पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

ज़िला लुधियाना (पंजाब) के खन्ना शहर में  21 वर्षीय एक युवक पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 363 (अपहरण) व 366ए (नाबालिग लड़की को विवाह के लिए फुसलाना) के तहत पुलिस ने मुकद्दमा कायम किया। युवक पर आरोप था कि अपनी 17-वर्षीय फर्स्ट कज़िन का विवाह के इरादे से अपहरण करके वह लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा है। संबंधित युवक व किशोरी दो सगे भाइयों की संतान होने के नाते आपस में फर्स्ट कज़िन हैं। बहरहाल, युवक ने अग्रिम ज़मानत हेतु अदालत में दस्तक दी, लेकिन पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में फर्स्ट कज़िन के बीच विवाह को (और लिव-इन रिलेशनशिप भी) कानूनन अवैध घोषित कर दिया।इस मामले में राज्य सरकार ने अग्रिम ज़मानत का विरोध किया था,जबकि युवक ने अपने व अपनी कज़िन के लिए अपने परिवारों से सुरक्षा की मांग की थी। हाईकोर्ट ने राज्य को सुरक्षा प्रदान करने का तो आदेश दिया, लेकिन साथ ही स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं को अगर उन्होंने कानून का कोई उल्लंघन किया है तो कानूनी कार्यवाही से सुरक्षित नहीं करता है। इस मामले में अगली सुनवायी 11 जनवरी को होगी। युवक की याचिका के साथ लड़की की अर्जी भी नत्थी की गई थी, जिसमें उसने कहा था कि उसके माता-पिता का प्यार अपने लड़कों के प्रति था, उसे अनदेखा किया जाता था, जिस कारण उसने अपने दोस्त के साथ रहना शुरू किया।लड़की की याचना के मुताबिक उसे डर था कि उसे परेशान किया जायेगा और उसके मन की शांति को भंग किया जायेगा। याचिका में युवक ने यह भी कहा कि जब लड़की 18 वर्ष की हो जायेगी तो वह उससे शादी कर लेगा। लेकिन जब सरकारी वकील ने अग्रिम ज़मानत का विरोध करते हुए यह कहा कि लड़की नाबालिग है और याचिका में इस तथ्य को छुपाया गया है कि लड़का व लड़की फर्स्ट कज़िन हैं, जिससे वह हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत सपिंड की प्रतिबंधित श्रेणी में आते हैं,फलस्वरूप एक-दूसरे से विवाह नहीं कर सकते।इस पर न्यायाधीश अरविंद सिंह सांगवान ने कहा, ‘दोनों पार्टियों के वकीलों की बात सुनने के बाद मुझे लगता है कि वर्तमान याचिका में भी याचिकाकर्ता ने यह तथ्य जाहिर नहीं किया है कि वह ...का फर्स्ट कज़िन है और, इसलिए, वर्तमान याचिका में यह आग्रह कि जब वह 18 वर्ष की हो जायेगी तो वह दोनों आपस में शादी कर लेंगे, कानून की दृष्टि से अवैध है।’ इस आदेश से इतना तो स्पष्ट हो गया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत फर्स्ट कज़िन न आपस में शादी कर सकते हैं और न लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह विशेष विवाह अधिनियम के तहत आपस में विवाह कर सकते हैं? जवाब है नहीं।विशेष विवाह अधिनियम अंतरजातीय, अंतरधार्मिक  या अन्य देश के नागरिकों के विवाह के लिए है। इस संदर्भ में दोनों पार्टियां पर्सनल लॉ से शासित होंगी और चूंकि वह प्रतिबंधित श्रेणी (सपिंड) में आती हैं, इसलिए आपस में शादी नहीं कर सकतीं। फर्स्ट कज़िन व करीबी रक्त संबंधियों में विवाह करने से बीमारियां लग जाती हैं या विरासत में मिलती हैं। अब ‘बोर्न इन ब्रैडफोर्ड’ रिपोर्ट से यह बात सामने आयी है कि करीबी रिश्तेदारी या फर्स्ट कज़िन्स के  बीच जो शादियां होती हैं, उनकी संतानों (3 प्रतिशत) में जेनेटिक त्रुटि की आशंका होती है जो कि गैर रक्त संबंधी विवाहों की संतानों (1.6 प्रतिशत) की तुलना में लगभग दो गुणी अधिक होती हैं। यह विस्तृत समीक्षा डा. एमोन शेरिडन (इंग्लैंड) ने ऐसे 11,000 से अधिक बच्चों के अध्ययन के आधार पर की है जो करीबी रिश्तेदारी या फर्स्ट कज़िन्स के बीच शादियों से उत्पन्न हुए थे। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने आदेश से समाज के एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे को सार्वजनिक बहस का विषय बना दिया है। इस पर समाज, विज्ञान आदि सभी पहलुओं से देशव्यापी चर्चा होने के बाद संसद को कानून बनाना चाहिए।

                  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर