होती दुनिया उसी से शुरू, बेटी रब्ब का वो वरदान है
राष्ट्रीय बेटी दिवस पर विशेष
अकसर हम बातें तो बहुत करते हैं, रचनाएं तो बहुत लिखते हैं, नारे भी बहुत लगाये जाते हैं, बेटियों के हक में, नारी शक्ति के लिए, बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार देने के लिए परन्तु आज भी बहुत से स्थानों पर ह़क़ीकत इन सब बातों के साथ मेल नहीं खाती।
परन्तु आज इस लेख द्वारा हम इन सभी बातों से हट कर कुछ और खास बात करना चाहते हैं। आज का लेख उन सभी बेटियों को समर्पित है जो अपने परिवारों को मज़बूत बनाती हैं और साथ ही यह लेख उन सभी परिवारों को भी समर्पित है, जो बेटी की शक्ति, उसके महत्व को अपनी ज़िंदगी में सचमुच सम्मान देते हैं।
‘राष्ट्रीय बेटी दिवस’ मनाने का म़कसद माता-पिता और बेटियों के मध्य महत्वपूर्ण सांझ को उजागर करना, बेटियों के अस्तित्व का जश्न मनाना, उनके प्रति प्यार को ज़ाहिर करना और जो खुशी वे सभी की ज़िंदगी में लाती हैं, वह खुशी उनको वापिस देने के लिए प्रयास करना।
एक बेटी वास्तव में अपने परिवार के लिए स्तम्भ का काम करती है। वह परिवार के लिए भावनात्मक स्तम्भ बन कर उभरती है। एक बेटी बचपन से अपनी बात जो सभी के हित में होती है, पूरे हक और ज़ोर के साथ परिवार के सामने रखती है। उसकी ज़िद में उसकी बात पूरी करवाने में कोई भी स्वार्थ या निजी म़कसद नहीं होता। वह सिर्फ और सिर्फ अपनों के लिए एक ताकत की तरह उभरने की कोशिश करती है।
परिवारों में बेटियां शांति के दूत की भूमिका बखूबी निभाती हैं। आपसी मनमुटाव को खत्म करने के लिए हर समय तैयार रहती हैं और इसको बड़ी सरलता से सुलझाने की कोशिश करती हैं।
अकसर सुनते हैं कि लड़के वंश को आगे चलाते हैं, परन्तु यह सोच अब उन परिवारों की नहीं रही जो इस ह़क़ीकत को मान चुके हैं कि बेटी परिवार की विरासत को आगे बढ़ाती है। पारिवारिक परम्पराओं का पालन करते हुए, उनको सम्भालने की भूमिका एक बेटी बखूबी निभाती है। एक बेटा और बेटी की मनोभावना, घर वालों के प्रति दृष्टिकोण अलग ज़रूर होता है पर दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर बखूबी रोल निभाते हैं, परन्तु बेटी भावनाओं की अभिव्यक्ति खुल कर करती है और ज्यादा आपसी सांझ बनाने वाली होती है।
एक महिला हमेशा चाहती है कि उसकी एक बेटी ज़रूर हो, क्योंकि जो उसने खुद बचपन से लेकर बड़े होने तक अपने परिवार खास तौर पर मां-बाप के लिए महसूस किया होता है, वह सब कुछ अपने लिए भी चाहती है। वह एक लड़की के अंदर की भावनात्मकता की असली धड़कन से अवगत होती है और हमेशा चाहती है कि अपनी बेटी द्वारा वह इसको महसूस करे, उसको अपनी बेटी से वही सम्मान मिले जो अपने बड़ों के लिए वह रखती आई है।
बेटियां बहुत जल्दी और छोटी आयु में स्यानी हो जाती हैं। आज तेज़ बढ़ते समय के साथ बच्चे बहुत जागरूक हो गये हैं। एक बेटी यदि और कुछ न भी करे परन्तु मुश्किल समय की घड़ी में जब हर बात समझ कर मानसिक आसरा दे तो उस समय माता-पिता, खास तौर पर एक मां का जीवन सफल हो जाता है और मुश्किल घड़ी में से निकलने का रास्ता आसान हो जाता है। बेटियां अकेले परिवार ही नहीं समाज, देश की तरक्की और उन्नति में भी बहुत रोल निभा रही हैं।
एक बेटी पढ़-लिख कर हमेशा अपने मां-बाप का नाम रोशन करना चाहती है और हमेशा एक ख्याल उसके मन में रहता है कि चाहे वह नौकरी करे या घर की देखभाल करने वाली हो, वह हर काम को बहुत ही सम्पूर्णता के साथ करने की इच्छा रखती है। हर समय अपने माता-पिता द्वारा दी गई कुर्बानियों और प्रयत्नों के प्रति शुक्राना करने की कोशिश करती है। हमेशा कुछ कर दिखाने का ज़ज्बा रखती है। इसी कारण आज देश की बेटियां बहुत उच्च मुकाम पर पहुंच गई हैं, बड़े पद संभाल रही हैं, और देश का गौरव बढ़ा रही हैं।
बेटी वो शक्ति है जो मां, बहन, पिता और भाई की भी भूमिका ज़रूरत पड़ने पर निभा सकती है। उसकी हमेशा कोशिश रहती है कि परिवार में सब ठीक रहे और वह अंत तक सबको जोड़ कर रखने की इच्छा रखती है। जैसे कि लेख के शुरू में बताया गया था, यह लेख किन परिवारों और बेटियों को समर्पित है— एक बार फिर प्रत्येक उस मां-बाप और परिवार जिनको बेटी नसीब हुई है, को अपील है कि उसके अस्तित्व की कद्र करो। बेटी सिर्फ एक परी बन कर ज़िंदगी रोशन करने के लिए भगवान द्वारा ही नहीं भेजी गई, बल्कि वह एक ऐसी गोंद का काम भी करती है, जो परिवार के दिल की धड़कन को एक बना कर आपस में जोड़ कर रखती है। अंत: ‘राष्ट्रीय बेटी दिवस’ के मौके पर भगवान का शुक्रिया करें और अपने-आप को किस्मत का धनी मानें कि हमें बेटी का दात मिली है क्योंकि यह वह हीरा है जिसका मूल्य हमें ज़िंदगी के हर दिन के साथ पता लगता रहता है। निम्नलिखित पंक्तियों में बहुत सच्चाई छुपी है, बात सिर्फ समझने और मानने की है।
* बेटी-भगवान द्वारा भेजा गया वो तोह़फा है, जो पूरी उम्र दोस्त की तरह हमारी ताकत बनती है।
* धीयां तों बिनां
ना वेहड़े सहाउंदे ने
धीयां नाल ही
घर च बहार हुंदी
इह तां
दुख वंडाउणा जानदियां ने
मुर्ख ने
लोग जिहड़े कहिंदे
धी भार हुंदी।
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