एक ऐतिहासिक उपलब्धि
संसद के नए भवन में संसदीय कामकाज के पक्ष से शुरुआत अच्छी रही है। इस भवन में पहला बिल महिला आरक्षण का पारित हुआ है। बिल सिर्फ पारित ही नहीं हुआ, अपितु इसे लोकसभा तथा राज्यसभा में भारी समर्थन मिला है। लोकसभा में 456 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट डाले हैं जबकि केवल 2 सदस्यों ने इसके विरोध में वोट डाले हैं। दूसरी तरफ राज्यसभा में तो उपस्थित सभी के सभी 214 सांसदों ने इस बिल के पक्ष में वोट डाले हैं। इस तरह सभी पार्टियों के सांसदों के भारी समर्थन से यह बिल पारित हो गया है तथा अब औपचारिक तौर पर राष्ट्रपति की स्वीकृति से यह बिल कानूनी रूप ले लेगा।
यह बिल संसद के दोनों सदनों में 128वें संविधान संशोधन बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) के तौर पर पेश हुआ था। लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों सदनों में इस बिल पर भरपूर बहस हुई। भाजपा तथा उसके जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल भागीदारों ने इसका श्रेय स्वयं लेते हुए कहा कि पूर्व सरकारों के समय बार-बार महिलाओं को लोकसभा तथा विधानसभाओं में आरक्षण देने के लिए बिल पेश किए जाते रहे हैं परन्तु वह प्रक्रिया अलग-अलग कारणों के चलते अधर में ही रुक जाती रही थी, परन्तु अब भाजपा सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति से महिलाओं को लोकसभा तथा विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण मिल सका है। दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इस बिल के तो पक्ष में थीं परन्तु इसके साथ-साथ वे यह ज़रूर चाहती थीं कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों से संबंधित महिलाओं को इस बिल में दिए गए एक तिहाई आरक्षण के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं को भी आरक्षण के दायरे में लाया जाये। कुछ विपक्षी पार्टियां यह भी चाहती थीं कि राज्यसभा तथा राज्य विधान परिषदों में भी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए। इसके साथ ही विपक्षी पार्टियां यह भी चाहती थीं कि इस बिल को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले ही क्रियात्मक रूप में कानून बना कर लागू कर दिया जाए। अभिप्राय महिलाओं को आगामी लोकसभा चुनाव में ही आरक्षण का लाभ मिले, परन्तु पारित किए गए इस बिल में यह व्यवस्था की गई है कि बिल कानून बनने के बाद 2029 के लोकसभा चुनावों तक ही लागू हो सकेगा। इससे पहले पूरे देश में जनगणना करवाई जाएगी। जनगणना अपने निधारित समय के अनुसार 2021 में होनी थी परन्तु कोरोना तथा कुछ अन्य कारणों के दृष्टिगत सरकार यह जनगणना करवाने में असफल रही। अब 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद पहले देश में जनगणना करवाई जाएगी। उसके बाद जनसंख्या के आने वाले आंकड़ों के आधार पर लोकसभा तथा विधानसभा क्षेत्रों का पुन: परिसीमन होगा तथा उसके बाद ही महिलाओं को दिए गए 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उन्हें मिल सकेगा।
इस सन्दर्भ में हमारा यह विचार है कि चाहे महिलाओं को लोकसभा तथा विधानसभाओं में आरक्षण का लाभ 2029 के बाद ही मिलेगा, परन्तु फिर भी देश की आधी जनसंख्या को लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का एक अहम फैसला है, क्योंकि पहले किए जाते ऐसे यत्न बार-बार असफल होते रहे हैं। जबकि देश भर में स्थानीय सरकारों के रूप में जाने जाते पंचायती तथा नगर संस्थानों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण पहले ही दिया जा चुका है। उससे निचले स्तर पर उक्त संस्थानों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व तथा भागीदारी में वृद्धि हुई है तथा उसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इसी तरह लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से देश के राजनीतिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में महिलाओं का प्रभाव बढ़ेगा, महिलाओं को राष्ट्रीय स्तर तथा प्रदेश स्तर पर महत्त्वपूर्ण राजनीतिक फैसले लेने के अवसर मिलेंगे।
नि:संदेह देश की आज़ादी के बाद धीरे-धीरे महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं। बिना आरक्षण से भी महिलाओं ने राजनीतिक क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। हमारे देश में श्रीमती इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला तथा अब तक दो बार देश के राष्ट्रपति पद पर भी महिलाएं ही पहुंची हैं। कई राज्यों में मुख्यमंत्री के पद पर भी महिलाएं विराजमान रही हैं तथा अब भी पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी धड़ल्ले से अपने पद की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं। राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर महत्त्वपूर्ण मंत्रालय भी महिलाएं चलाती रही हैं। इस समय शिक्षा, प्रशासन, न्याय जहां तक कि सुरक्षा सेवाओं में भी महिलाएं प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं। कई बड़ी-बड़ी व्यापारिक कम्पनियों में भी महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं। अब लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में इनका प्रतिनिधित्व बढ़ने से उनमें और भी अधिक उत्साह पैदा होगा तथा वे और भी ज़िम्मेदारी से अपनी भूमिका निभाएंगी, परन्तु इसके साथ-साथ यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अभी भी भारतीय समाज को पुरुष प्रधान समाज ही समझा जाता है। समाज में महिलाएं बड़ी सीमा तक आज भी असुरक्षित हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से अक्सर महिलाओं के साथ, यहां तक कि बालिकाओं के साथ भी दुष्कर्म या ऐसे कृत्यों के बाद उनकी हत्या करने के हृदय-विदारक समाचार सामने आते हैं। जो कुछ मणिपुर में घटित हुआ, वह भी देश के समक्ष है। इसलिए हम जहां महिलाओं को लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिए जाने का स्वागत करते हैं वहीं यह भी प्रतीत होता है कि भारतीय समाज में महिलाओं को समान स्थान देने तथा उन्हें पूरी तरह सुरक्षित करने की चुनौती आज भी देश के सामने है। हमें इस चुनौती के समकक्ष बनना पड़ेगा तभी भारत एक बेहतर समाज तथा एक बेहतर देश कहला सकेगा।