पुरी व उज्जैन स्थित साक्षी गोपाल मंदिर

 साक्षी गोपाल जहां भी हैं, उनके दर्शन करना शास्त्रों में अनिवार्य माना जाता है। तभी इस स्थान की य़ात्रा पूर्ण होती है। यह स्थान पुरी से लगभग 17 किमी की दूरी पर है। खुर्दा रोड स्टेशन से भी जा सकते हैं। मंदिर के निकट चंदन सरोवर है। उस में स्नान किया जाता है। फि र इस के दर्शन कर अपने को सफ ल माना जाता है। मंदिर के बाहर गरुड़ स्तंभ भी है। मंदिर के दोनों ओर राधा तथा श्याम कुण्ड हैं। मंदिर बहुत ही सुंदर है व पास ही राधा मंदिर है। इस की कथा भी अद्भुत है।  एक समय वहां का एक सम्पन्न ब्राह्मण वृद्ध होने पर तीर्थ यात्रा के लिये वृंदावन चला तो उसके साथ एक अति निर्धन ब्राह्मण युवक भी साथ हो गया। उस समय यात्रायें पैदल होती थीं। मार्ग भी विकट होते थे। खाने-पीने का प्रबंध भी अपने-आप करना होता था। उस निर्धन युवक ने सारी यात्रा में धनी वृद्ध ब्राह्मण की पूरी देखभाल व सेवा की। इससे ब्राह्मण प्रसन्न हुआ व उस ने वृंदावन में भगवान गोपाल मंदिर में कहा, मैं वापिस लौटने पर तुम्हारे साथ अपनी कन्या का विवाह करूंगा। जब कई वर्षों के बाद दोनों पुरी आये। तो युवक ने विवाह की बात कही। धनी ब्राह्मण ने अपना विचार अपने परिवार के समक्ष रखा तो उस के बेटे नहीं माने व उस युवक का अपमान भी किया। अपमानित होने पर उन्होंने अपनी बात पंचों के पास रखी। वहां पर प्रमाण मांगा गया तो उस ने कहा, उस समय भगवान गोपाल ही जानकार थे। इस पर सब हंसे और विवाह न हो सका। अपना अपमान होने पर युवक पुन: वृंदावन गया। वहां भगवान के समक्ष अपनी सारी बात रखी व प्रार्थना की, आप को मेरे साथ उत्कल प्रांत में चलना होगा। वहां पर पंचों को बताना होगा। 
भगवान उस की बात व अटल विश्वास से प्रसन्न हुये। उन्होंने उसे रात को सपने में दर्शन दिये व कहा, ‘मैं तुम्हारे साथ चलूंगा और साक्षी भी दूंगा। जब मैं चलूंगा तो मेरे घुंघरुओं की रुन-झुन तुम को सुनती रहेगी पर तुम पीछे नहीं देखना। यदि तुमने पीछे देखा तो मैं वहां पर ही स्थिर हो जाऊंगा।’ युवक मान गया। प्रात: दोनों ने चलना शुरू किया। अटक के पास पुलअलसा गांव में जब पहुंचे तो वहां पर रेत थी और युवक को भगवान गोपाल के पदचिन्हों की ध्वनि नहीं सुनाई दी। इस कारण उस ने पीछे देखा। शर्त के कारण गोपाल भगवान वहां पर ही स्थिर हो गये। फिर वह युवक पंचों व गांव के लोगों को वहां लाया। कहते हैं, भगवान गोपाल ने सब के समक्ष धनी ब्राह्मण के वचन को दोहराया। तब उस का विवाह हुआ व भगवान वहीं रम गये। कई वर्षों के बाद कटक के महाराजा एक विजय के बाद लौटे तो मूर्ति को देख कर उस को जगन्नाथ मंदिर में ले आये व वहां पर उसे स्थापित कर दिया। प्रतिदिन जगन्नाथ में लगने वाले प्रसाद को भगवान गोपाल पहले ही ग्रहण कर लेते थे। फिर भगवान जगन्नाथ ने पुजारियों को सपने में कहा—राधा के बिना मैं यहां अकेला नहीं रह सकता। कहते हैं, इसके बाद गोपाल के पुजारी बिल्वेश्वर के यहां एक कन्या पैदा हुई। उस का नाम लक्ष्मी रखा गया। जब वह षोड्शी हुई तो कई अद्भुत व चमत्कारी घटनायें घटने लगीं। कभी गोपाल की माला लक्ष्मी के शयन कक्ष में तो कभी लक्ष्मी के आभूषण गोपाल मंदिर में मिलते। यह बात सर्वत्र फैलने लगी। आश्चर्य तो इस बात का कि मंदिर बंद होता, फिर भी वस्तुयें वहां पर पाई जातीं। राजा तक बात पहुंची। राजा ने इस बात को राज दरबार में रखा। उन्होंने राय दी कि मंदिर में राधा की मूर्ति स्थापित की जाये। मूर्ति स्थापना का दिन नियत हुआ। कहते हैं, जब मंदिर में मूर्ति स्थापित हुई, उसी दिन पुजारी की कन्या का देहांत हो गया तथा राधा की मूर्ति उसी दिन अपने आप लक्ष्मी में बदल गई। 

—सुदर्शन अवस्थी इन्दु