आंखें खुल गईं


विमल के विद्यालय के बहुत सारे बच्चे जल की बर्बादी करते थे। नलों को खुला छोड़ देते थे। बार-बार बोतलों में पानी भरने जाते थे। पानी पीते कम थे, खराब ज्यादा करते थे। शौचालय के नलों से पानी बहता रहता था। पानी पीते तथा हाथ धोते समय उनको याद ही नहीं रहता था कि नलों को बंद भी करना है। विद्यालय के पौधों को सींचते समय भी वे पानी की बहुत बर्बादी करते थे। 
विद्यालय के प्रधानाचार्य, अध्यापक-अध्यापिकाएं बच्चों को सुबह ही प्रार्थना सभा, कक्षाओं में बार-बार समझाते कि वे जल का प्रयोग ठीक ढंग से करें। जल की कमी बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जल को बर्बाद न करें। बच्चों को समझाने के लिए विद्यालय में जल के प्रयोग पर भाषण प्रतियोगिता भी करवाई गई। दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में जल के बचाव के संबंध में निर्देश भी लिखवाए गए। लेकिन बच्चे कुछ ही समय में सब कुछ भूल जाते। पहले की तरह जल बर्बाद करने लगते। एक दिन विद्यालय के चपड़ासियों ने सभी कक्षाओं में आकर बताया कि आज सारा दिन पानी नहीं आयेगा। ग्रीष्म ऋतु के दिन थे। बच्चों को कहा गया कि वे घर से लाए जाने वाली पानी की बोतलों का सावधानी से प्रयोग करें। 
गर्मी बहुत ज्यादा पड़ रही थी। पानी की बोतलें जल्दी ही खत्म हो गईं। विद्यालय में पानी का उचित प्रबंध भी नहीं हो पाया। सभी बच्चे पानी के लिए तड़प रहे थे। प्रधानाचार्य ने चारों ओर फोन भी किये, लेकिन बात न बन सकी। बच्चे अध्यापिकाओं को उन्हें घर भेजने के लिए कह रहे थे। बच्चों ने पानी के बिना खाना भी नहीं खाया। उन्हें प्यास के साथ भीख भी सता रही थी। अचानक सभी कमरों में संदेश भेजा गया कि घबराएं मत, पानी का प्रबंध हो गया है। थोड़ी दी देर में नगर कौंसिल द्वारा विद्यालय में पानी भेजा जा रहा है। ये शब्द सुनकर बच्चों की जान में जान आई। वे सभी प्रसन्न हो गए। थोड़ी ही देर में विद्यालय में पानी के टैंक पहुंच गए। बच्चों ने जी भर कर पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई। छुट्टी होते ही बच्चे अपने-अपने घर को रवाना हो गए। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने सोचा कि बच्चों को सुबह की प्रार्थना सभा में पूछना चाहिए कि उन्होंने इस घटना से क्या सीखा है? प्रार्थना समाप्त होते ही बच्चों को बैठने के लिए कहा गया। प्रधानाचार्य ने बच्चों को कहा—‘बच्चो, कल पानी न मिलने की घटना से आपने क्या सीखा है, इसके संबंध में अपने-अपने विचार रखते हैं। जो बच्चा सबसे ठीक उत्तर देगा, उसे पुरस्कार दिया जायेगा। विद्यालय के बहुत से बच्चों ने अपने-अपने ढंग से उत्तर दिया। किसी ने कहा कि मैंने आज तक ऐसा पानी का संकट नहीं देखा। किसी ने कहा कि हमें पानी का प्रयोग ठीक ढंग से करना चाहिए। किसी ने कहा कि सरकार को विद्यालयों में पानी के प्रबंध की ओर ध्यान देना चाहिए। लेकिन एक बच्चे का जवाब ऐसा था जिसने सबकी आंखें खोल दीं। उस बच्चे का नाम था ‘उपेन्द्र’। उपेन्द्र ने कहा ‘साथियो, यह तो एक दिन की घटना थी। 
सावधान हो जाइए, हमारे जीवन में ऐसी घटनाएं हर रोज़ होने वाली हैं। धरती पर जल कम होता जा रहा है। एक दिन ऐसा आयेगा जिस दिन आप पानी की एक बूंद के लिए तरस जाओगे। प्रधानाचार्य ने उपेन्द्र के जवाब के लिए उसे पुरस्कार दिया।
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