अमरीका का टैरिफ बम कहीं अमरीका के लिए घातक न बने !
ट्रम्प अपने बयानों में हर बार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना मित्र बताते हैं। दुनिया इस मित्रता के मायने समझना चाहती है। क्या मित्रता की घनिष्ठता में इधर कुछ सालों में भारी परिवर्तन आ गया है? क्या मित्रता केवल शाब्दिक होती है? वह जो सदियों से मित्रता में एक-दूसरे की सीमा, एक-दूसरे की ताकत, एक-दूसरे के दु:ख और सुख में साथ खड़े होने/रहने का दावा था, अब खारिज हो गया है?
भारत के लोग ट्रम्प की टैरिफ वाली नीति से नाराज़ हैं। सिर्फ इसलिए नहीं कि टैरिफ काफी कठोर हैं अपितु इसलिए भी कि उन्हें लगता है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। वह भी बेबुनियाद कारणों से? ट्रम्प ने रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया है, लेकिन वह चीन और यूरोप के साथ ऐसा नहीं कर रहे। जबकि वे भी रूस से तेल ले रहे हैं। इतना ही नहीं, ट्रम्प ने यह दावा भी कर दिया है कि भारत उनके कहने पर रूस से तेल खरीदना बंद कर रहा है, जबकि यह बिल्कुल झूठ है। ट्रम्प कदम-कदम पर झूठ बोल कर अपने पद की गरिमा को कम कर रहे हैं।
ट्रम्प की नीतियां भारत को कुछ समय के लिए दबाव में लाने की कोशिशों से भरपूर हैं और भारत को कुछ समय के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं, लेकिन अंतत: ये नीतियां भारत को नहीं, अमरीका को नुकसान देने वाली साबित होंगी।
विश्लेषक बताते हैं कि भारतीय निर्यात में बीस प्रतिशत है। पचास प्रतिशत टैरिफ में कपड़ा, हीरा और ऑटो कम्पोनेंट्स जैसे लेबर इंटेसिव क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। इससे रोज़गार का नुकसान होगा और युवा वर्ग को नौकरी मिलनी कठिन हो सकती है। उनका यह अनुमान भी है कि टैरिफ के कारण भारत की जी.डी.पी. ग्रोथ कम होगी। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारतीय अर्थ व्यवस्था 6 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रही है। इधर अमरीकी कम्पनियां भी भारत के प्रतिस्पर्धा आपूर्ति क्षेत्र पर निर्भर हो गई हैं। इस टैरिफ से आपसी संबंध भी बाधित हो सकते हैं, जोकि बड़ा ़खतरा कहा जा सकता है। ऐसी नीति से अमरीका का भी नुकसान होगा। यू.एस. सप्लाई चेन के लिए भारतीय वस्तुओं पर उच्च टैरिफ से अमरीका में भी चीज़ों की कीमतें बढ़ जाएंगी और टैरिफ के कारण मूल्य दबाव से ट्रम्प की राजनीतिक सम्पदा कमज़ोर हो सकती है। पहले ही अमरीका में ट्रम्प विरोधी स्वर ज़ोर पकड़ने लगा है।
रूस से हमारी रियायत दरों पर तेल की खरीद ने वैश्विक बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों को कम किया है। इससे सीधे तौर पर नहीं, लेकिन परोक्ष रूप से पश्चिमी अर्थ-व्यवस्थाओं को लाभ पहुंचा है। इस तेल खरीद के अचानक बंद होने पर कीमतों में इज़ाफा हो सकता है जिससे दुनिया भर में महंगाई बढ़ेगी, अमरीका भी इससे बच नहीं सकता। ट्रम्प का आर्थिक एजेंडा इससे कमज़ोर हो सकता है, जिससे जनता नाराज़ हो सकती है।
अमरीका की शीर्ष लीडरशिप को टैरिफ में बढ़ोतरी होने पर जो संकट उभर कर आने वाले हैं, उनके प्रति सचेत और सजग रहना होगा। इसी में अमरीका की भलाई और अमरीका के हित छुपे हैं, जिसे नज़र अंदाज़ करना अमरीका के लिए नुकसानदेह साबित होगा। ब्रिक्स के सभी सदस्य ब्राजील, भारत, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका अमरीकी दबाव को न झेलते हुए साफ तौर पर एकजुट हो रहे हैं। इस मोर्चे पर थोड़ी सफलता भी अमरीका के लिए नुकसानदायक सिद्ध होगी।



