पंजाब तथा हरियाणा अपने मामले स्वयं हल करने के लिए पहल करें
मिलो जब उन से तो मुबहम सी गुफ्तगू करना,
फिर अपने-आप से सौ सौ वज़ाहतें करना।
महान शायर ‘अहमद फराज़’ के इस शे’अर के शब्दों मुबहम का अर्थ गोल-मोल या अस्पष्ट, गुफ्तगू बातचीत और वज़ाहत—स्पष्ट है। पूरे शे’अर का अर्थ है कि जब बातचीत करना तो अपने मन की पूरी बात एकदम सामने वाले के आगे न खोल देना और बाद में पूरा फैसला लेने से पहले स्वयं सौ-सौ बार सोच कर स्पष्ट होकर ही किसी समझौते पर पहुंचना। इस शे’अर का ज़िक्र जहां इसलिए कर रहा हूं क्योंकि भारत के केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने पंजाब तथा हरियाणा के मुख्यमंत्रियों को आधिकारिक रूप में कहा है कि वे सतलुज यमुना सम्पर्क नहर के मामले पर आपस में बैठक करें और इस मामले को आपसी सहयोग से हल करने के यत्न करें।
हालांकि पंजाब का एस.वाई.एल. नहर पर स्टैंड पूरी तरह स्पष्ट है कि हमारे पास एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है, अत: एस.वाई.एल. नहर का निर्माण नहीं होगा। हालांकि मुख्यमंत्री भगवंत मान उल्टा एस.वाई.एल. नहर बनाने का फार्मूला दे चुके हैं कि पंजाब को और पानी दिया जाए, परन्तु यह व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता। पंजाबी की एक प्रसिद्ध कहावत है :
‘सारी जांदी वेखिये अद्धी दियो लुटा’
अर्थात यदि किसी हालत में कोई सारी चीज़ हाथ से जा रही है तो वह आधी देकर आधी बचाई जा सकती हो तो बचा ली जानी चाहिए। इसलिए केन्द्रीय मंत्री की सलाह पर पंजाब व हरियाणा दोनों को मिलकर बातचीत की मेज़ पर बैठ कर साझे रूप में दोनों प्रदेशों के हितों को सामने रख कर सिर्फ सतलुज यमुना सम्पर्क नहर के बारे में ही नहीं अपितु पंजाब तथा हरियाणा के बीच सभी मामलों पर एक बार खुले मन से बातचीत करनी चाहिए। नि:संदेह चंडीगढ़ सिर्फ पंजाब का है और अंतर्राष्ट्रीय रिपेरियन कानून के अनुसार पंजाब की तीन नदियों का पानी भी अकेले पंजाब का ही है, परन्तु वर्तमान ज़मीनी हकीकत हमें पता है कि हमारा पूरा अधिकार हमें मिलना लगभग असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। फिर केन्द्र की नीयत सामने है कि उसने अभी भी चंडीगढ़ पंजाब तथा हरियाणा दोनों से छीन कर स्थायी केन्द्र शासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव त्यागा नहीं, सिर्फ स्थगित ही किया है।
पंजाब तथा हरियाणा को चंडीगढ़ में 60:40 के अनुपात से कर्मचारियों की नियुक्ति के अधिकार दिए गए थे। इसके साथ ही चंडीगढ़ पंजाब को देने के बदले पंजाब में से कुछ हिन्दी भाषी इलाके हरियाणा को देने की बात भी कही गई थी। यह भी स्पष्ट है कि हरियाणा चाहे अब पंजाब की नदियों का रिपेरियन राज्य नहीं, परन्तु केन्द्रीय अन्याय इस आधार पर होता है कि पहले हरियाणा पंजाब का ही हिस्सा था। अत: यदि हरियाणा को पहले पंजाब का हिस्सा होने के कारण पंजाब के पानी का हकदार माना जाता है तो पंजाब भी उस समय यमुना के पानी का हकदार था और है। अत: पंजाब तथा हरियाणा आपस में सभी मामलों पर समझौते कर लें तो दोनों राज्यों का काया-कल्प हो सकता है। दोनों राज्य अपनी ज़रूरत का पानी रख कर यदि फालतू पानी हो तो उस पर रायल्टी ले सकते हैं। फिर केन्द्र के पास पंजाब तथा हरियाणा के मामले में हस्तक्षेप करने का सदाचारक अधिकार भी नहीं रहेगा और पंजाब पुनर्गठन एक्ट की धाराएं 78-79-80 क्रियात्मक रूप में अप्रभावी हो जाएंगी। हमारे पास उदाहरण हैं कि पंजाब से मुफ्त तथा जबरन लिया पानी राजस्थान सरकार उद्योगों को 2 रुपये लिटर तक बेच रही है। राजस्थान सरकार ने बाड़मेर रिफाइनरी में एच.पी.सी.एल. से 74:26 की हिस्सेदारी की है और उसके लिए 37 लाख 44 हज़ार क्यूबिक मीटर पानी की भंडारण समर्था बनाई जा रही है। दूसरा उदाहरण हिमाचल का है। उसे जो पानी उसके अपर-रियपेरियन राज्य तथा पंजाब का हिस्सा रहे होने के कारण मिलता है, वह भी दिल्ली को बेचा जा रहा है। रही बात अपनी-अपनी राजधानी तथा अपनी-अपनी विधानसभा बनाने की, इस संबंध में राज्यों के पुनर्गठन बारे देश में यही प्रथा रही है कि पुराने राज्य के पास पुरानी राजधानी रही है और नये राज्य ने अपनी नई राजधानी बनाई है। हरियाणा को भी बड़ा दिल करके इसी परम्परा का ही पालन करना चाहिए। वह केन्द्र से नई राजधानी के लिए सहायता ले सकता है।
दोहरी रणनीति पर न चले केन्द्र
वो मायूसी-ए-हालात-ए शर्मिन्दगी कि उ़फ,
जो अपनों से पेश आते हैं बेगानगी से वोह।
—लाल फिरोज़पुरी
केन्द्र सरकारें कभी-कभी ऐसे कदम उठाती हैं जो पंजाबियों को बेगानगी पैदा करने वाले होते हैं। केन्द्र में चाहे कांग्रेसी सरकारें रहीं, चाहे सांझी और चाहे मौजूदा भाजपा सरकार, पंजाब के साथ अन्याय की दास्तान बदस्तूर जारी है। पहली सरकारों ने अन्याय किए, परन्तु दो पंजाबी प्रधानमंत्रियों इन्द्र कुमार गुजराल तथा डॉ. मनमोहन सिंह भी ये अन्याय दूर नहीं करवा सके या शायद उन्होंने प्रयास ही नहीं किया, परन्तु मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं को पंजाब तथा सिखों का हमदर्द बताते नहीं थकते, लेकिन दूसरी ओर पहले हुए अन्यायों को भी दूर करने की बात तो दूर, अपितु उनकी सरकार के समय कई नए अन्याय भी होते दिखाई देते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की 350वीं शहीदी शताब्दी के अवसर पर बड़ी शान से कहा कि उन्होंने सिखों के लिए श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबज़ादों की शहादत की याद में वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत करने से लेकर करतारपुर के गलियारे तक कई कदम उठाए हैं, परन्तु जब पंजाब के साथ कोई नया अन्याय होता है या सिख बंदियों के साथ भेदभाव वाला रवैया अपनाया जाता है तो यह सिखों को अपने साथ ही अन्याय प्रतीत होता है क्योंकि पंजाब में बहुसंख्या सिखों की है और सिखों को प्रतीत होता है कि पंजाब से अन्याय सिखों के कारण ही किया जा रहा है। प्रधानमंत्री की इस तरह की दोहरी नीति बिल्कुल शोभा नहीं देती।
शजर को आब भी देते हो जड़ भी कुतरते हो,
तेरी दो-दे रंगी सियासत को भला समझें तो क्या समझें।
—लाल फिरोज़पुरी
शहीदी शताब्दी समारोह
हैं रवां उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल ना हो,
जुस्तजू करते हैं उसकी जो हमें हासिल ना हो।
प्रसिद्ध शायर मुनीर नियाज़ी का यह शे’अर हमारी सिख कौम पर पूरी तरह चरितार्थ होता है। हमें हाल ही में साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की 350वीं शताब्दी मनाई है, परन्तु इस संबंध में हुई गतिविधियों में श्रद्धा से ज़्यादा राजनीति हावी रही है। मुझे नहीं प्रतीत होता कि शताब्दी समारोहों से सिख कौम, पंजाब, देश तथा जनमानस को कोई बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है।
हमने शहीदी शताब्दी के समारोह शुरू होने से कई महीने पहले ही यह सुझाव दिया था कि पंजाब में केन्द्र, पंजाब सरकार तथा शिरोमणि कमेटी द्वारा गुरु साहिब की शहीदी शताब्दी के संबंध में सभी समारोह आपसी तालमेल से करवाए जाने चाहिएं। गुरु साहिब ने अपनी वाणी तथा महान शहादत से जो संदेश अपने समय में दिया था, वह देश भर के लोगों तक पहुंचाने तथा उनकी याद में कोई ऐसा समुचित संस्थान बनाने का फैसला भी किया जाना चाहिए था जो लोगों में गुरु साहिब की याद भी बनाए रखता और उसका लोगों को लाभ भी होता। विशेषकर देश में धार्मिक तथा विचारों की आज़ादी बनाए रखने पर बल दिया जाता तो यह गुरु साहिब को सही श्रद्धांजलि हो सकती थी, परन्तु प्रत्येक पक्ष अपने एजेंडे से ही शहीदी शताब्दी मनाता दिखाई दिया।
़खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली,
ना हो जिस को ़ख्याल खुद अपनी हालत को बदलने का।
—ज़़फर अली खां
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