बने रहो पगला, काम करेगा अगला

समय के साथ सरकारी सेवकों के संदर्भ में प्रचलित ‘बने रहो पगला, काम करेगा अगला’, ‘काम करो ना करो, काम की चिंता अवश्य करो’, ‘बारह बजे लेट नहीं, तीन बजे भेंट नहीं’ आदि अवधारणाओं में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है।
मूलत: सरकारी सेवक का अभिप्राय ऐसे ढोल से होता है, जिसे जनमानस एवं अफसरशाही सदृश डंडों के द्वारा सेवापर्यंत बजाया जाता है। भूलोक का ऐसा निरीह प्राणी, जो गुर्राने वाली शेरनी सदृश घरवाली एवं दहाड़ने वाले शेर सदृश अधिकारी के बीच अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए संघर्षरत रहता है। कार्यों के प्रति संवेदनशीलता के आधार पर सरकारी कर्मचारियों की मूलत: चार कैटेगरी हैं।
प्रथम कैटगरी के अंतर्गत मेहनतकश कार्यालय समर्पित शेषनाग रूपी कर्मचारी आते हैं, जिनके मस्तक पर कार्यालय अथवा विभाग का सम्पूर्ण भार टिका होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे कर्मचारी कोल्हू वाले बैल के मौसेरे भाई होते हैं।
इन्हें जीवन गुजारा भत्ता या वेतन तो एक व्यक्ति का मिलता है, किन्तु कार्य बोझ दर्जनों व्यक्तियों का होता है। समय से पहले कार्यलय आना एवं सबसे बाद में कार्यालय से वापस लौटना इनके दैनिक कार्य अवधि में शुमार रहता है। इनके जीवन में छुट्टी या रेस्ट का प्रावधान ना के बराबर होता है।
दूसरे वर्ग में ऐसे कर्मी आते हैं, जो कार्य अवधि में स्वयं को सबसे व्यस्त दिखाने का प्रदर्शन करते हैं। इनके टेबल पर फाइलों का अंबार लगा रहता है। छाती अथवा बगल में दो-तीन फाइलों को दबाए कार्यालय में चलते-फिरते भी नज़र आ जाते हैं। यदि ये बैंक, रेलवे या किसी अन्य सरकारी प्रतिष्ठान में कम्प्यूटर आधारित कार्य को देखते हों, तो हर दूसरे दिन इनके कम्प्यूटर सिस्टम में टेक्निकल प्रॉब्लम अथवा प्रत्येक आधा घंटा पर सर्वर डाउन या लिंक फेल की समस्या बनी रहती है। भविष्य के भरोसे काम को टालने वाले ऐसे कर्मी विभागीय जिम्मेदारी के हिसाब-किताब में भले ही कमजोर हों, किन्तु अपने वेतन भुगतान, एरियर, इंक्रीमेंट, टीए, डीए, राजपत्रित अवकाश, अर्जित अवकाश आदि का पूरा डेटा दिमाग में फीड किए रहते हैं। कार्यालय अवधि में बगल वाले टेबल के झा जी, ओझा जी, वर्मा जी, शर्मा जी, गुप्ता जी आदि से डीए-इंक्रीमेंट, पीएफ आदि के विषय पर हमेशा अपडेट होते रहते हैं। विलम्ब से कार्यालय आना एवं समय से पहले कार्यालय छोड़ना इनकी दिनचर्या में समाहित होता है। 
तीसरी कैटेगरी में धन की देवी लक्ष्मी के मानस पुत्र आते हैं। वैसे इनका मौलिक वेतन इतना कम होता है कि पारिवारिक खर्चा को लुढ़का पाना मुश्किल होता है किन्तु फाइल बढ़ाने, काम करवाने आदि के शर्तिया अनुबंध पर इतनी अतिरिक्त माया अर्जित कर लेते हैं कि इनका परिवार आलीशान बंगलो में आवासित एवं पजेरो/बोलेरो पर भ्रमण करता दिख जाता है। टेबल के नीचे से धनागमण की नीति इनके पूर्वजों की ही देन मानी जाती है।
चौथी कैटगरी में चापलूसी का लॉलीपाप चूसने वाले कर्मचारी आते हैं। पृथ्वी पर इनका अवतरण तेल और मक्खन के साथ होता है जिसका प्रयोग एवं उपयोग सरकारी सेवा के दौरान किया जाता है। सामान्यत: ऐसे कर्मचारी आत्ममुग्ध कार्यालय प्रधान या अधिकारियों की नाक का बाल होते हैं। साहब की मक्खन मसाज के अलावा अन्य कर्मचारियों के छींकने-खांसने से लेकर मल-मूत्र विसर्जन तक की क्षण-क्षण चुगली से साहब को अपडेट करना ही इनका परम कर्त्तव्य होता है। विभाग के अधिकांश कर्मचारी छुट्टी, वेतन आदि सहित अन्य बातों को साहब तक पहुंचाने के लिए चुगलेश्वर बाबू का ही सहारा लेते हैं।

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