पंजाबियों के दिलों पर राज करते थे राजवीर जवंदा

अस्पताल में 11 दिनों तक मौत से जंग लड़ने के बाद आखिरकार पंजाबी संगीत जगत का चमकता सितारा राजवीर जवंदा 8 अक्तूबर को सदा के लिए डूब गया। मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली और उनकी यह अंतिम सांस न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे पंजाबत, देश और दुनिया भर के लाखों संगीत प्रेमियों के दिलों को चीर गई। अभी कुछ ही दिनों पहले वे मुस्कुराते हुए कैमरे के सामने अपने गाने ‘तू दिस पैंदा’ की धुन पर झील किनारे खड़े थे और अब वही मुस्कान उनकी यादों में अमर हो गई है।
राजवीर जवंदा की कहानी एक साधारण गांव के युवक से लेकर लाखों दिलों के आइकन बनने तक की यात्रा है, जो संगीत, संघर्ष और समर्पण से भरी हुई थी। 26 सितम्बर को उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर वह आखिरी पोस्ट साझा की थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘कोई नहीं समझेगा, तुम और मैं क्या बातें कर रहे हैं। अगर मुझे तुम्हारी याद आए तो मुझे बता देना कि समय क्या हो गया है।’ किसे पता था कि यह वाक्य उनके जीवन का अंतिम संदेश बन जाएगा और यह दुनिया उनसे कहेगी, ‘अब तुम्हारा समय ठहर गया है, राजवीर।’
27 सितम्बर की सुबह उनके जीवन का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन बन गई। शिमला की ओर बाइक से जा रहे राजवीर की राह में अचानक दो सांड भिड़ गए। उनसे बचने की कोशिश में उन्होंने अपनी बाइक से नियंत्रण खो दिया और सामने से आ रही बोलेरो से टकरा गए। यह टक्कर इतनी भीषण थी कि उन्हें गम्भीर सिर, सीने और रीड़ की हड्डी में चोटें आई। उन्हें पहले सोलन के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर हालत बिगड़ने पर उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। डॉक्टरों ने हरसंभव प्रयास किया लेकिन 11 दिनों की जंग के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
राजवीर जवंदा केवल एक गायक नहीं थे, वे पंजाब की मिट्टी की आत्मा थे। उनके गानों में गांव की खुशबू थी, खेतों की हरियाली थी, मिट्टी की सच्चाई थी और पंजाबी जज्बातों की गहराई थी। ‘सिंघपुरा’, ‘मुंडा प्यारा’, ‘जट्ट दी जमीन’, ‘सरदारी’, ‘जोर’, ‘कली जवंदे दी’, ‘रब्ब करके’, ‘मेरा दिल’ जैसे गानों ने उन्हें केवल लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि लोगों के दिलों में बसाया। ‘सोहनी’ ‘तू दिसदा पैंदा’, ‘मोरनी’, ‘धीयां’, ‘खुश रह कर’, ‘जोगिया’ जैसे गानों के लिए भी उन्हें काफी पसंद किया गया। उनकी आवाज में एक अलग जादू था, एक ऐसा सादापन और ईमानदारी, जो सीधे आत्मा को छू जाती थी। पंजाब के गांव संगरूर ज़िले के जवंदा कलां में जन्मे राजवीर का बचपन पूरी तरह सादगी में बीता। किसान परिवार से आने वाले राजवीर बचपन से ही गायकी में रुचि रखते थे। खेती-बाड़ी करते हुए वे लोकगीत गुनगुनाते और धीरे-धीरे संगीत के प्रति उनका लगाव जुनून में बदल गया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद संगीत की औपचारिक शिक्षा भी ली और बहुत जल्द अपनी प्रतिभा से सभी को चौंका दिया।
राजवीर की पहचान केवल गानों तक ही सीमित नहीं रही, वे अभिनय की दुनिया में भी कदम रख चुके थे। ‘जिंद जान’, ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’, ‘मिंदो तसीलदारनी’ और ‘काका जी’ जैसी पंजाबी फिल्मों में अभिनय कर उन्होंने यह साबित कर दिया था कि वे एक बहुआयामी कलाकार हैं। उनके अभिनय में भी वही सहजता और सच्चाई झलकती थी, जो उनकी गायकी में थी। उनका गाना ‘तू दिस पैंदा’ उनके जीवन का अंतिम संगीत बन गया। यह गाना जैसे उनके जीवन के भावनात्मक सफर का प्रतीक बन गया, प्यार, उदासी और अधूरी कहानी का मिश्रण। हादसे से ठीक पहले उन्होंने झील किनारे उसी गाने पर मुस्कुराते हुए वीडियो पोस्ट किया था, जो अब उनके चाहने वालों के लिए अमर याद बन गया है।
राजवीर के निधन के बाद उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों में गहरा शोक है। सोशल मीडिया पर उनके फैंस ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, ‘राजवीर तू सिर्फ एक आवाज नहीं, एक अहसास था।’ उनके निधन से पंजाबी संगीत उद्योग में गहरा सन्नाटा है। उनका जाना एक युग का अंत है, जिसने अपनी मिट्टी से जुड़ा संगीत जिया। राजवीर जवंदा की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंस्टाग्राम पर उनके 2.4 मिलियन फॉलोअर्स और यूट्यूब चैनल पर लगभग 9.3 लाख सब्सक्राइबर्स थे। वे अपने फैंस से लगातार जुड़े रहते थे और अपने नए गानों, शूटिंग तथा यात्राओं की झलकें साझा करते रहते थे। वे न केवल एक सफल गायक थे बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा भी थे, जिन्होंने मेहनत और लगन से अपने सपनों को साकार किया।
राजवीर एक भावुक इंसान थे, जो संगीत के माध्यम से अपने दिल की बात कहते थे। उनके करीबियों के मुताबिक, वे जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे, जिनमें न अहंकार था, न दिखावा। उन्होंने कभी शोहरत को सिर पर नहीं चढ़ने दिया बल्कि अपने गांव और संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखा। वे अक्सर कहते थे, ‘संगीत वो रास्ता है, जो इंसान को खुद से मिलाता है।’ उनके निधन के बाद अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया था कि हादसे में उनके सिर में लगी चोटें बहुत गंभीर थी। उनके दिमाग तक ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाने से उनका नर्वस सिस्टम फेल हो गया था। कई दिनों तक वे होश में नहीं आ सके और धीरे-धीरे शरीर ने प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया। अंतिम चार दिनों में डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी।
राजवीर का जाना केवल एक कलाकार का जाना नहीं है बल्कि उस युग का अंत है, जो पंजाब के लोकसंगीत और आधुनिक संगीत के बीच एक सेतु था। उन्होंने अपने गीतों में परंपरा और आधुनिकता का ऐसा संगम किया, जिससे युवाओं ने अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस किया। उनके गानों में नशा नहीं, मिट्टी की महक थी। उनमें दिखावा नहीं, अपनापन था। उनकी गायकी ने पंजाबी संगीत को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया। वे उन गिने-चुने गायकों में से थे, जो आज भी लाइव ऑर्केस्ट्रा के साथ परफॉर्म करना पसंद करते थे। वे कहते थे, ‘मशीन से नहीं, दिल से निकली आवाज ही दिल तक पहुंचती है।’ शायद यही कारण था कि उनके गानों में भावनाओं की सच्चाई झलकती थी।
राजवीर जवंदा की मौत के बाद पंजाब के कई शहरों में उनके फैंस ने मोमबत्ती जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। गांवों में उनके गाने गूंजने लगे, मानो हर धुन कह रही हो, ‘राजवीर तू अमर है।’ सोशल मीडिया पर उनके पुराने इंटरव्यू और वीडियो फिर से साझा किए जा रहे हैं, जिनमें वे कहते हैं, ‘ज़िंदगी छोटी है पर अगर दिल से जी जाए तो वही अमर हो जाती है।’ यह कथन अब उनकी ज़िंदगी का सार बन गया है। उनकी यात्रा भले ही 35 साल में थम गई लेकिन उन्होंने जो अमिट छाप छोड़ी, वह पीढ़ियों तक याद रखी जाएगी। उनकी मुस्कान, उनकी आवाज और उनका सादापन अब भी लाखों दिलों में जीवित है। वे उन कलाकारों में से थे, जो शोहरत से ज्यादा आत्मा को महत्व देते थे। आज जब उनके गाने सुनते हैं तो लगता है, जैसे वे अब भी हमारे आसपास हैं, अपनी वही प्यारी मुस्कान लिए वही जिंदादिली, वही सादगी, वही आत्मीयता। राजवीर भले इस दुनिया से चले गए हों लेकिन उनका संगीत, उनकी आत्मा और उनकी यादें कभी नहीं जाएंगी। 

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