किसानों के लिए फायदेमंद है फालसा का पेड़
फालसा का वैज्ञानिक नाम ग्रेविया एशियाटिक है। यह एक छोटा झाड़ीदार पेड़ होता है, जो गर्म और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगता है। फालसा के फल को भारत में एक लोकप्रिय फल के रूप में जाना जाता है। इसका स्वाद खट्टा, मीठा और ताजगी से भर देने वाला होता है। मलावेशी परिवार का यह पेड़, हरे, अंडाकार, मोटे और खुरदरे पत्तों वाला होता है, इसमें छोटे सफेद या हल्के गुलाबी फूल आते हैं, जबकि छोटे गोलकार, नीले, श्याम या काले रंग के फल मुंह में खाते ही खट्टा मीठा स्वाद देते हैं। फालसा का फल गर्मी में मई-जून के महीनों में पकता है।
फालसा का पेड़ देश के ज्यादातर हिस्साें में पाया जाता है मसलन उत्तर भारत में, पंजाब, हरियाणा, मध्य भारत में यह महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश, पश्चिम भारत में राजस्थान गुजरात तथा पूर्वी भारत में बिहार, झाखंड, ओड़िसा, पश्चिम बंगाल आदि में भी फालसा का पेड़ पारंपरिक रूप से पाया जाता है। इस तरह देखें तो यह लगभग भारत के हर क्षेत्र में उगता है और अगर इसकी खेती की जाए तो यह हिंदुस्तान के लगभग 80 से 90 प्रतिशत क्षेत्र में आसानी से की जा सकती है। दरअसल यह गर्म और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से फलता फूलता है।
देश में पंजाब फासला का प्रमुख उत्पादक राज्य है। पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात ओड़िसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और बिहार में भी अब किसान आर्थिक लाभ के लिए सीमित क्षेत्र में फालसा की खेती करते हैं। फालसा की खेती से किसानों को कई तरह के लाभ होते हैं। फालसा के छोटे पेड़ हर साल 5 से 10 किलोग्राम तक फल देते हैं और अगर प्रतिहेक्टेयर के हिसाब से देखें तो 8 से 10 टन फालसों का उत्पादन हो जाता है। फालसा की खेती में लागत बहुत कम आती है। क्योंकि इसे खाद पानी की वैसे ज़रूरत नहीं पड़ती जैसे दूसरे फलों के पेड़ों के लिए पड़ती है। एक बात यह भी है कि फालसा पहले या दूसरे वर्ष में ही फल देने लगता है। फालसा में कई तरह के पोषक गुण पाये जाते हैं। जैसे- विटामिन ए, बी3 और सी, साथ ही इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे खनिज तत्व भी पाये जाते हैं।
फालसा में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाइक्रोबिअल और एंटीइंफ्लेमेट्री गुण भी होते हैं, इसलिए फालसा की अच्छी खासी मांग आयुर्वेदिक औषधियों में भी होती है। इसके अलावा फालसा के फल की मांग जूस, शर्बत, मुरब्बा आदि बनाने में भी होती है। ताजे फलों का स्थानीय बाज़ार भी काफी आकर्षक है तथा फालसा का पेड़ सामान्यत: 10 से 15 सालों तक फल देता है, जिससे किसान की स्थायी आय होती है। दोमट और हल्की बलुई मिट्टी में विशेष तौर पर फालसा का पेड़ तेजी से बढ़ता और विकसित होता है। अगर व्यावसायिक तौर पर इसकी खेती करें तो एक से दो मीटर की दूरी पर पौधे लगाये जाने चाहिए, समय-समय पर इसकी पुरानी टहनियों को काटते रहने से इसका विकास तेज़ी से होता है और पैदावार भी अच्छी होती है। जैविक खाद और कंपोस्ट से भी इसकी पैदावार में वृद्धि होती है।
फालसा कम खर्च, जल्दी फसल देने वाला और स्थानीय बाज़ारों में अच्छी खासी मांग वाला फल है। हालांकि इसकी अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग कीमत होती है। फिर भी किसान इसे 50 से 60 रुपये किलो में आसानी से बेंच सकते हैं और आम लोगों को यह बाज़ार में 100 से 150 रुपये किलो मिलता है। इसलिए किसानों को फालसा की खेती करने से बड़े आराम से आर्थिक मदद मिलती है। फालसा किसानों की नकदी आय का भरोसेमंद स्रोत है, विशेषकर उन इलाकों के लिए जहां दूसरी बहुत मांग वाली नकदी फसलें या फिर बहुत लागत वाली नकदी फसलों का स्कोप कम होता है। फालसा की खेती किसानों के लिए एक एकड़ में प्रतिवर्ष 50 से 80 हजार रुपये का आराम से फायदा देती है। अगर 5 एकड़ में फालसा की खेती की जाए तो 3 से 4 लाख रुपये का आर्थिक लाभ आसानी से मिल जाता है।
ताजे फल को स्थानीय बाज़ार और फल मंडियों में आसानी से बेचा जा सकता है। अगर किसान इसे आर्थिक रूप से फायदे के लिए लगाना चाहें तो एक हेक्टेयर में इसके 500 से 600 फालसा के पेड़ लगाये जा सकते हैं और हर साल बहुत आसानी से 4 से 6 लाख रुपये तक की आमदनी पायी जा सकती है, क्योंकि यह कम रख-रखाव और जल्दी फसल देने वाला पेड़ होता है। इसलिए भी किसानों के लिए यह काफी फायदेमंद है। हां, इसका फायदा एक तरीके से और भी उठाया जा सकता है यदि इसके लिए एक छोटी प्रसंस्कृत ईकाई लगा ली जाए, जिसमें जूस, मुरब्बा, शर्बत और जैम बनाया जा सके। इन उत्पादों के साथ मूल्य संवर्धन की सुविधा होती है जिससे किसानों को अच्छा खासा लाभ मिल सकता है। बहरहाल यदि इस तरह की व्यावसायिक लाभ लेने की क्षमता न हो तो भी आसानी से इसके उत्पादन से किसानों को हर साल प्रति हेक्टेयर 4 से 6 लाख रुपये का फायदा सिर्फ बाज़ार में फल बेंच करके लिया जा सकता है।
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