लुप्त होने के कगार पर है -शाही कठफोड़वा

एक समय था, जब ये हरीभरी धरती रंग-बिरंगे पक्षियों से गुलजार थी। यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है, सिर्फ एक शताब्दी पहले की ही बात है। लेकिन पिछली एक शताब्दी में शिकारियों ने, तस्करों ने, बदले हुए पारिस्थितिकी तंत्र ने, ग्लोबल वार्मिंग ने और ग्रीन हाउस गैसों ने पक्षियों का जीना हराम कर दिया है। पिछले सौ सालों में धरती से अगर सबसे ज्यादा कोई जीव प्रजाति गायब हुई है, तो वे पक्षी हैं। अब तक पूरी दुनिया से 10 लाख से ज्यादा वन्यजीव प्रजातियां या तो गायब हो चुकी हैं या इसके बिल्कुल कगार पर पहुंच गई हैं। ‘स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स’ रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा खतरे की तलवार रैप्टर और बत्तखों की विभिन्न प्रजातियों पर लटक रही है। लेकिन हाल के दिनों में तेज़ी से गायब होती गौरैय्या और कठफोड़वा खासकर शाही कठफोड़वा भी इसी संकट से जूझते पाए गए हैं। भारत में पिछले एक दशक में जो करीब 1400 पक्षी प्रजातियां गायब हो गई हैं या गंभीर स्थिति में पहुंच गई हैं, उनमें सबसे ज्यादा मैदानी इलाकों में अपनी उपस्थिति से वातावरण को गुलजार करने वाले रंग-बिरंगे पक्षी हैं। कठफोड़वा भी इनमें से ही एक है। 
एक जमाना था जब हम अपने आसपास कभी न कभी इस विशेष योद्धा पक्षी को कठोर पेड़ों के तनों से मुठभेड़ करते हुए देख लेते थे, उसकी रंग-बिरंगे शाही चोंच और एक खास खनकभरी आवाज से इलाका गूंजता रहता था, लेकिन अब ये कठफोड़वा शायद ही किसी भाग्यशाली को दिखता हो। भारत में 32 कठफोड़वा प्रजातियां हैं, लेकिन इनमें सबसे खास और दुर्लभ प्रजाति शाही कठफोड़वा की है, जो मैक्सिको के कैम्पेफिलस इम्पीरियलिस प्रजाति का ही विस्तार है। मगर अब बहुत मुश्किल से ही देखने को मिलता है। वास्तव में यह शाही कठफोड़वा बेखौफ अंदाज में पेड़ों के कठोर से कठोर तनों पर चाेंच मारने, उसमें छेद कर देने और फिर एक गहरी लय के साथ अपनी निकाली गई आवाज के लिए जाना जाता है। सभी कठफोड़वा ज्यादातर समय पेड़ के तनों पर ही रहते हैं और कीड़ों को खोजने के लिए पेड़ों-पेड़ों का चक्कर लगाते हैं।  ये कठफोड़वा आराम से अपने रहने के लिए शानदार घोंसला बनाते हैं। इनका घोंसला पेड़ों के तनों में चोंच से मार मारकर बनाया गया घोंसला होता है। यह गर्मी, सर्दी, बारिश और आंधी से पूरी तरह से सुरक्षित होता है। बस इनके घोंसलों में सांप के घुसने की ही आशंका रहती है, जो इनके अंडों को खा जाता है वरना कठफोड़वा का घोंसला बेहद मज़बूत और सुरक्षित होता है। इस समय जिस कठफोड़वा को लेकर पक्षी विशेषज्ञों में सबसे ज्यादा चिंता जतायी जा रही है, वह वास्तव में यही शाही कठफोड़वा है। माना जाता है कि भारत में अब मुश्किल से दो तीन दर्जन ही ये कठफोड़वा बचे हैं। पहले पूरे मैक्सिको के जंगलों में यह कठफोड़वा प्रजाति भरपूर रूप से पायी जाती थी, लेकिन वनों की कटाई और अंधाधुंध शिकारियों द्वारा इनका किया गया शिकार अब मैक्सिको में भी इसे लगभग विलुप्त कर दिया है। दुनिया की जो सबसे ज्यादा संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियां हैं, उनमें कठफोड़वा भी आता है। इनके अलावा साइबेरियन सफेद क्रेन जैसा प्रवासी पक्षी भी संकट में है। 
कठफोड़वा को तो लेकर यहां तक आशंकाएं जतायी जा रही हैं कि विशेष हाथी दांत वाला कठफोड़वा तो अब शायद गायब ही हो चुका है। क्योंकि यह सबसे ज्यादा अमरीका के लुईसियाना में हुआ करता था, लेकिन अब वहां यह एक भी देखने को नहीं मिल रहा। भारत में कठफोड़वा की जो कई प्रजातियां खतरे से घिरी हुई हैं, उसमें सफेद और काली चोंच वाले तथा लाल और पीली कलगी वाले कठफोड़वा सबसे ज्यादा संकट में है। गौरतलब है कि कठफोड़वों की पायी जाने वाली सभी प्रजातियां बेहद रंग-बिरंगी होती हैं। सब प्रजातियों की चोंच में थोड़ा बहुत फर्क है और इसी की बदौलत इनकी पहचान और वर्गीकरण होता है। ग्रेट स्लेटी से लेकर सबसे छोटी पिक्यूलेट्स तक और सबसे आम ब्लैक-रम्प्डसे फ्लेमबैक लेकर सबसे दुर्लभ अंडमान की कठफोड़वा प्रजातियां तक सबकी सब संकट में हैं। दुनियाभर में कठफोड़वा 180 प्रजातियों के पाये जाते हैं, लेकिन अब पूरी दुनिया में कोई 27-28 प्रजातियां ही बची हैं। कठफोड़वों की सबसे खास चीज उनकी चोंच होती है और जहां तक सबसे बड़े भारतीय कठफोड़वा को पहचानने की बात है तो इसका पेट सफेद होता है।
कठफोड़वा सबसे सुंदर पक्षियों में से एक है। यह काफी खुशमिजाज पक्षी भी माना जाता है। क्योंकि अकसर ये जब सूखे तने में चोंच मार मारकर थक जाता है तो लंबी सांस लेकर लय में आवाज़ निकालता है। लेकिन शायद ही अपनी लुप्त होती प्रजाति पर कभी यह खुशमिजाज और शोर मचाने वाला पक्षी इंसान से कुछ कह पाता हो। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर