकाजी जीवन में इस तरह एक-दूसरे से मिलेंगे जैसे वे आमने सामने बैठे हों। यही नहीं आने वाले दिनों में वर्क टास्क इंसानों की बजाय एआई पूरा करेगा और इंसान उसका सुपर विजन करेगा। साथ इस पर भी जोर शोर से बहस जारी है कि भविष्य का कार्य सप्ताह चार दिनों का हो या पांच दिनों का। दुनिया के कई देशों में फोर डे भी यानी चार दिनों के कार्य सप्ताह का ट्रायल चल रहा है। इस तरह भविष्य में कामकाजी घंटे और भी कम हो सकते हैं लेकिन भविष्य में कल्पना की जा रही है कि बहुत से काम सिर्फ सोच लेने से या दिमागी कमांड दे देने से ही पूरे हो जाएंगे, जो जाहिर है आज के किसी भी वर्क कल्चर मॉडल से सूट नहीं करता। इसलिए भविष्य की कार्य-संस्कृति जल्द ही सामने आयेगी और वह इस हाईब्रिड वर्क कल्चर से भी इतनी ज्यादा भिन्न होगी कि हाईब्रिड वर्क कल्चर भी उसे अजनबियों की तरह देखती रह जायेगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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