रंगों में घुले इतिहास का रोमांचक स़फर दिल्ली का लोधी रोड

दिल्ली जिसे भारत का दिल कहा जाता है, एक ऐतिहासिक शहर है। इसे ऐतिहासिक बनाने में बड़ी भूमिका इतिहास के अलग-अलग कालखंडों की कुछ चुनिंदा धरोहरों की है। जिसमें तमाम स्मारक और कुछ रवायतें शामिल हैं। दिल्ली का मशहूर लोधी रोड ऐसे ही ऐतिहासिक स्मारकों और रवायतों को आपस में जोड़ने वाली एक ऐसी सड़क है, जिसका हर पत्थर अपने आप में एक दस्तावेज़ है। यूं तो दिल्ली में आपको 8वीं शताब्दी के राजपूतों के आर्किटेक्चर से लेकर अंग्रेजों की बनाई गई 19वीं शताब्दी की इमारतें भी भरपूर तरीके से अपना ध्यान खींचती मिल जायेंगी, लेकिन बीच-बीच में मुगलों के भी कुछ ऐसे तोहफे हैं जिन्हें बस आप देखते ही रह जाते हैं। लोधी रोड में ऐसे कई तोहफें हैं जिन तक पहुंचने के कारण यह सड़क अपने आप में पर्यटकों के लिए एक मंजिल बन जाती है। दिल्ली की घटनाओं से भरे, शानदार और आश्चर्यजनक इतिहास की झलकी देने वाले कई स्मारक इसी लोधी रोड में हैं। इनमें सबसे मशहूर लोधी गार्डन है। कई इतिहासकार महज कुछ किलोमीटर लंबी इस सड़क में पैदल चलने को इतिहास के सबसे आश्चर्यजनक किस्सों से दो-चार होना कहते हैं। इसी रोड पर जो करीब एक किलोमीटर के दायरे में फैला गार्डन है, जिसे लोधी गार्डन कहते हैं। जिसे हम आज लोधी रोड कहते हैं, उसका अस्तित्व 14वीं शताब्दी में भी था, एक धूल भरे रास्ते के रूप में। लेकिन आज यह रोड इतिहास के कई महत्वपूर्ण मोड़ों को आपस में जैसे जोड़ने का काम करती है। निजामुद्दीन से अपने जोरबाग तक के सफर में लोधी रोड इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं से गुजरती है। यह सड़क आगे बढ़ते हुए इंडिया हैबिटेट सेंटर, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर से आगे निकल जाती है और मथुरा रोड से जाकर मिलती है, जहां आपको हुमायूं का मकबरा मिल जाएगा। इसके आसपास के क्षेत्रों में मकबरों, पुस्तकालय, व शॉपिंग के लिए दुकानों की भरमार है। इसलिए छाता उठाओ, अपने वॉकिंग शूज पहनो और सफदरजंग मकबरे की ओर निकल पड़ो। आप जैसे ही सदर दरवाजे में प्रवेश करेंगे खुद-ब-खुद आपका हाथ अपने कैमरे की ओर चला जाएगा। मेहराब के बीच में से मकबरा धूप की रोशनी में स्पष्ट दिखाई देता है। इसके आसपास जो पेड़ हैं, वह संतरी से प्रतीत होते हैं। मकबरे के चारों तरफ गार्डेन हैं। जब आप इसके अंदर प्रवेश करते हैं तो आपको एहसास होगा कि इस इमारत में अपूर्णता का बोध होता है। ताजमहल से प्रभावित होकर इस मकबरे को 1753 व 1754 के बीच मिर्जा मुकीम अबुल मंसूर खां उर्फ  सफदरजंग के लिए बनाया गया था। मुगल परंपरा में बनाई गई यह आखिरी इमारत है। इसके किनारे जो तीन छोटे पवेलियन जंगली महल, मोती महल व बादशाह पसंद बने हुए हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वह बाद में सोचकर बनाए गए हों। इसमें समरूपता का अभाव है, लेकिन इस कमी को लाल व बफ स्टोन की दीवारें पूरा कर देती हैं जो कि केन्द्रीय गुम्बद व टेरेस को सहारा देने के लिए बनाई गई हैं। केन्द्रीय गुम्बद की दीवारें बहुत पतली हैं। उन पर यहां आने वाले प्रेमी जोड़ों ने अपने नाम लिखकर अपने को अमर करने का प्रयास किया है। बहरहाल, यहां सबसे शानदार है
आर्कियोलॉजिकल लायब्रेरी जो कि मुख्य दरवाजे के ऊपर है और इसमें तुगलक वंश से सम्बंधित चीजें संग्रहित की गई हैं। मकबरे के बाद जो चौराहा आता है उसे पार करने पर आप चौड़ी सड़क पर आ जाएंगे जो नीम के पेड़ों से विभाजित है। सफदरजंग से दूर जाते हुए आप अपने बाएं में मुहम्मद शाह के मकबरे से गुजरेंगे और दाएं में जोरबाग बाजार है। अगर आप किताबी कीड़ा हैं या आपको भूख लग रही है तो बाजार में चले जाएं। यह बाजार ‘द बुक शॉप’ के लिए विख्यात है जो कि 1970 में स्थापित स्वतंत्र बुक स्टोर है। इस बाजार में स्टीक हाउस है, दिल्ली का कोल्ड स्टोर है और दोनों ही छोटे छोटे हैं, किताबें व डिब्बों में रखी चीजें जगह के लिए संघर्ष करती प्रतीत होती हैं, लेकिन जो आप तलाश रहे हैं वो पल भर में मिल जाता है। आपको जो खाना है उसे लीजिए और फिर जल्दी से बाहर निकलकर लोधी गार्डन में प्रवेश कर जाइए। यह गार्डन 500 वर्ष पुराने लोधी व सैयद सुलतानों के मकबरों के आसपास बना है। लोधी गार्डन दिल्ली का वनस्पति हृदय है। इस 90 एकड़ के गार्डन में 200 से अधिक प्रजातियों के 7000 से अधिक पेड़ हैं व चिड़ियों की 50 से अधिक किस्मे हैं। सिकंदर लोधी के मकबरे के करीब की पहाड़ी पर बैठ जाइए और अतपुला पुल के नीचे बत्तखों को तैरते हुए देखिए, आपको लगेगा ही नहीं कि आप दिल्ली में हैं। जब एक बार आप इन परीकथाओं से बाहर आ जाएं तो शॉपिंग कीजिए। मेहरचंद मार्केट की शुरूआत ऐसे बाजार के रूप में हुई थी, अब यह ऐसा कूल बाजार है जहां लोग अपना साइनबोर्ड टांगना पसंद करते हैं। लोधी गार्डन से 20 मिनट के वॉक पर यह बाजार स्थित है। यहां आप चमकदार रंगों की पतलूनें, डिजाइनर फर्नीचर, अलमारी, बेबी शॉवर गिफ्ट, हाथ के बने लेदर शूज आदि आसानी से खरीद सकते हैं। यह बाजार घर में सजाने की चीजों की भी जन्नत है। बहरहाल, जब सूरज उतरने लगे तो आप हुमायूं के मकबरे की ओर निकल पड़े, जिसे हुमायूं की पत्नी हाजी बेगम ने 1565 व 1566 के बीच बनवाया था। ताजमहल इसी मकबरे से प्रेरित है। टिकट खरीदने के बाद आप ईसा खान के मकबरे में अवश्य जाएं जिसे शेर खान के एक दरबारी के लिए बनवाया गया था। बाजार में खरीदारी के बाद यहां जाने से आप रिलेक्स हो जाएंगे और आगे के सफर के लिए तैयार भी। जैसे ही आप दो मंजिल वाले दरवाजे में प्रवेश करें, मुख्य मकबरे की ओर जाने के लिए तो एकदम दांए में एक बैंच हैं, उस पर बैठकर फोटो अवश्य खिंचवाएं, शानदार नजारे का फोटो आएगा। सूरज डूब रहा है, तीन तरफ  फारस के गार्डन खिले हुए हैं, दाएं तरफ  यमुना बह रही है, फव्वारे चल रहे हैं और शाम की अजान की आवाज निजामुद्दीन दरगाह से आ रही है। इस अजान को सुनते हुए निजामुद्दीन की गलियों में प्रवेश कर जाएं, खासकर अगर जुमेरात की रात हो। कबाबों की खुशबू आपके इस सफर को महका देगी 100 वर्ष पुराने दस्तरखाने करीम के शामी कबाब का स्वाद लेते हुए दरगाह में कव्वालियों का मजा लीजिए और याद कीजिए कि आपका यह सफर कितना शानदार रहा।