दो मिनट का मौन

मैंने जैसे ही सुबह आठ पचपन पर ‘बायो मेट्रिक’ के हलक में उंगली घुसेड़ी, वह झट से रिरिया उठा- ‘थैंक्यू... योर अटेंडेंस इज मार्क्ड’।
इस ‘नित्य-कर्म’ के बाद मैं जैसे ही मुड़ा... सेवादार हरनाम सिंह सदैव की तरह सामने खड़ा मिला। हरनाम सिंह बिल्कुल सुबह के उस अखबार जैसा है, जो तत्काल गेट के नीचे से खिसक कर घर के अंदर आ जाता है। हरनाम सिंह को देखते ही मैं सदा की तरह सतर्क हो उठा और कल शाम पांच बजे के बाद से लेकर सुबह आठ पचपन के बीच घटित होने वाली घटनाओं पर आधारित मुख्य समाचार सुनने के लिए तैयार हो गया।
मैं कभी हरनाम सिंह के पास नहीं रुकता लेकिन वह जाते-जाते भी दो-ढाई खबरें मेरे कान में डाल ही दिया करता है।
‘कल रात... राम गरीब मर गया...’ हरनाम सिंह के पास से गुजरते सदा चलते रहने के अभ्यस्त मेरे पांव अनायास ठिठक गये। 
मेरे लिए यह सूचना एक झटके की तरह थी। मैं रुका तो ज़रूर पर ठहरा नहीं, और बिना कुछ कहे-सुने स्टाफ रूम की तरफ बढ़ चला। हरनाम सिंह के चेहरे पर दमकी खुशी चमकती बिजली की तरह सब कुछ चौंधिया कर फिर लुप्त हो गई। कितना फर्क होता है एक अमीर आदमी और एक गरीब आदमी के मरने में। चंद महीने पहले जब प्रबंधन समिति के उप सचिव का निधन हुआ था तो इसी हरनाम सिंह ने इसी स्थान पर इसी अंदाज़ में... उस दिन का मुख्य समाचार दिया था ‘कल सेक्रेटरी साहब गुज़र गये।’ उस दिन उप सचिव महोदय ‘गुज़रे’ थे। पर आज राम गरीब सिर्फ ‘मरा’ है।
आज से तेईस बरस पहले... जब मैं इस ‘आधुनिक गुरुकुल’ में नया-नया आचार्य नियुक्त होकर आया था, तब मैंने पहली बार राम गरीब को देखा था। उसे देखकर, पहली ही नज़र में मेरे मन में जैसे विस्फोट-सा हुआ। ‘प्रेमचंद का होरी’।राम गरीब ऊंची मैली धोती कसे... कुचैली ढीली-सी बंडी पहने... हाथ में खुरपा लिए... क्यारी में गुडाई कर रहा था। बेहद दुबला-पतला... थोड़ी-सी झुकी हुई कमर... छोटे-छोटे छितरे हुए आधे-अधूरे बाल। ऐसे लगा जैसे प्रेमचंद का ‘होरी’... ‘गोदान’ में से निकल कर साक्षात् सामने आ खड़ा हुआ हो।
बाद में पता चला था कि वह इस ‘गुरुकुल’ का एक माली है और उसका नाम राम गरीब है। ‘यथा नाम-तथा गुण’ ‘राम’ ने उसे सचमुच ‘गरीब’ बनाकर ही भेजा था। राम गरीब यू.पी. के रायबरेली ज़़िले के किसी गांव से लुधियाना आया था। पंजाब में पंद्रह साल तक नौकरी करने के बावजूद उसकी मिली-जुली हिंदी-पंजाबी पर अवधि का प्रभाव बहुत गहरा था। जब वह दीन्ह, कीन्ह, लीन्ह... जैसे शब्दों पर वाक्य समाप्त करता था तो मुझे उसकी भाषा बहुत कर्ण-प्रिय लगती थी। और फिर जिस दिन मैंने माली राम गरीब की मालिन फूलमती को शुद्ध अवधी वस्त्राभरण में देखा तो मुझे पक्का यकीन हो गया कि ये दोनों या तो प्रेमचंद के ‘होरी-धनिया’ ही हैं... या फिर कम से कम उनका पुनर्जन्म अवश्य हैं।
लाइट जाने पर जनरेटर चलाने का जिम्मा भी राम गरीब का ही था। वह जनरेटर को ‘जगमीटर’ कहा करता था। मैंने कभी उससे नहीं पूछा था कि वह जेनेरेटर को ‘जगमीटर’ क्यों कहता है। मेरे विचार से उसे लगता होगा कि यह वह ‘मीटर’ है जिसके चला देने से बत्तियां ‘जग’ उठती हैं। हम आचार्य शब्द-निर्माण प्रक्रिया का जितना चाहे विश्लेषण पढ़ा लें परन्तु वास्तविक शब्द-निर्माण तो राम गरीब जैसों के हिस्से ही आता है। हम तो उस रचनात्मकता के प्रत्यक्षदर्शी मात्र बनकर रह जाते हैं। स्टाफ रूम में समस्त आचार्य बंधुओं के मुख पर राम गरीब की अकाल मृत्यु की चर्चा विचरण कर रही थी।
पिछले 23 वर्षों से गाहे-ब-गाहे लगभग सभी शोक-सूचनाओं में सारे शब्द यहां तक कि अल्प विराम और पूर्ण विराम भी वही होते हैं। सिर्फ नाम बदलता है। इस बार राम गरीब के नाम की बारी है। मुझे लगता है कि अपने सेवाकाल में... अगर मैं भी कभी गुज़र जाऊं तो मेरे नाम का नोटिस भी इसी तरह ग्यारह बजे आयेगा... और शोकसभा 2 बजे आयोजित की जायेगी। मेरे अगले दो वादन थोड़े ठीक-ठाक से गज़रे... लगता है... समय के गुज़रने के साथ-साथ... मन पर पड़े राम गरीब के बोझ को कुछ हल्का करना शुरू कर दिया है। तत्पश्चात् श्री राम गरीब जी की आत्मिक शांति हेतु ‘दो मिनट का मौन’ धारण करने की घोषणा हुई है।
सभी हाथ बांधे... सिर झुकाये... मौन खड़े हैं। डेढ़ सौ से भी अधिक लोगों की उपस्थिति के बावजूद पूरे लॉन में सन्नाटा पसरा हुआ है। यह ‘दो मिनट का मौन’ सिधार चुके राम गरीब की आत्मिक शांति हेतु मूक हार्दिक प्रार्थना के लिए रखा गया था। हर मृतक के लिए इसी प्रकार मौन रखा जाता है। प्रार्थना की जाती है कि परम पिता बिछुड़ी आत्मा को अपनी शरण में ले लें। यहां भी सब मूक थे... परन्तु मुझे पता है प्रार्थना कोई भी नहीं कर रहा होगा। कहा नहीं जा सकता कि ऐसे में कोई प्रार्थना करता भी है या नहीं। राम गरीब के लिए भी शायद ही कोई प्रार्थना कर रहा हो...। सभी मन को हांक कर प्रार्थना की ओर लगाना चाहते होंगे पर मन छिटक कर बार-बार रोज़मर्रा के कामों में जा उलझता होगा। मैं भी प्रार्थना कहां कर रहा हूं। मेरा मन भी बीती बातों के बीहड़ में भटक रहा है। उस दिन राम गरीब बहुत परेशान-सा लगा था, तो मैंने पूछ ही लिया था- राम गरीब भाई! क्या बात है... परेशान से लग रहे हो? उत्तर में राम गरीब ने बताया था कि अब वह अपनी बूढ़ी होती जा रही हड्डियों से काम नहीं ले पा रहा है और समय से पूर्व सेवा-मुक्त होना चाहता है। यदि संभव हो तो अपने इकलौते पुत्र को अपने स्थान पर कोई भी काम दिलाना चाहता है। बात मेरी पहुंच से ऊपर की थी। सो मैंने सलाह दी थी कि वह इस विषय पर प्राचार्य महोदय से बात करे। उसने कहा था कि उसने बड़ी फरियादें करके देख ली हैं, पर उनके पास इतना वक्त भी नहीं है। एक दिन राम गरीब सचिव महोदय के सामने गिड़गिड़ा रहा था, साहब! दो मिनट के लिए मेरी बात सुन लें। पर सचिव महोदय ‘अभी मैं जल्दी में हूँ... बाद में बात करते हैं।’ कहकर आगे बढ़ गये थे।
इतने में कोई खांसा। मेरा ध्यान भंग होकर फिर स्थिर हो गया। राम गरीब प्रबंध समिति के अध्यक्ष हेतु कार्यालय लिपिक से एक प्रार्थना-पत्र लिखवाना चाहता था। सिर्फ दो मिनट की ही तो बात है, पर लिपिक के पास फुरसत नहीं था। राम गरीब मेरी ओर देखता है पर मैं व्यस्त हूं। दो-एक लोग हिलने-डुलने लगे हैं। वैसे भी पूरे दो मिनट मौन-निश्चल खड़े रहना कोई आसान काम नहीं है। अन्तत: राम गरीब स्वयं साहस करके अध्यक्ष महोदय के सम्मुख जा पहुंचा। ‘ज़रा वेट करो दो मिनट बाद मिलते हैं’ कह कर अध्यक्ष महोदय अपने कार्यालय में चले गये और शाम को कार में बैठकर घर और अगले दिन जहाज में बैठ कर अमरीका जा पहुंचते हैं। अपनी बात कहने के लिए ‘दो मिनट’ की खोज में भटकता-भटकता राम गरीब अब उस जगह पहुंच गया था जहां बात कहकर समझाने की आवश्यकता ही नहीं रहती।जिस जीवित राम गरीब की मानसिक शांति के लिए किसी के भी पास दो मिनट तक का समय नहीं था, आज उसी मृत राम गरीब की आत्मिक शांति के लिए हम सब के पास... एक साथ... पूरे दो मिनट हैं।  तभी ‘धन्यवाद’ शब्द गूंजा... और शोक-सभा विसर्जित हो गई। (समाप्त)
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