संविधान की भावना

बुधवार को पुरानी संसद की इमारत के केन्द्रीय हाल में देश भर से चुने गए प्रतिनिधियों ने ‘संविधान दिवस’ मनाया। भारतीय संविधान को बने 76 वर्ष हो चुके हैं। वर्ष 1950 में संसद के इसी केन्द्रीय हाल में इसे पारित करके देश में लागू किया गया था। आज़ादी के बाद देश का संविधान तैयार करने के लिए देश भर की भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाली प्रसिद्ध शख्सियतों ने तीन वर्ष तक उस समय के दुनिया भर के देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। उन्होंने लम्बी बैठके कीं। बार-बार इसकी धाराओं को छोटा-बड़ा किया और संशोधित किया गया। पिछले साढ़े 7 दशकों में देश की संसद ने भी इसमें समय-समय पर पैदा हुई ज़रूरतों के अनुसार बदलाव किए। इस कारण भी यह लिखित संविधान आज तक समय का अनुसरणीय बना रहा है। आगामी समय में भी इसकी सार्थकता बनी रहने की सम्भावना है। इसमें मूलभूत रूप में मानवीय नैतिक-मूल्यों को अधिक महत्त्व दिया गया है। इनमें समानता, प्रत्येक नागरिक का सम्मान और प्रत्येक को न्याय देने की बात की गई है।
वर्ष 2015 में 26 नवम्बर को संविधान दिवस घोषित किया गया था और इसके बाद यह दिन मनाना शुरू हुआ। इस वर्ष 26 नवम्बर को मनाए गए इस दिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी ओर से एक भावुक पत्र जारी किया और संविधान को ‘पवित्र प्रारूप’ घोषित करते हुए कहा कि इसमें सभी नागरिकों को अवसर प्रदान करने की बात की गई है। ऐसी भावना के तहत ही उनके जैसे एक ़गरीब पृष्ठि भूमि वाले परिवार के व्यक्ति को पिछले 24 वर्ष से उच्च पदों पर बैठने का अवसर मिला है और यह भी कि संविधान की भावना ने सिद्ध कर दिया है कि भारत एक है और हमेशा एक ही रहेगा। यह भी कि संविधान ़फज़र्ों की पालना की प्रेरणा देता है। हमारे विचार के अनुसार सामाजिक और आर्थिक विकास के आधार, भारतीय संविधान की मूल भावना, आपसी भाईचारे और धर्म-निरपेक्षता के साथ-साथ समाजवादी विचारधारा की उत्तमता को प्रकट करना भी रहा है, परन्तु इस लम्बी अवधि में अनेक संशोधनों के बावजूद समय-समय इसकी आभा धूमिल ही होती रही है। क्रियात्मक रूप में इसकी यह पहुंच बनाए रखने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना शेष है।
मूलभूत रूप में सविधान आर्थिक समानता की बात करता है, परन्तु देश आज इस भावना से ज्यादा दूर खड़ा दिखाई देता है। पिछले दशकों में अमीरों और ़गरीबों का आपसी अन्तर बढ़ता दिखाई दिया है। आज भी करोड़ों ही नागरिक निर्धारित की गई ़गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमारा संविधान धर्म-निरपेक्षता की बात करता है परन्तु विगत लम्बी अवधि से लोगों में धर्म के आधार पर दरार डाली जा रही है और यह रुझान और भी बढ़ते नज़र आ रहे हैं। यह सब कुछ संविधान की आत्मा को ठेस पहुंचाने वाला है। आज समाज टुकड़ों में बंटा दिखाई देता है। साम्प्रदायिक की हवा और भी तेज़ हुई दिखाई देती है। वोटों के लिए धर्मों के अतिरिक्त जातियों, बिरादरियों का बोलबाला हुआ भी दिखाई देता है। आज हमारी राजनीतिक पार्टियां और बड़े-छोटे राजनीतिज्ञों का यह नैतिक ़फज़र् बनता है कि वह धर्मों, जातियों और बिरादारियों के आधार पर वोटों के लिए समाज को बांटने से गुरेज़ करें। बढ़ती हुई आर्थिक असमानता भी समानता और जन-इन्साफ के मार्ग में बड़ी रुकावट बनी दिखाई दे रही है।
हम भारतीय संविधान पर गर्व करते हैं। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जा रहा है, परन्तु जब तक संविधान में पेश किए गए नैतिक मूल्यों के अनुसरणीय नहीं हुआ जाता, उस समय तक देश सही अर्थों में प्रत्येक पक्ष से विकास के मार्ग पर नहीं चल सकेगा। इस लक्ष्य पर पहुंचने के लिए अभी लम्बा स़फर तय करने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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