कॉफी की खोज की कहानी

आज कॉफी पीना सभी पसंद करते हैं। कॉफी पीते ही फुर्ती और ताजगी आ जाती है। कॉफी वाली टॉफियां भी बाजार में उपलब्ध हैं। पूरे संसार को अपनी सुगंध, स्वाद व ताजगी की विशेषता से अभिभूत कर देने वाली कॉफी की खोज कैसे हुई, क्या यह तुम जानते हो? आओ इस बार में बात करें। कॉफी की खोज एक अरबी गड़रिये ने की थी और यह खोज भी अचानक हो गई थी। एक दिन वह जंगल में बकरियां चरा रहा था। उसने एक झाड़ी में छोटे-छोटे फल देखे। उसके देखते-देखते ही बकरियां वह फल खा गईं। फल खाने के कुछ क्षण बाद वे उछल-कूद मचाने लगी। गड़रिये को लगा कि उस फल में कोई खास बात है। उसने भी एक फल तोड़कर उसके बीज चबाकर देखे। उसे भी कुछ पल बाद ताजगी और फुर्ती महसूस हुई। उसने शाम को वापसी के बाद  यह बात अपने एक परिचित फकीर को बताई। अगले दिन फकीर ने भी वह फल चखकर देखा। फकीर को भी अपने शरीर में नई ऊर्जा और फुर्ती का अनुभव हुआ। उसने फिर फल के बीज पीस कर पेय बनाया और अपने साथी फकीरों को पिलाया। उन्हें भी वैसा ही अनुभव हुआ। इसके बाद उस फल का उपयोग इंसानों में बढ़ने लगा। यह फल कॉफी का था। धीरे-धीरे इसका प्रचलन बढ़ने लगा। कॉफी की खोज की यही कहानी विश्व भर में जानी जाती है मगर कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि कॉफी का पहला पौधा चीन में खोजा गया और वहां से दुनिया के अन्य देशों में कॉफी गई। कॉफी अरब में खोजी गयी हो या चीन में मगर आज यह दुनिया भर में पी और पसंद की जाती है। इसकी खेती भारत सहित दुनिया भर के तमाम देशों में होती है पर ब्राजील की यह प्रमुख खेती है। कॉफी का पौधा सदाबहार होता है और इस पर तीन-चार वर्ष की उम्र में फल आते हैं। यूं तो पौधा 4-5 मीटर ऊंचा होता है मगर कॉफी के बगीचों में इसे लगभग दो मीटर तक ही ऊंचा होने दिया जाता है। इसका फल पहले हरे रंग का तथा पकने पर लाल रंग का होता है। कॉफी पाउडर बनाने के लिए पके फल से बीज निकालकर भूने जाते हैं। फिर इन्हें पीस लेते हैं। पिसने के बाद इन्हें जार, शीशी या पाउच में पैक किया जाता है। इसमें कैफीन नामक तत्व प्रमुख है। इसके कारण हमें कॉफी पीने पर ताजगी व स्फूर्ति का अनुभव होता है। यह थकान को तुरंत विदा करने का काम करती है। यह गर्म प्रकृति की होती है इसलिए सर्दी के मौसम में अधिक पी जाती है। आज रेस्टोरेंट में हमें पीने के लिए गर्म या ठण्डी कॉफी उपलब्ध है। विश्व का पहला कॉफी हाउस सन 1650 में ऑक्सफोर्ड (लंदन) में खुला था। 

—अयोध्या प्रसाद ’भारती‘