सरकार किसानों को संतुष्ट करे

एक ओर देश में निरंतर बढ़ता कोरोना का प्रभाव, बुरी तरह से लड़खड़ा चुकी आर्थिकता और चीन से बढ़ रहा टकराव आदि घटित हो रही कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो बहुत  चिन्ताजनक भी हैं और चुनौतीपूर्ण भी। इन घटनाओं के दौरान ही मोदी सरकार की ओर से जिस प्रकार कृषि संबंधी तीन विधेयकों को कानूनी रूप दिया जा रहा है, उसने पूरे देश की राजनीति को गर्मा दिया है। सरकार की ओर से इनके प्रति दिखाई जा रही जल्दबाज़ी के कारण उसकी नीति एवं नीयत पर संदेह पैदा होता है।कोरोना महामारी के दौरान देश भर में जारी पाबंदियों के होते हुए कृषि संबंधी तीन अध्यादेश जारी करने की जल्दबाज़ी, इसके बाद संसद के संक्षिप्त अधिवेशन में जल्दबाज़ी में इन विधेयकों को हर तरीके से पारित करवाने के यत्नों ने जहां विरोधी पार्टियों को सरकार की इस नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाने का बड़ा अवसर दिया है, वहीं इसने समूचे देश की कृषि मानसिकता पर भी बड़ा प्रभाव डाला है। संसद के दोनों सदनों में पास किए गए इन विधेयकों से यह प्रभाव भी स्पष्ट हो गया है कि सरकार मौजूदा मंडी व्यवस्था को खत्म करना चाहती है तथा उसकी अपेक्षा चाबियां बड़े व्यापारियों को सौंपने की जल्दबाज़ी में दिखाई दे रही है। आज छोटा किसान तंगी, कमी में जीवन व्यतीत करते हुए भी अपनी भूमि का स्वयं मालिक है। कल को बड़े व्यापारियों के साथ किये गए फसल अथवा ठेका खेती के समझौतों में यह थोड़ी बहुत भूमि भी उसके हाथों से खिसकने की आशंका बनी रहेगी। जितनी देर व्यापारी के साथ उसका समझौता (कान्ट्रैक्ट) होगा, उतनी देर उसके मन में अपनी ज़मीन होने का एहसास कम होगा। किये गये समझौतों में उसकी थोड़ी बहुत निश्चित आमदन भी अनिश्चितता में बदल जाएगी। आज देश में 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं। उनके साथ उनके परिवारों के अतिरिक्त किसी न किसी ढंग से अन्य करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं। सरकार की इन कानूनों के माध्यम से बनाई गई योजनाएं किसान की कृषि संबंधी थोड़ी बहुत बची निश्चितता को अनिश्चितता को बदलने का ही आधार बनेगी। अपनी ज़मीन से किसी भी तरह दूर होने का एहसास किसान में रोष उत्पन्न करता है। इस बात की समझ मोदी सरकार को आनी चाहिए। मंडी ढांचे में उत्पन हुआ बिखराव छोटे किसान की स्थिति को स्थिर नहीं रहने देगा। यह सिथति बिखराव वाली ही बनी नज़र आएगी। चाहे इन पास किये गये विधेयकों का प्रभाव अधिकतर पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश पर ही पड़ेगा परन्तु समूचे देश के किसान एवं अधिकतर विरोधी पार्टियां भी इसके विरुद्ध अपनी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही हैं। पहले लोकसभा में और फिर राज्यसभा में अधिकतर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने इनके विरुद्ध डट कर आवाज़ उठाई है। सरकार की ओर से इन्हें पास कराये जाने की जल्दबाज़ी ने हालात को और भी खराब कर दिया है। यही कारण है कि पहले लोकसभा में और अब राज्यसभा में स्थिति हंगामापूर्ण बन गई है। इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप राज्यसभा के 8 सदस्यों को पूरे अधिवेशन के लिए मुअत्तिल करने का फैसला किया गया है। ये सदस्य  कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी एवं आम आदमी पार्टी से संबंधित हैं। इन पार्टियों के अतिरिक्त शिव सेना, कम्युनिस्ट पार्टी, जनता दल (सैक्युलर) आदि भी इन कृषि विधेयकों का विरोध कर रही हैं। इन सब का प्रभाव यही है कि मोदी सरकार बड़े पूंजीपतियों के हाथों में खेल रही है। पंजाब और हरियाणाके दर्जनों किसान संगठनों के साथ-साथ अधिकतर राजनीतिक पार्टियां भी इस मामले पर सरकार के विरुद्ध सक्रिय होकर लामबंदी कर रही हैं। उत्पन्न हुआ ऐसा माहौल अतीव चिन्ताजनक है। इसकी मोदी सरकार को समझ आनी चाहिए तथा उसे इसका संतोषजनक हल निकालना चाहिए क्योंकि इस समय ऐसा भीतरी टकराव देश  को और भी कमज़ोर करने में सहायक होगा।

           —बरजिन्दर सिंह हमदर्द