ग्लोबल वार्मिंग से नदियों का पानी भी हो रहा गर्म
जब हम कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है तो इसका मतलब होता है कि वातावरण की हवा गर्म हो रही है, लेकिन अब सिर्फ हवा ही नहीं, नदियाें का पानी भी तेज़ी से गर्म हो रहा है यानी नदियों के पानी का भी तापमान बढ़ रहा है। जिस कारण न सिर्फ नदियों के पानी में ऑक्सीजन की कमी हो रही है बल्कि उनका समूचा पारिस्थितिकी तंत्र भी बदल रहा है। हाल के दशकों में जिस तरह महासागरों का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र बदला और बिगड़ा है, उसी तरह नदियों का भी जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र संकट से घिरा है। पिछले दिनों अमरीकी शोधकर्ताओं ने इस बात का खुलासा किया है कि महासागरों के मुकाबले नदियों का पानी कहीं ज्यादा तेज़ी से गर्म हो रहा है, जिस कारण बड़े पैमाने पर नदियों में मछलियां मर रही हैं। अमेरिका के इन शोधकर्ताओं ने पे स्टेट की अगुवाई में यह अध्ययन दुनिया की 800 नदियों पर किया है और पाया है कि करीब 87 प्रतिशत नदियों में दो दशकों पहले के मुकाबले ऑक्सीजन में काफी कमी हो गई है। यह अध्ययन अब तक की किसी भी चेतावनी से ज्यादा डरावना है। इस अध्ययन के मुताबिक अगले सात दशकों में अमरीका के दक्षिणी हिस्सों की नदियों के पानी में ऑक्सीजन की इतनी कमी हो जायेगी कि मछलियों की कई प्रजातियां जिंदा नहीं बचेंगी। इस अध्ययन के सह-लेखक ली ली के मुताबिक वैज्ञानिकों को इस अध्ययन के पहले यह अनुमान नहीं था कि जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह से महासागरों का पानी गर्म हो रहा है, उसी तरह से नदियों का पानी भी गर्म हो रहा होगा। लेकिन इस अध्ययन ने आंखें खोल दी हैं। ज्यादातर उथली नदियां तापमान के बदलाव से काफी ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इनके पानी के गर्म होने की वजह से इनमें ऑक्सीजन की कमी हो रही है, जिस कारण इनका पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा रहा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक वास्तव में नदियाें का पानी हवा गर्म होने के कारण ही गर्म हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर तुरंत इसमें कमी लाने के लिए कोई कारगर उपाय न किया गया तो आने वाले सालों में दुनिया की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो सकती है। क्योंकि दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में आज भी नदियों की भूमिका लाइफलाइन वाली है। आज भी अन्न उत्पादन में नदियों की 70 प्रतिशत से ज्यादा भूमिका है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि कुछ सालों पहले नदियों में ऑक्सीजन की मात्रा 1.6 प्रतिशत की दर से कम हो रही थी, लेकिन अब यह दर बढ़ गई है और अगर तुरंत इसे रोकने के लिए कोई उपाय न किया गया, तो यह दर 2.5 प्रतिशत तक हो सकती है और अगर ऐसा हुआ तो नदियों का पानी जलीय जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक हो जायेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर