मुश्किल है महिला के लिये पुरुष जैसा नज़र आना   भक्ति राठौर 

अन्ना  के ताऊ की भूमिका निभाने के लिये आपने एक पुरुष का वेश बनाया है। आगे आने वाले ट्रैक के बारे में कुछ बतायें।
-अभी जो कहानी चल रही है उसमें उर्मिला, अभिषेक और गायत्री को मिलाने के मिशन पर है और इसके लिये वह कई तरह के आइडियाज लेकर आती है। जैसे-जैसे ट्रैक आगे बढ़ेगा, उर्मिला का एक आइडिया उसी पर भारी पड़ने वाला है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिये और अन्ना  के फैसले को बदलने के लिये, उर्मिला और बाकी सभी अन्ना के ताऊ को लाने की योजना बनाते हैं। ताऊ एकमात्र ऐसे इंसान हैं जोकि अन्नात को किसी चीज के लिये भी मना सकते हैं। सब इस बारे में सोच रहे होते हैं कि कैसे ताऊ को यहां लाया जाये या फिर उनके साथ क्यास हुआ होगा और वह जिंदा भी हैं या नहीं। अपने अलग अंदाज में उर्मिला चीजों को अपने हाथ में लेने का फैसला करती है और अंत: खुद ताऊ का रूप धारण कर लेती है।
एक पुरुष की तरह कपड़े पहनना कितना आसान या कितना मुश्किल है?
-यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह की भूमिका निभाने वाले हैं। महिलाओं के लिये पुरुषों के कपड़े पहनना बहुत ही मुश्किल काम है जैसे कि पुरुषों के लिये महिलाओं के वेश में आना। कर्व्स को दिखाना उसे छुपाने से ज्यादा कठिन है। इसके साथ ही पुरुषों और महिलाओं की कद-काठी में काफी फर्क होता है। इसलिये, महिलाओं के लिये वास्तविक रूप में पुरुषों की तरह नज़र आना ज्यादा मुश्किल है।  ताऊ के किरदार के साथ, उस वास्तविकता को लाना उसे और भी मुश्किल बना रहा है। चूंकि, वह अन्ना के आदर्श हैं तो उन्हें  उनसे ज्यादा प्रभावशाली होना होगा। अन्नाह की खुद की छवि काफी सशक्त है और ऐसे में यह और भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि ताऊ का डील-डौल प्रभावशाली और मजबूत नज़र आये।
  ताऊ की भूमिका के लिये क्या  आपने कोई खास तैयारी की?
-मुझे हमेशा से ही अन्ना का किरदार पसंद रहा है। मैं तो छुप-छुपकर देवेन भाई को परफॉर्म करते हुए देखती हूं क्योंकि हेट्स ऑफ  प्रोडक्शन से जुड़े बाकी कलाकारों की तरह ही उनकी बेहतरीन तैयारी है। मैं उन्हें एक सीनियर कलाकार के रूप में अपना आदर्श मानती हूं और बतौर कलाकार, निर्देशक उन्होंने कुछ बेहद कमाल के काम किये हैं। कई बार तो वह खुद किरदारों की स्केचिंग करते हैं। इसलिये, मुझे जब भी मौका मिलता है मैं उनसे सीखने की कोशिश करती हूं और यही चीज मैंने ताऊ के किरदार के लिये भी किया है। कई बार ऐसा होता है मैं उनके साथ बैठकर कुछ खास मराठी शब्दों के बारे में उनसे पूछती हूं या फिर कुछ किरदारों की कुछ बारीकियों को समझती हूं।