कृषि का मशीनीकरण-समय की ज़रूरत

प्रवासी खेत मज़दूरों का आगमन कम होने तथा स्थानीय खेत मज़दूर उपलब्ध न होने के कारण खेत मज़दूरों की दिहाड़ी बढ़कर शिखर पर पहुंच गई है। कई स्थानों पर 400-450 रुपए तक पहुंच गई है। बिजाई और कटाई जैसे आपरेशनों का समय कम होकर बहुत सिकुड़ गया है। इससे कृषि मशीनरी का महत्व बहुत बढ़ गया है।  आम चर्चा है कि इस समय पंजाब के किसानों की ज़रूरत से अधिक पूंजी कृषि मशीनों की लागत के तौर पर लगी हुई है। ट्रैक्टरों की संख्या पांच लाख से ऊपर पहुंच गई है, जिन पर किसानों की 2000 करोड़ रुपए की लागत है। कम्बाईन हारवैस्टर 12300 के लगभग है तथा इन पर 1700 करोड़ रुपए तक की लागत है। लेज़र लैंड लैवलर, ज़ीरो टिल ड्रिलें, हैपीसीडर, रिज़ तथा बैड प्लांटर, शूगरकेन हारवैटर, कॉटन पिकर तथा अन्य कृषि औज़ार एवं बूंद सिंचाई तथा छिड़काव करने वाली मशीनों और सिस्टम पर अलग लागत है। नैशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एण्ड रूरल डिवैल्पमेंट (नाबार्ड) ने इस वर्ष (2019-2020) कृषि क्षेत्र की मशीनों पर 4678 करोड़ रुपए का ऋण दिया। डा. मनमोहन कालिया संयुक्त डायरैक्टर (कृषि मशीनरी) कृषि और किसान कल्याण विभाग के अनुसार फसलों की कटाई तथा बिजाई का समय असंभावित मौसम होने के कारण बहुत कम हो गया है। इसलिए ट्रैक्टरों तथा कम्बाइनों की संख्या ज़रूरत से अधिक नहीं कही जा सकती और न ही इन मशीनों पर ज़रूरत से अधिक लागत है। ज़रूरत इस बात की है कि ट्रैक्टरों के मालिक यह सेवा दूसरे छोटे किसानों को किराये पर उपलब्ध करें। कोई किसान जिसकी भूमि 15 एकड़ से कम हों, ट्रैक्टर न लें। एक ट्रैक्टर कम से कम 30-40 एकड़ रकबे का प्रबंधन करे। कृषि और किसान कल्याण विभाग हरित क्रांति के आगाज़ के बाद कृषि मशीनों और औज़ारों पर सब्सिडी मुहैया करता रहा है, जिसमें औज़ार तथा पावर टिलर भी शामिल थे। परन्तु गत दो वर्षों के दौरान इसमें बदलाव आया है। अब महत्व पराली और धान, गेहूं के अवशेषों के प्रबंधन को दिया जा रहा है। विभाग द्वारा गत दो वर्षों में धान की पराली के प्रबंधन के लिए 51709 मशीनें दी गईं, जिनमें से 23100 मशीनें इसी वर्ष (2019-20) में दी गई और शेष 28609 वर्ष 2018-19 के दौरान। धान (गैर-बासमती) की काश्त अधीन 22.91 लाख हैक्टेयर रकबा है, जिसमें से कृषि और किसान कल्याण विभाग के अनुसार इस वर्ष 2019-20 के दौरान 14.40 लाख हैक्टेयर रकबे पर पराली को आग नहीं लगाने के लिए सफलता मिली। भविष्य में भी पराली के प्रबंधन संबंधी मशीनें देने के लिए सरकार का झुकाव जारी रहेगा, क्योंकि पराली को आग लगाने की प्रथा (जो प्रदूषण और भूमि की उपजाऊ शक्ति के कम होने के लिए ज़िम्मेदार हैं) पर काबू पाने का लक्ष्य है। पंजाब सरकार ने केन्द्र सरकार से इसलिए पराली को आग न लगाने संबंधी किसानों द्वारा किये जा रहे अधिक खर्च का मुआवज़ा सौ रुपए प्रति क्विंटल किसानों को देने के लिए सहायता मांगी है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह सहायता पंजाब को देने के लिए अपने पत्रों 25 सितम्बर और 2 नवम्बर, 2019 द्वारा मांग की है। पराली को भूमि में जज्ब करके इसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ाने और किसानों का 3,000-4,000 रुपए प्रति एकड़ खर्च आ रहा है। प्रगतिशील धान-बासमती की काश्त करने वाले किसान गुरमेल सिंह गैहलां (संगरूर) का कहना है कि किसानों को पिछले धान के सीज़न में बहुत नुक्सान उठाना पड़ा। उन्होंने 1500 करोड़ रुपए प्रति एकड़ मशीनों को देकर पराली की गांठें बंधवा लीं, जो किसी पावर प्लांट ने नहीं संभालीं। अभी भी यह गांठें कई खेतों में पड़ी हैं। स्टेट अवार्डी और धान संबंधी पंजाब सरकार के साथ कृषि कर्मन पुरस्कार प्राप्त करने वाले राजमोहन सिंह कालेका ने मांग की है कि पराली की डिस्पोज़ल के लिए गांठें बांधने वालों को पावर प्लांटों के साथ समझौता करना चाहिए, तब ही किसानों को यह सेवा प्रदान करने के बदले 1500 रुपए प्रति एकड़ चार्ज करना चाहिए। सरकार की योजनाओं में भी इस प्रबंधन को शामिल करने की ज़रूरत है। पी.ए.यू. सम्मानित बलबीर सिंह जड़िया कहते हैं कि कृषि में आई स्थिरता तोड़ने के लिए और किसानों के पम्पिंग सैटों को होने वाले खर्चों की कमी के लिए उत्पादकता बढ़ाने की ज़रूरत है। डाक्टर कालिया के अनुसार खेत मज़दूरों की कमी के कारण आ रही समस्या पर काबू पाने के लिए मशीनरी ही एक रास्ता है। छोटे किसानों के पास मशीनें भी नहीं हैं और सरकार द्वारा सब्सिडी देकर स्थापित किए ग्राहक सेवा केन्द्र भी इतने नहीं हैं कि उनको मशीनें ज़रूरत के समय किराये पर मुहैया हो सके। अन्य कस्टम सर्विस केन्द्र खोलने की ज़रूरत है और जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और मशीनें हैं, उनको अपने आसपास के छोटे किसानों को किराये पर यह सेवा मुहैया करनी चाहिए। इससे उनकी मशीनें भी लाभदायक होंगी और जो अब पूरी इस्तेमाल नहीं हो रही, उनका लाभदायक प्रयोग होगा। बासमती तथा कुछ अन्य फसलों की कटाई अधिकतर स्थानों पर आज भी हाथों से की जाती है। खेत मज़दूरों से करवाई गई कटवाई बासमती की फसल का मूल्य मंडी में अधिक मिलता है। खेत मज़दूरों की सुविधाओं के लिए छोटे औज़ार जैसे दातरी, खुरपा आदि को आधुनिक बनाने संबंधी भी सरकार द्वारा विचार होना चाहिए। दातरी को अधिक निपुण और कम शक्ति से कटाई करने के योग्य बनाया जाए। इस समय दातरी सौ रुपए तक बिक रही है, परन्तु इस पर लोहा लगाकर स्थानीय मिस्तरियों द्वारा मज़बूत तो बना दिया गया है, परन्तु इसको तेज़ और आसानी से फसल काटे जाने वाला औज़ार बनाने की ज़रूरत है। हरित क्रांति के बाद पंजाब में जो दातरी इस्तेमाल होती थी, उसका वज़न 260 ग्राम था, जबकि जापानी दातर का वज़न 100 ग्राम था। छोटी कृषि मशीनें तथा औज़ार किसानों को मुहैया करने के लिए छोटी इकाइयों और निर्माताओं की विशेष भूमिका है, इसीलिए चाहे ट्रैक्टर बड़ी इकाइयों में बनाए जाते हैं, परन्तु उनके औज़ार छोटी इकाइयां और मकैनिक ही तैयार करते हैं। इन औज़ारों के संबंध में खोज मज़बूत करने की ज़रूरत है, ताकि छोटी इकाइयों और मिस्तरियों को सही दिशा मिल सके और वह उनको और निपुण बना सकें। छोटी इकाइयों तथा मिस्तरियों की इस क्षेत्र में विशेष भूमिका है। कम्बाइन हारवैस्टरों के निर्माता पंजाब में अधिक छोटी इकाइयां ही थीं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में खोज करके कम्बाईन हारवैस्टरों को निपुण बनाया। 

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