हरसिमरत का त्याग-पत्र

केन्द्र सरकार द्वारा जून महीने में घोषित कृषि से संबंधित तीन अध्यादेश किसानों के भारी विरोध के बावजूद लोकसभा में पारित हो गए हैं। ऐसी ही उम्मीद थी क्योंकि सदन में भाजपा को बहुमत प्राप्त है। इसलिए मोदी सरकार द्वारा इस दिशा में किये जा रहे यत्न सफल हो गए हैं। कुछ वर्ष पूर्व बनाई गई शांता कुमार कमेटी ने भी मंडियों के ढांचे को तोड़ कर कृषि उत्पादन के खुले व्यापार की बात की थी। भाजपा भी एक देश एक मंडी के हमेशा पक्ष में रही है। पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्रों में भी इस बात पर बल दिया था।संसद में यह बिल पारित हो जाने के उपरांत लगभग 50 वर्ष से चल रहे मंडी प्रबंध का एक तरह से भोग पड़ जाएगा। जिस तरह इन बिलों में ़फसल के उत्पादन से लेकर उसको खरीदना, भंडारण या आगे उसकी खपत करने का खाका बनाया गया है, उससे स्पष्ट ज़ाहिर है कि धीरे-धीरे स्थापित मंडियां समाप्त हो जाएंगी। चाहे आज भी प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय कृषि मंत्री यह वादा कर रहे हैं कि न्यूनतम खरीद मूल्य जारी रहेगा परन्तु अगर मंडियां ही कमज़ोर पड़ गईं, अगर इनका पूरा प्रबंध ही बिखर गया तो फसलों के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य की घोषणा का क्या अर्थ होगा? केन्द्र सरकार पहले ही दो दर्जन के लगभग फसलों पर न्यूनतम खरीद मूल्य की घोषणा करती है परन्तु क्रियात्मक रूप में उनकी कोई परवाह नहीं की जाती। दशकों पूर्व जब देश में अनाज की कमी थी, भुखमरी के बादल छाये हुए थे, सरकार को विदेशों से अनाज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था तो उस समय पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से ऐसी योजनाएं बनाई गईं थी, जो अधिक से अधिक फसल का उत्पादन करने के लिए किसानों को उत्साहित करे। इसी योजना के तहत मंडियां बनीं। सरकार द्वारा फसलों के न्यूनतम मूल्य घोषित किए जाने लगे। खादों, बैंकों और संबंधित मशीनरी हेतु विशेष योजनाओं की घोषणा की गई। पंजाब ने इस प्रबंध को अपना कर उस समय देश के लिए अधिक से अधिक अनाज का उत्पादन किया। इस छोटे से राज्य ने समय-समय पर देश के अनाज भंडारण हेतु 68 प्रतिशत से भी अधिक अपना योगदान डाला। आज इस पक्ष से स्थिति बदल गई है। सरकार अपनी अनाज से संबंधित योजनाओं के लिए ही खाद्य भंडारण करना चाहती है। इस प्रकार से वह फसलों की खरीद से स्वयं ही पीछे हटने के यत्न में है। अर्थात निजी व्यापारी ये फसलें खरीदें और उनकी खपत करें, सरकार की इस खरीद संबंधी कोई ज़िम्मेवारी न हो। ये तीनों बिल ऐसी सोच से ही बनाये गए हैं, जिनका प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पांच दशकों से चल रही मंडियों और मंडीकरण के प्रबंध पर पड़ेगा। किसान को बड़े व्यापारियों से अपनी फसल के लिए सौदे करने पर विवश होना पड़ेगा। उनको खरीद के एक निश्चित प्रबंध में से निकल कर अनिश्चित प्रबंध में जाना पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा प्रभाव छोटे किसानों पर पड़ेगा, जो बड़ी सीमा तक व्यापारियों के रहमो-करम पर ही रह जाएंगे। ऐसी व्यवस्था धरातल पर कृषि व्यवसाय को पूरी तरह से बिखेर कर रख देगी। पंजाब में बड़ी संख्या छोटे किसानों की है, इस कारण ही आज इस क्षेत्र के किसान बेहद बेचैन दिखाई दे रहे हैं। उनको ऐसी योजनाओं पर विश्वास नहीं है। उनको अपना भविष्य अनिश्चित महसूस होता है।केन्द्र की भाजपा नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में शिरोमणि अकाली दल (ब)भागीदार है। इसलिए पिछले समय में अकाली नेतृत्व इन अध्यादेशों के विरुद्ध खड़े होने संबंधी हिचकिचाहट दिखाता रहा है। अब इस संबंध में बड़ी बेचैनी को भांपने और अन्य विपक्षी पार्टियों के व्यवहार को देखने के बाद अकाली दल ने ज़मीनी वास्तविकता को पहचानते हुए मोड़ काटा है। लोकसभा में पेश इन बिलों का अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने बेबाकियत से विरोध किया है। इसी तर्ज पर केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से त्याग-पत्र देने की घोषणा की है। इस घोषणा से जहां पार्टी कतारों में खुशी उत्पन्न हुई है, वहीं आने वाले समय में भी अकाली दल द्वारा बनने वाले इन कानूनों के विरुद्ध पूरे विश्वास से खड़े होने की सम्भावना बन गई है। हम हरसिमरत कौर बादल के इस फैसले पर बड़ी संतुष्टि का प्रकटावा करते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द