चिन्ताजनक घटना-क्रम

यदि पहले ही अत्यधिक उलझी हुई ताणी की गांठें और दृढ़ हो जाएं तो उन्हें खोलना बहुत कठिन हो जाता है। ऐसी ही स्थिति में आज सरकार और प्रशासन फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि स्थिति में सुधार नहीं हो रहा। इस मामले में कई बातें बहुत हैरान एवं परेशान करने वाली हैं। ऐसा कुछ पिछले दिनों तीन ज़िलों तरनतारन, अमृतसर एवं गुरदासपुर में घटित हुआ था। इनमें से तरनतारन ज़िला अधिक प्रभावित हुआ। अकेले इस ज़िले में ही विषाक्त शराब पीने से 92 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी। इस अतीव दुखद घटना ने जहां प्रशासन को भारी चिन्ता में डाला था, वहीं सरकार को भी भारी नमोशी झेलनी पड़ी थी।
जो सरकार नशों को खत्म करने के वचन पर बनी हो परन्तु अपने इस वायदे को सम्पन्न न कर सकी हो, जिसने निरन्तर इस दिशा में यत्न भी किए हों, परन्तु नशे का व्यापार कम होने की बजाय बढ़ता चला गया हो, जिसके अपने ही नेता इस मामले पर सरकार की आलोचना करने लगे हों, जिसके कारण समूचा प्रशासन रक्षात्मक नीति पर आ खड़ा हुआ हो, उस समय 100 से भी अधिक लोगों की विषाक्त शराब पीने से मृत्यु हो जाने के कारण स्थिति का बिगड़ना स्वाभाविक बात है। यदि आज अधिकतर विरोधी दल इस मामले को लेकर सड़कों पर उतरे हुए हों, यदि वे निरन्तर धरने दे रहे हों तथा प्रदर्शन कर रहे हों, तो उनकी बात में बल महसूस होता है। 31 जुलाई के बाद दो-तीन दिनों में घटित हुई इस घटना का सेंक निचले धरातल से लेकर ऊपर तक प्रशासन को महसूस हुआ था। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह स्वयं तरनतारन गये थे। मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की राशि देने के साथ-साथ अन्य कई वायदे उन्होंने भरी सभा में किये थे तथा यह भी कहा था कि अब ऐसा कारोबार करने वालों को किसी भी स्थिति में छोड़ा नहीं जाएगा। इस हेतु पुलिस को पूरी तरह से सतर्क करने के आदेश भी दिये गये थे, परन्तु लोगों के साथ इससे बड़ा उपहास एवं ज्यादती क्या हो सकती है कि मुख्यमंत्री के विदा होते ही यह व्यापार पुन: उसी तरह चलने लग पड़ा हो। इससे साफ प्रकट होता है कि इस धंधे में इतनी कड़ियां जुड़ चुकी हैं तथा वे इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि उन्हें तोड़ना सरकार के बस की बात नहीं रहा। 
यदि चोर एवं साध मिल गये हों तो आम आदमी की ़खैर नहीं है। यह बात निश्चित है कि यदि ऐसे काले धंधेबाज़ों को राजनीतिक संरक्षण न हो एवं पुलिस इस धंधे के साथ न जुड़ी हो, तो इसे जारी रखना सम्भव नहीं हो सकता। यदि माहौल ऐसा है तो शिकायत किसके पास की जाए? कौन ऐसी शिकायतों को सुनने वाला है? यदि सुन भी ले तो इस पर क्रियान्वयन कौन करेगा? इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि उसी क्षेत्र में अवैध शराब का धंधा पुन: चलने लगा है। यह सामने भी आ गया है। 31 जुलाई को घटित इस कांड में तरनतारन ज़िले के गांव पंडोली गोला में विषाक्त शराब पीने से 10 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी, परन्तु उसके बाद भी इस गांव में यह धंधा निरन्तर चलते रहने के कारण 18 दिन बाद अर्थात् 18 अगस्त को इसी गांव के एक रिक्शा चालक दिलबाग सिंह की विषाक्त शराब पीने से मृत्यु हो गई। दूसरे दिन इसी गांव में ऐसी शराब पीने से दूसरे व्यक्ति की भी मृत्यु हो गई तथा इसके साथ-साथ अन्य कई व्यक्ति गम्भीर स्थिति में अस्पताल में दाखिल हैं, जिनकी आंखों की रोशनी खत्म हो रही है। पता चला है कि इसी गांव का सरपंच जिसका संबंध कांग्रेस पार्टी के साथ है, वह स्वयं तो इस मामले में भगौड़ा है परन्तु उसका परिवार एवं अन्य साथी निरन्तर इस विष को गांव में बांटते रहे हैं। इसका ज़िक्र दो अन्य मरने वालों के परिवारों के सदस्यों ने किया है तथा अन्य बहुत-से गांव वासी भी इस बात की गवाही देते हैं कि विषाक्त शराब बेचने का यह कारोबार निरन्तर जारी है। ज़िले के 92 व्यक्तियों के मरने के बाद पुलिस कुछ हरकत में आई थी परन्तु परनाला वहीं का वहीं रहा। 
यदि पूरा तंत्र ही भ्रष्ट हो गया हो तो फिर लोगों का भगवान ही रक्षक हो सकता है। दोबारा घटित इस कांड ने लोगों को गम्भीरता से यह सोचने के लिए विवश अवश्य कर दिया है कि प्रत्येक ढंग से इस मामले का हल निकाला जाना चाहिए। उनकी ओर से किये गये प्रयास किस सीमा तक समूचे भ्रष्ट तंत्र को सुधारने में सफल होंगे, इस बारे में तो निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, परन्तु जन-प्रशासन को इस दिशा में कड़े कदम उठाने के लिए विवश अवश्य कर सकते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द