आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक है गणेशोत्सव
किसी भी कार्य के प्रारंभ में सबसे पहले गणेश पूजा या श्री गणेश को स्मरण करने का विधान है और वो इसलिए कि श्री गणेश को गणाधिपति या गणाध्यक्ष माना जाता है। श्री गणेश का एक नाम है गणपति जिसका अर्थ होता है समूह का नेता और श्री गणेश में देवताओं का नेतृत्व करने के सभी गुण उपस्थित हैं। इन्हीं गुणों के कारण श्री गणेश सबसे पहले पूजे जाते हैं। ऋद्धि-सिद्धि प्रदायक श्री गणेश केवल सुख-समृद्धि, वैभव एवं आनंद के ही अधिष्ठाता नहीं हैं अपितु हर प्रकार के विघ्न और कष्टों को हरने वाले तथा बुद्धि देने वाले भी हैं। चाहे कोई सामान्य व्यक्ति हो अथवा विद्वान, विद्यार्थी हो अथवा कलाकार, व्यवसायी हो अथवा उद्योगपति, स्त्री हो या पुरुष, मांगलिक कार्य हो अथवा कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करने की इच्छा, हर प्रकार की सफलता के लिए सबसे पहले श्री गणेश का ही स्मरण अथवा पूजा की जाती है। असंख्य नाम हैं श्री गणेश के लेकिन कहा जाता है कि उनके निम्नलिखित बारह नाम प्रात: दोपहर और सांयकाल लेने मात्र से व्यक्ति के सब कष्ट दूर होकर सफलता मिलती है—वक्र तुंड, एकदंत, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्र, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति और गजानन।
श्री गणेश की प्रासंगिकता मात्र धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं अपितु व्यक्ति के स्वयं के विकास, सामाजिक जीवन तथा राष्ट्र की उन्नति के संबंध में भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। गणेश की प्रतीकात्मकता अत्यंत व्यापक है और इसी व्यापकता के कारण गणेशोत्सव मनाने की परंपरा का शुभारंभ और विकास हुआ।
गणेश चतुर्थी अर्थात् गणेश जन्मोत्सव भारत के प्रसिद्ध पर्वों में से एक है। इस वर्ष यह उत्सव 10 सितम्बर से अरंभ होकर 21 सितम्बर को सम्पन्न होगा।। महाराष्ट्र और देश के दूसरे भागों में जहां महाराष्ट्र के मूल निवासी रहते हैं, वहां यह पर्व ग्यारह दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन बड़ी धूम-धाम से गणेश की सुंदर-सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और ग्यारह दिन तक पूजा-पाठ करने के उपरान्त अनन्त चतुर्दशी के दिन मूर्तियों को शोभायात्रा के रूप में नाचते-गाते हुए ले जाकर नदी, तालाब या समुद्र के किनारे जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
आज भी श्री गणेश की पूजा-अर्चना के साथ-साथ समसामयिक समस्याओं को इन आयोजनों के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया जा रहा है। कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन भी इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं और इसके ज़रिये अपना संदेश प्रसारित करते हैं। गणेशोत्सव सादगी से मनाने और इसके द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों में जागृति उत्पन्न करने के लिए भी इसी मंच का सहारा लिया जा रहा है। इससे श्री गणेश और गणेशोत्सव दोनों ही आधुनिक संदर्भ में अधिकाधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। (युवराज)