पत्नी की तीस लाख रॉयल्टी वाली ज़िद,
चतुरी जी अपने जीवन में इतना परेशान कभी नहीं हुए हैं। जितना वह आजकल चल रहे हैं। पहले बाहर परेशानी चलती थी तो घर में आकर चैन की सांस ले लेते थे। और यदि घर में तांडव मचा हुआ रहता था तो बाहर शरण ले लेते थे। ऐसे करके उनका जीवन आराम से चल जाता था। लेकिन आजकल उन्हें ना घर में चैन है और ना बाहर चैन है। घर में उनकी घरवाली उनका चैन से जीना मुश्किल किए हुए हैं। और बाहर उनके साहित्यिक मित्र उनका जीना मुश्किल किए हुए हैं।
सबसे पहले बता दूं चतुरी जी छोटे-मोटे लेखक हैं। दस जगह हाथ पांव मारते हैं। तो कहीं ना कहीं एक जगह प्रकाशित हो जाते हैं। कभी मुफ्त में तो कभी कुछ मिल भी जाता है। ले देकर पैसे देकर किसी तरह एक पुस्तक छपाई वह भी मित्रों को मुफ्त में बांटनी पड़ी रॉयल्टी मिलना तो उनके लिए बहुत दूर की बात थी। इस तरह उनके लेखन को बहुत ज्यादा इज्जत घर में नहीं मिलती थी। तो बहुत ज्यादा कुआदर भी नहीं होता था। यहां तक तो सब ठीक था। जिंदगी थोड़ी बहुत खिंच-खांचकर उनकी अच्छी खासी चल रही थी।
लेकिन जब से चतुरी जी ने अपनी पत्नी से बताया है कि साहित्य के होनहार लेखक को 30 लाख की रॉयल्टी मिली है। तब से सब कुछ उनकी दुनिया में उलट-पुलट हो गया है। तब से उनकी ज़िंदगी में तूफान आया हुआ है। वह तो उस घड़ी को कोसते हैं जब अपनी बीवी को यह 30 लाख की रॉयल्टी वाली बात बताई। अब सोचते हैं कि यदि नहीं बताई होती तो कम से कम ज़िंदगी तो आराम से चल रही होती। इतने तूफान तो ज़िंदगी में नहीं आए होते। लेकिन 30 लाख की रॉयल्टी वाली बात ही इतनी बड़ी थी कि वह इस बात को पचा नहीं पाए। और अपनी बीवी से जिक्र कर दिए। इंसान अपना दुख और सुख अपने जीवन साथी से ही तो बांटता है। चतुरी जी ने अपना दुख अपनी पत्नी से बांटा लेकिन उन्हें क्या पता था यह दुख बांटना उनके दुख को और बड़ा कर जाएगा।
अब उनकी पत्नी चाहती है कि चतुरी जी भी 30 लाख की रॉयल्टी मिले.. ऐसी पुस्तक लिखें। और सिर्फ चाहती नहीं है बल्कि जबरदस्ती लिखवाने पर उतारू भी है। चतुरी जी के तो होश फाख्ता हो गए। अरे.. ऐसे कैसे आसानी से 30 लाख की रॉयल्टी वाली कोई पुस्तक लिख देगा। यह तो साहित्य इतिहास की अद्भुत अलौकिक घटना है। जाने कितने ग्रहों का संयोग एक साथ बैठा होगा। तब जाकर लेखक महोदय के जीवन में ऐसी शुभ घड़ी आई है। और सब की किस्मत इतनी अच्छी होगी यह ज़रूरी तो नहीं है। लेकिन वेकिन पत्नी जी को कुछ नहीं सुनना है। उनकी पत्नी का साफ-साफ कहना है कि या सिर के बल खड़े होकर लिखो या उल्टे होकर लिखो जैसे भी लिखो लेकिन लिखो। बेचारे पत्नी के चंगुल में बहुत बुरी तरीके से फंसे हुए हैं। इस विपदा से बाहर निकलने का उन्हें कोई भी राह नहीं दिखाई दे रहा है।
चतुरी जी का तो जीवन संकट में पड़ चुका है। कहां तो छोटे-मोटे समाचार पत्र भी उन्हें छापने में नखरे दिखाते हैं। और कहां 30 लाख की रॉयल्टी मतलब एकदम आसमान छूने जितनी यह तो बात है। जो उनके लिए तो बिल्कुल संभव नहीं है। लेकिन वह पत्नी ही क्या जो किसी बात को समझ जाए। उसने तो कैकई के जैसे कोपभवन धारण कर लिया है। घर का चूल्हा चौका सब हड़ताल पर भेज दिया है। चाय नाश्ते को उठाकर ताखे पर रख दिया है।
अब तो कुछ भी हो लेकिन उसकी जिद है कि 30 लाख की रॉयल्टी वाली पुस्तक तो लिखनी ही पड़ेगी। पत्नी से जान छुड़ाकर घर से भागते है तो उनके साहित्य मित्र मंडली मुस्कुराते हुए ताने मार देती है। चतुरी जी अब आप कब 30 लाख की रॉयल्टी वाली पुस्तक लिख रहे हैं। और कब हम लोगों को पार्टी दे रहे हैं।
पत्नी धरने पर बैठी है और उधर उनके दोस्त अलग से ताने की दुकान खोल कर बैठे हैं। अब चतुरी जी को समझ नहीं आ रहा की कहां पर शरण ले। बेचारे अब तो ना घर के हैं ना घाट के हैं। ईश्वर उनके पत्नी से उनकी रक्षा करें।
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