प्रेरणादायक जीवन
श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी शताब्दी के संबंध में, उनकी महान कुर्बानी को नमन करने के लिए देश-विदेश में अनेक तरह के धार्मिक समागम करवाए जा रहे हैं। गुरु जी के जीवन और शिक्षाओं के प्रति प्रदर्शनियां लगाई जा रही हैं, लेज़र शो किए जा रहे हैं। सैमीनार किए जा रहे हैं। कहने से अभिप्राय है कि अनेक तरह से उनके जीवन पर रौशनी डालते समागम हो रहे हैं। गुरु जी पंजाब में लम्बा समय बाबा बकाला भी रहे। गुरु जी कीरतपुर साहिब और आनंदपुर साहिब में भी विचरण करते रहे। उन्होंने उत्तर भारत के अतिरिक्त बिहार, बंगाल और असम आदि का दौरा भी किया।
अपने जीवन में उन्होंने लोगों में धार्मिक, सामाजिक और सभ्याचारक पक्ष से चेतना की लौ जलाने के भरपूर यत्न किए। उन्होंने जीवन में मानवीय नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता देने की बात पर भी बल दिया। इसलिए उनके जीवन काल में बड़ी संख्या में संगतें और श्रद्धालु उनके साथ जुड़ते गए। अंतत: उन्होंने मनुष्य के आज़ादी के साथ विचरण करने और प्रत्येक के विश्वास और नैतिकों मूल्यों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था। विगत दिवस हुए अलग-अलग समागमों में देश-विदेश के प्रसिद्ध चिंतक गुरु जी द्वारा रची गई वाणी को आधार बना कर भी लगातार उनके योगदान संबंधी अपने प्रभाव सांझे करते रहे हैं। धार्मिक संतों, महापुरुषों के अतिरिक्त राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों की उभरती शख्सियतों ने भी अपने-अपने प्रभावों से गुरु जी को श्रद्धांजलि भेंट की है। इस संबंध में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा सरकार की ओर से उनकी 350वीं शहीदी शताब्दी को मनाने के लिए करवाए गए राज्य स्तरीय समागम में शिरकत की है। उनकी ओर से महान गुरु की शहादत की याद में यादगारी सिक्का भी जारी किया गया है। डाक टिकट और उनसे संबंधित एक पुस्तक भी लोकार्पण की गई है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने पूरी श्रद्धा से गुरु जी के आदर्शों को मुख्य रखते हुए कहा कि उन्होंने सच और न्याय को सर्वोच्च धर्म माना और इन उच्चतम नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। नि:संदेह गुरु जी की शिक्षाएं हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए यह बात सन्तुष्टि वाली और बड़ी भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने पिछले 11 वर्षों से सिख परम्पराओं को एक राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया है। इसीलिए देश भर में ‘वीर बाल दिवस’ भी बहुत सम्मान के साथ मनाया जाता है। यहीं नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि सिख परम्पराओं के इतिहास को भी विद्यार्थी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी इसलिए दी कि यह उदाहरण लोगों के मन के भीतर एक बड़ा बदलाव लाने की साक्षी बन जाए।
उन्होंने और कहा कि गुरु साहिब के बचनों के अनुसार हमें न किसी से डरना चाहिए और न ही किसी को डराना चाहिए। ऐसी भावनाएं ही मनुष्य को निरवैर और निर्भय बनाने में सहायक होती हैं। इसीलिए उन्हें ‘हिन्द की चादर’ कह कर सम्मान दिया जाता है। इस संबंध में उन्होंने आयोजित समागमों में पूर्ण श्रद्धा से भाग लिया। नि:संदेह सैकड़ों वर्षों से गुरु साहिब की रौशन शख्सियत ने लोगों के मन में उजाला करके रखा है। आगामी समय में भी उनकी महान शख्सियत और शहादत हमारे समाज का मार्ग दर्शन करती रहेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

