इथियोपिया : दिल्ली तक पहुंची ज्वालामुखी की ज़हरीली राख
अफ्रीका के इथियोपिया में एक बड़ा ज्वालामुखी फटा है। इस ज्वालामुखी का नाम है हायली गुब्बी। यह ज्वालामुखी करीब 10 से 12 हज़ार साल बाद फटा है। विस्फोट के बाद राख का एक बड़ा बादल उठा। यह राख लगभग 4000 किलोमीटर दूर भारत तक आ गई है। राख का यह बादल 130 किलोमीटर प्रति घंटे की बहुत तेज़ रफ्तार से आया। यह लाल सागर और अरब सागर को पार करते हुए आया। सोमवार (24 नवम्बर, 2025) रात करीब 11 बजे यह राख दिल्ली तक पहुंच गई। सबसे पहले यह पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर और जैसलमेर के ऊपर देखी गई। इसके बाद यह दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के बड़े हिस्सों में फैल गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह राख ज़मीन से 25,000 से 45,000 फुट की ऊंचाई पर है। इसलिए, अभी लोगों की सेहत को खास खतरा नहीं है लेकिन इस राख से हवाई उड़ानों पर असर पड़ा है। अकासा एयर और इंडिगो जैसी कई एयरलाइंस ने अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं या उनके रास्ते बदल दिए हैं। भारत सरकार के विमानन नियामक डीजीसीए ने सभी एयरलाइंस को चेतावनी दी है। उन्हें राख वाले खतरनाक इलाकों से दूर रहने को कहा गया है। इस राख के असर ने हवा को भारी और ज़हरीला बना दिया है। दिल्ली के आनंद विहार में वायु गुणवत्ता सूचकांत (एक्यूआई) 400 के ऊपर चला गया और यह ‘गम्भीर’ श्रेणी में पहुंच गया। एम्स और सफदरजंग के आसपास भी घना ज़हरीला स्मॉग दिखाई दिया। हवा में चुभन, सांस लेने में भारीपन और आंखों में जलन महसूस होने लगी। यह स्थिति स्थानीय प्रदूषण और ज्वालामुखी राख के ऊपरी परत में मिलने से बनी। सुबह का सूरज सामान्य से ज्यादा लाल और चमकीला दिखा क्योंकि राख के सूक्ष्म कण रोशनी को अलग तरह से मोड़ते हैं। इस तरह का दृश्य बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के बाद आम होता है।जानकारों के अनुसार ज्वालामुखी राख विमान के लिए बेहद खतरनाक मानी जाती है। राख दिखती भले धूल जैसी हो लेकिन असल में यह बारीक कांच और जली चट्टानों के कण होते हैं। ये गर्म इंजन में जाते ही पिघलकर कांच जैसी परत बना देते हैं जिससे इंजन बंद हो सकता है। इसके अलावा राख विंडशील्ड को धुंधला कर देती है, सेंसर खराब कर सकती है और पंखों की सतह पर चिपककर विमान की लिफ्ट भी प्रभावित कर सकती है।
जानकारों की माने तो अच्छी बात यह है कि राख अभी ऊपरी वायुमंडल में है। इसकी ज़मीन पर भारी मात्रा में गिरने की संभावना बहुत कम है। मौसम विभाग ने कहा है कि कुछ इलाकों में हल्की परत दिख सकती है, लेकिन फिलहाल इसका सीधा खतरा बहुत कम है। हालांकि, हवा की गुणवत्ता पहले से खराब होने के कारण दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग और भारी हो गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, जिन लोगों को अस्थमा, सीओपीडी, दिल की बीमारी या एलर्जी की समस्या है, उन्हें ज्यादा सावधानी रखनी चाहिए। आंखों में जलन, गले में खराश, सांस फूलना और सिरदर्द जैसे लक्षण बढ़ सकते हैं। यह भी बताया जा रहा है कि यह पूरा राख का गुबार हवा के साथ पूर्व की ओर खिसकता रहेगा और धीरे-धीरे बंटकर खत्म हो जाएगा। अगर ज्वालामुखी में दूसरा बड़ा विस्फोट होता है या राख की ऊंचाई और बढ़ती है तो उड़ानों पर असर लम्बे समय तक रह सकता है। मौसम विभाग और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां लगातार इसकी निगरानी कर रही हैं।
जानकारों का कहना है कि ज्वालामुखी राख सूर्य की रोशनी को रोकती है, इसलिए जिस क्षेत्र में यह पहुंचती हैए वहां अस्थायी रूप से धुंध जैसा माहौल बन जाता है। बड़े विस्फोटों में तापमान तक गिर सकता है हालांकि इस बार ऐसा असर नहीं दिखेगा क्योंकि राख की मात्रा बहुत बड़ी वैश्विक स्तर की नहीं है। राख में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड गैस बाद में सल्फेट एयरोसोल बनाती है, जो हवा की गुणवत्ता खराब कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के तराई इलाके और नेपाल के ऊपर इन गैसों का असर थोड़ा बढ़ सकता है क्योंकि राख वाले बादल हिमालय से टकरा कर दिशा बदलेंगे। बचाव के लिए लोगों को ज़रूरी सलाह देते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हवा में चुभन या भारीपन महसूस हो तो सुबह बाहर निकलने से बचें। एन-95 मास्क मददगार है क्योंकि यह सूक्ष्म कणों को फिल्टर करता है। आंखों में जलन हो तो साफ पानी से धोएं और बच्चों या बुजुर्गों को अनावश्यक यात्रा से बचाएं।
इथियोपिया के ज्वालामुखी में हुआ विस्फोट भले अफ्रीका में हुआ हो, लेकिन उसकी राख भारत के आसमान तक पहुंचकर यह दिखा चुकी है कि प्रकृति की घटनाएं सीमाओं की मोहताज नहीं होतीं। (एजेंसी)



