गुरु साहिब के फलस़फे की प्रासंगिकता

समाज को जीवित रखने एवं समय के समकक्ष बनाये रखने के लिए लगातार इन्कलाबों की ज़रूरत होती है। जिन समाजों में ऐसा अमल रुक जाता है, उनमें जड़ता आ जाती है। सामाजिक बुराइयां लोगों पर भारी हो जाती हैं। उनके जीवन की दिशा नव्य और संतुलित नहीं रहती। इस सन्दर्भ में ही आज से 550 वर्ष पूर्व इस धरती पर श्री गुरु नानक देव जी के  प्रकाश को समझा एवं विचारित किया जा सकता है।
श्री गुरु नानक देव जी के समय का भारतीय समाज जाति-पाति में बंटा हुआ था। शासक वर्ग द्वारा आम लोगों का शोषण होता था। उनके मानवीय अधिकारों का उल्लंघन होता था। देशी-विदेशी शासक अपनी सल्तनतें कायम करने या उनमें वृद्धि करने हेतु एक-दूसरे के साथ न खत्म होने वाले युद्धों में व्यस्त थे। इस अमल में भी साधारण लोगों पर बहुत जुल्म एवं अत्याचार होते थे तथा उनका भारी जन एवं आर्थिक नुकसान भी होता था। समाज के बड़े भागों में अनपढ़ता तथा जहालत फैली हुई थी। महिलाओं से बेहद भेदभाव भरा व्यवहार किया जाता था। जातियों के विभाजन के साथ-साथ समाज में बड़े स्तर पर धार्मिक कट्टरता भी फैली हुई थी। इस्लाम धर्म को मानने वाले शासक, मौलवी एवं मौलाना अपने धर्म को श्रेष्ठ समझते थे एवं ज़ुल्म और अत्याचार के ज़रिये अपने धर्म का प्रचार करने या दूसरे धर्मों के लोगों को अपने धर्म में लाने का भी उनके द्वारा समर्थन किया जाता था। लोधी वंश के शासकों द्वारा गुरु साहिब के समय हिन्दू धर्म के धार्मिक स्थानों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदें या अन्य इस्लामिक संस्थान बनाने का भी सिलसिला चलता रहा था। गुरु साहिब के समय में ही बाबर द्वारा भारत पर कई हमले किए गए और यहां अपनी सल्तनत कायम करते हुए उसके द्वारा बड़े स्तर पर लोगों पर अत्याचार भी किया गया। गुरु साहिब ने बाबर के ज़ुल्म का ज़िक्र ‘बाबर वाणी’ में भलि-भांति किया है। हमारी ओर से यह पूरा विवरण इस कारण दिया गया है ताकि गुरु साहिब की फिलासफी एवं एक बेहतर समाज के निर्माण हेतु उनके द्वारा किये गये व्यापक यत्नों को सही सन्दर्भ में समझा जा सके एवं वर्तमान स्थितियों में उनकी प्रासंगिकता के महत्त्व पर भी विचार किया जा सके। अपने समय की उपरोक्त सभी स्थितियों को समझते हुए गुरु नानक देव जी ने जब सुल्तानपुर लोधी से उदासियों का सिलसिला शुरू किया तो उनका लक्ष्य बड़ा स्पष्ट था। उन्होंने स्पष्ट निर्धारित कर लिया था कि उनका मिशन क्या है। वह एक नये समाज का निर्माण करना चाहते थे, जिसमें धार्मिक कट्टरता न हो अपितु मनुष्य को उसके कर्मों एवं अमलों के आधार पर ही मान-सम्मान मिले। इस संबंध में यह साखी बड़ा महत्त्व रखती है कि श्री गुरु नानक देव जी जब बेईं नदी पर स्नान करके बाहर आए तो उन्होंने ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान’ का कथन उच्चारण किया था। अपनी मक्का  यात्रा के समय भी जब मुसलमान विद्वानों और हाजियों के साथ उनकी विचार-चर्चा हुई तो उनसे पूछा गया कि ‘हिन्दू बड़ा है या मुसलमान’ तो उस समय भी उन्होंने यही कहा था कि शुभ अमलों के बिना दोनों ही दुख उठाते हैं। उनके इस उत्तर का स्पष्ट अर्थ यह था कि मनुष्य का महत्त्व उसके धर्म के आधार पर नहीं होता, अपितु उसके शुभ अमलों के आधार पर होता है। अपनी चार उदासियों के दौरान गुरु साहिब ने दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में लोगों को धार्मिक कट्टरता से ऊपर उठ कर प्यार एवं सद्भावना के साथ रहने का उपदेश दिया था। गुरु साहिब ने अपने समय में जाति-पात पर आधारित भेदभाव का भी कड़ा विरोध किया। जाति के घमंड को एक तरह का विष करार देते हुए उन्होंने कहा है :
‘जाती दै किया हथि सचु परखीऐ,
महुरा होवै हथि मरीऐ चखीऐ।। (अंग : 142)
उन्होंने जाति-पात के संबंध में यह भी स्पष्ट किया था कि मनुष्य की जाति-पात उसके जन्म से नहीं होती अपितु उसके कर्मों से निर्धारित होती है :
जाति जनमु नह पूछीयै सच घरु लेहु बताइ।।
सा जाति सा पति है जेहे करम कमाइ।। (अंग : 1330)
गुरु साहिब समाज में महिला जाति का भी समानता वाला दर्जा चाहते थे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके लिए समान अधिकार चाहते थे। इसी कारण उन्होंने फरमाया था, ‘सो क्यो मंदा आखिऐ जितु जंमै राजान।।’
अपने समय में गुरु साहिबान सिर्फ सामाजिक समानता नहीं चाहते थे, अपितु आर्थिक समानता भी चाहते थे एवं शासक वर्गों द्वारा लोगों पर किये जा रहे आर्थिक शोषण के भी वह सख्त खिल़ाफ थे। इसी कारण उन्होंने किरत करने, नाम जपने और वंड छकणे का सन्देश दिया था। आम लोगों का शासकों या धनाढ़्यों द्वारा किये जा रहे शोषण के संबंध में उन्होंने कहा था :
जे रतु लगै कपड़ै जामा होइ पलीतु।।
जो रतु पीवहि माणसा तिन क्यो निर्मलु चीतु।। (अंग : 140)
गुरु नानक साहिब के उपरोक्त जीवन दर्शन पर एक नज़र डालते हुए जब हम वर्तमान भारतीय समाज की ओर देखते हैं तो चाहे गुरु साहिब के प्रकाशोत्सव को 550 वर्ष हो चुके हैं, परन्तु गुरु साहिब के समय में जिस प्रकार की सामाजिक बुराइयां, कमज़ोरियां, आर्थिक असमानताएं एवं आम लोगों पर मानवीय अधिकारों के उल्लंघन की स्थितियां समाज में बनी हुई थीं, उसी प्रकार की स्थितियां आज भी हमारे समाज में देखने को मिल रही हैं। अगर हम राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष से बेहतर समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें आज भी श्री गुरु नानक देव जी की फिलास़फी की गहन आवश्यकता है। विशेष तौर पर इस समय जब साम्प्रदायिक एवं फासीवादी ताकतों द्वारा देश की राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने हेतु किये जा रहे प्रयासों के प्रसंग में गुरु साहिब के फलस़फे से रोशनी लेने की बेहद आवश्यकता है। इसलिए गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को एक परम्परा के रूप में ही नहीं मनाना चाहिए अपितु उनकी इस फिलास़फी को अपने हृदय में समा कर अपने जीवन को एक नई एवं नव्य दिशा देनी चाहिए। एक नये समानता आधारित समाज के निर्माण हेतु गुरु साहिब द्वारा आरम्भ किये गये इन्कलाब को और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। यही हमारी श्री गुरु नानक देव जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।