बेरोज़गारी से निराश और परेशान है देश की युवा शक्ति

युवा शक्ति हर युग में और हर समाज में सबसे उर्वर मानी जाती रही है। आर्थिक विकास के लिहाज से भी युवा शक्ति समाज के लिए वरदान हो सकती है। सो, अगर भारत के नीति नियंता इस बात से खुश हैं कि उन्हें युवा शक्ति का अक्षय भंडार मिला है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। यह तथ्य भारत के ही लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है कि 2020 में एक औसत भारतीय की उम्र महज 29 साल होगी, जबकि औसत चीनी और अमरीकी नागरिक 37 साल का होगा।
उसी साल पश्चिम यूरोप में यह उम्र 45 साल और जापान में 48 साल होगी। 21वीं सदी में भारत की जिस प्रभावी भूमिका की चर्चा हम पिछले कुछ समय से लगातार सुनते आ रहे हैं और जिस भूमिका के लिए अब देश तैयार हो रहा है जिसका मुख्य आधार भी यही है कि भारत अब एक लंबे समय तक सबसे युवा देश बना रहने वाला है। लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि इतनी बड़ी युवा आबादी को सही दिशा कैसे दे या इतनी बड़ी युवा आबादी को राष्ट्र निर्माण के लिए सकारात्मक दिशा में कैसे मोड़ें? इस महत्वपूर्ण प्रश्न का सिर्फ एक ही जवाब है कि सम्रग्र शिक्षा और रोजगार के माध्यम से हम देश के युवाओं को सही दिशा दे सकते हैं।
जबकि अभी देश में रोजगारपरक शिक्षा न मिलने से बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। देश के श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर तैयार आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17) में कहा गया है कि रोजगार के अवसर पैदा करने की गति सुस्त हुई है । श्रम मंत्रालय के पांचवें वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वेक्षण की रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही ।
देश में बेरोजगारी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पढ़े-लिखे लोगों मे बेरोज़गारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं। रोजगार के मोर्चे पर हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि इस मसले पर वह गंभीरता से विचार करे। घोषित तौर पर सरकारी योजनाएं बहुत हैं, मगर क्या उन पर ईमानदारी से अमल हो पाता है। इसकी जांच करने वाला कोई नहीं। आखिर देश के युवा कहां जाएं, क्या करें? जब उनके पास रोजगार के लिए मौके नहीं हैं, समुचित संसाधन नहीं हैं, अधिकतर योजनाएं सिर्फ  कागज़ों में सीमित हैं।
आईटीआई पर ध्यान देने की ज़रूरत
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई है सदी की जरूरत है, उनकी इस बात का सीधा मतलब प्रशिक्षित युवा से था जिसे अपनी आजीविका चलाने के लिए कुछ काम आता हो । क्योंकि आज देश में हालात ऐसे है कि आधे से ज्यादा पढ़े-लिखे उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार हैं, उन्हें कोई काम नहीं आता, या आंशिक तौर पर जो काम आता है उसमें वो ठीक से प्रशिक्षित नहीं हैं।
वैसे तो देश में युवाओं को शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन उन सब में सबसे अहम है आईटीआई क्योंकि इसका बुनियादी ढांचा गांव और कस्बों तक मौजूद है । स्कूली स्तर पर तकनीकी व्यावसायिक वोकेशनल कोर्स के मामले में नेशनल सैंपल सर्वे के एक अध्ययन के अनुसार एक स्कूली शिक्षा के दौरान कम्प्यूटर प्रशिक्षण प्राप्त 44 प्रतिशत घर बैठे हैं। टैक्सटाइल प्रशिक्षण प्राप्त 66 प्रतिशत के पास नौकरियां नहीं हैं। स्कूलों में वोकेशनल कोर्स किए हुए सिर्फ  18 प्रतिशत युवाओं को ही संबंधित ट्रेड की नौकरी मिल पाई है  बाकी 82 प्रतिशत अपनी पढ़ाई का लाभ नहीं उठा पाए । ज्यादातर बेरोजगारी झेलने को मजबूर हैं। इस 18 प्रतिशत में से मात्र 40 प्रतिशत को ही औपचारिक शर्तों पर नौकरी मिली। जाहिर है कि शेष 60 प्रतिशत की नौकरी अस्थाई किस्म की है। नौकरियां हासिल करने वालों में 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिनके पास स्नातक अथवा उच्च डिग्री थी।
हमें यह सोचना होगा कि चाहे अधिकतर वोकेशनल कोर्स हो, आईटीआई हो, डिप्लोमा हो एइंजीनियरिंग की डिग्री हो आखिर कुछ भी पढ़ लेने के बाद बेरोजगार ज्यादा क्यों है ? सच्चाई यह है कि इन सभी जगहों पर ठीक से प्रशिक्षण प्राप्त युवा नहीं हैं। जाहिर सी बात है जिन युवाओं को कोई काम नहीं आता ऐसे में कोई कंपनी उन्हें क्यों लेगी । अगर किसी तरह से ले भी लिया तो पहले वो उन युवाओं को अपने काम के हिसाब से प्रशिक्षण देगी जिस पर उन्हें पैसे खर्च करने होगे ।
प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव
देश में युवाओं को स्किल और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए जितने भी कार्यक्रम चल रहे हैं, उनमें फिलहाल आईटीआई सबसे अहम है जिस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है ‘देश में प्रशिक्षित युवा नहीं निकल रहे हैं तो साथ में यह भी सच है कि उनकी फैकल्टी ही ठीक से प्रशिक्षित नहीं है । देश में फिलहाल  14000 आईटीआई हैं जिनमें लगभग 2000 सरकारी और 12000 प्राइवेट हैं ।
आईटीआई शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण आज भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि सिर्फ सरकार अपने 2000 आईटीआई के लिए  ट्रेनिंग उपलब्ध कराती है और इसके लिए कुछ टीचर ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट भी हैं लेकिन 12000 प्राइवेट आईटीआई के लिए टीचर ट्रेनिंग उपलब्ध कराना आज भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि निजी क्षेत्र में आज भी पर्याप्त संख्या में टीचर ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट नहीं हैं। अधिकांश प्राइवेट आईटीआई शिक्षक जब खुद ट्रेंड नहीं हैं ऐसे में वो बच्चों को कैसे ट्रेनिंग दे पायेंगे? कुल मिलाकर आईटीआई शिक्षकों के लिए टीचर ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट और गुणवत्ता के मानक स्थापित किये जाने की ज़रूरत है। आईटीआई की गुणवत्ता को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि 2012 के पहले खुले लगभग 10000 आईटीआई की गुणवत्ता को रिव्यू और असेस्मेंट कैसे किया जाए, क्योंकि अब वो  नाबेट (नैशनल ऐक्रीडेशन बोर्ड फ ार एडुकेशनल एंड ट्रेनिंग) से अपना  ऐक्रीडेशन नहीं कराना चाहते ना सरकार ही उन्हें बाध्य कर पा रही है । कुल मिलाकर देश में निचले स्तर पर सबसे पहले आईटीआई पर ध्यान देना होगा क्योंकि इसकी पहुंच समाज के निचले स्तर तक है ।
तकनीकी शिक्षा
तकनीकी शिक्षा को गुणवत्ता पूर्ण बनाने के लिए आज से कई दशक पहले गांधी जी ने कहा था कि कॉलेज में हाफ.- हाफ  सिस्टम होना चाहिए मतलब कि आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाये और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिन्दगी में कराया जाये । भारत में तो गांधी जी की बातें ज्यादा सुनी नहीं गईं पर चीन ने उनके इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया  और आज स्थिति यह है कि  उत्पादन की दृष्टि में चीन भारत से बहुत आगे है, भारतीय बाजार चीनी सामानों से भरे पड़े हैं। होली, दिवाली, रक्षाबंधन हमारे देश के प्रमुख त्यौहार है पर आज भी बाजार में सबसे ज्यादा पटाखे, राखियां, रंग और पिचकारियां चीन की ही बनी हुई मिलती हैं ।
कुल मिलाकर सरकार का मेक इन इंडिया कार्यक्रम भी तभी सफ ल हो पायेगा जब शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव किया जाएगा। वास्तव में हम अपने ज्ञान को बहुत ज्यादा व्यावहारिक नहीं बना पाए हैं । आज पूरी शिक्षा व्यवस्था में खासकर वोकेशनल कोर्स, आईटीआई, डिप्लोमा, इंजीनियरिंग में बड़े इनोवेशन की ज़रूरत है । तभी हम देश की एक बड़ी युवा आबादी को रोजगार दिला पायेंगे ।