साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ेगी बाबरी मस्जिद की ज़िद्द
पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में 25 नवंबर, 2025 को देर रात बाबरी मस्जिद के शिलान्यास के पोस्टर लगे देखे गये तो इनकी तस्वीरों के सोशल मीडिया में आते ही देश के कई इलाकों में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बनने लगा है। इन पोस्टर्स पर लिखा है- 6 दिसंबर 2025 को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद का शिलान्यास समारोह होगा। इस शिलान्यास कार्यक्रम का आयोजनकर्ता तृणमूल कांग्रेस के विधायक हुमायूं कबीर को बताया गया है। गौरतलब है कि यह सनसनी पिछले एक पखवाड़े से उत्तर भारत में बनी हुई है। भाजपा नेता विनय कटियार ने एक टीवी रिपोर्टर से बात करते हुए कहा है कि बाबर के नाम पर कहीं भी मस्जिद बनेगी, तो हम उसे उखाड़ फैंकेंगे। जाहिर है एक तरफ बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद बनाये जाने की ज़िद्द और दूसरी तरफ ऐसी किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं करने जैसी धमकियों के बाद देश के जन-समुदाय का भावनाओं में बहना स्वाभाविक है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी और कहा जा रहा है, इसी दिन नई बाबरी मस्जिद का शिलान्यास होगा। इससे एक बार फिर अगर 1992 जैसी साम्प्रदायिक स्थितियां पैदा हो जाएं, तो कौन रोकेगा?
इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब मुसलमानों को होगा। पहले से ही उनकी आर्थिक स्थिति, इन्हीं नेताओं के कारण देश में बिगड़े साम्प्रदायिक माहौल के दृष्टिगत हाशिये पर चली गई है। हाल के दिनों में कई जगहों पर मुस्लिम युवकों ने शिकायत की है कि उन्हें प्राइवेट जॉब में नहीं रखा जाता। इस तरह का वितंडा खड़ा करना देश की एक बहुत बड़ी आबादी को संकट में डालना होगा। गौरतलब है कि टीएमसी के विधायक हुमायूं कबीर का यह बयान तब सामने आया, जब मंगलवार यानी 25 नवंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर स्थित शिखर पर ध्वजारोहण करके औपचारिक रूप से राम मंदिर निर्माण को पूरा होने की घोषणा कर रहे थे।
ज्ञात हो कि 22 जनवरी 2024 को रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी और 25 नवंबर 2025 को राम मंदिर के निर्माण को पूरी तरह से पूर्ण किया गया है। प. बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी को इस बार भाजपा से कड़ी टक्कर मिलने की सम्भावना है। टक्कर तो पिछली बार भी थी, लेकिन पिछली बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा की तमाम कोशिशों पर भारी पड़ी थीं। इस बार ऐसा होने की आशंका नहीं लगती, क्योंकि पिछले तीन सालों में पश्चिम बंगाल अनेक पैमानों में लगातार पीछे जा रहा है। ऐसे में चुनाव जीतने के लिए इस तरह की रणनीतियों का सहारा लिया जाना स्वाभाविक है। एक समुदाय का वोट पाने के लिए उन्हें पूरे देश में साम्प्रदायिकता की आग में झोंकना अक्लमंदी नहीं होगी। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इसकी प्रतिक्रिया स्परूप पश्चिम बंगाल में जातीय ध्रुवीकरण भी हो सकत है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने टीएमसी के विधायक हुमायूं कबीर के इस बयान पर कहा है कि अगर टीएमसी ऐसी कोई हरकत करेगी, तो इसका मतलब यह होगा कि वह पश्चिम बंगाल में कोई मस्जिद नहीं बल्कि एक नये बांग्लादेश की नींव रख रही है। ये दोनों ऐसे भड़काऊ बयान हैं जिनको लेकर आज नहीं तो कल गोलबंदी तय है, जो देश के लिए बहुत बड़ी क्षति होगी। इस साज़िश के तहत ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान की जीत का अप्रत्यक्ष तौर पर घोषणा करके देश को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है। वैसे भी 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद जब देश के कई इलाकों में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे, उसमें न केवल सैकड़ों लोग मारे गये थे बल्कि अरबों रुपये का आर्थिक नुकसान भी हुआ था। अगर वैसा ही माहौल फिर से बना तो अब 1992 के मुकाबले जितना नुकसान होगा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
इसलिए यह सिर्फ भाजपा या टीएमसी के लिए ही नहीं देशभर के नेताओं के लिए सही समय पर संयम बरतने का वक्त है। अगर सिर्फ अपनी अपनी राजनीति के लिए आम लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया गया, तो देश दशकों पीछे चला जायेगा यह राजनीतिक पार्टियों की समझ में नहीं आ रहा। टीएमसी के बाद कांग्रेस नेता उदित राज भी बढ़-चढ़कर हुमायूं कबीर का समर्थन करके कह रहे हैं कि अगर मंदिर का शिलान्यास हो सकता है, तो मस्जिद का क्यों नहीं? बात मस्जिद के निर्माण की नहीं है। देशभर में प्रतिशत के मामले में मंदिरों से मस्जिदें कहीं ज्यादा हैं। ऐसा कोई महीना नहीं जाता, जब पूरे देश में औसतन 7 से 8 नई मस्जिदों की तामीर न होती हो। मस्जिदों के शिलान्यास या उनके निर्माण पर कहीं से कोई विरोध की बात सामने नहीं आयी है। विरोध सिर्फ बाबरी नाम से मस्जिद के शिलान्यास का है। कम से कम कांग्रेस तो इस आग भड़काने वाली राजनीति को समझना चाहिए। महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता हुसैन दलवई ने ठीक कहा है कि मस्जिद बनाना ठीक है लेकिन खास तौरपर बाबरी मस्जिद ही क्यों?
पहले भी सदियों से बाबरी मस्जिद के कारण हिंदू और मुसलमानों में अलगाव रहा है। एक दो बार नहीं, दर्जनों बार दंगे हुए हैं। दोनों ही समुदायों को इससे बहुत नुकसान हुआ है और जब देश की सर्वोच्च अदालत ने तर्कों से परे जाकर भावनाओं के आधार पर राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता प्रशस्त कर दिया, तो मुस्लिम समुदाय ने सहिष्णुता दिखाते हुए इसका विरोध भी नहीं किया लेकिन राजनीतिक फसल काटने के लिए टीएमसी जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही है, वे रास्ता देश के गरीब लोगों को न सिर्फ संकट में डालेगा और उन्हें दशकों पीछे कर देगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



