खतरे में है नदियों का अस्तित्व
आज भी देश में कोई 12 हजार ऐसी छोटी नदियां हैं। केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारी नदियां तेज़ी से सूख रही हैं। नदियों में घटता बहाव कोई अचानक नहीं आया है। यह साल-दर-साल घट रहा है। लेकिन नदी धार के कम होने का सारा दोष प्रकृति या जलवायु परिवर्तन पर डालना सही नहीं होगा। हमारे देश में 13 बड़े, 45 मध्यम और 55 लघु जलग्रहण क्षेत्र हैं। जलग्रहण क्षेत्र उस सम्पूर्ण इलाके को कहा जाता है, जहां से पानी बहकर नदियों में आता है। इसमें हिमखंड, सहायक नदियां, नाले आदि शामिल होते हैं। तीन नदियां-गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय के हिमखंडों के पिघलने से निकलती हैं। इन सदानीरा नदियों को ‘हिमालयी नदी’ कहा जाता है। शेष पठारी नदी कहते हैं, जो मूलत: बरसात पर निर्भर होती हैं। देश में वर्तमान में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। इन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आपको अलग-अलग नदियों का प्रवाह देखने को मिल जाएगा। नदियां एक तरफ जहां पीने के पानी और कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं, वहीं ये जैव विविधता को बनाए रखने में भी मदद करती हैं। जीवनदायी नदियों के बारे में समय-समय पर जो सूचनाएं मिलती है वे हमारे लिए हितकर नहीं है। कहीं पर्याप्त वर्षा न होने से नदियां सूखती जा रही है तो कहीं मानव जनित कारणों से नदिया बर्बाद हो रही है। एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में हर दिन 20 लाख टन सीवेज, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट पानी में छोड़े जाते हैं। यह 6.8 अरब लोगों की पूरी मानव आबादी के वजन के बराबर है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम मानवता की भलाई के लिए अपनी नदियों को बचाएं। यह दिन नदियों के प्रबंधन, प्रदूषण व संरक्षण से जुड़े मुद्दों को हल करने से संबंधित है। इस साल की थीम सभी के लिए जल पर केंद्रित है। यह एक ऐसा दिन है जो पानी के हमारे जीवनदायी स्रोत को बचाने जश्न मनाने और अपने आसपास के लोगों को जागरूक करने के लिए समर्पित है। यदि नदियों को आर्थिक उद्देश्यों के लिए संरक्षित और उपयोग करना है, तो एकजुटता महत्वपूर्ण है और लोगों को सीमाओं के पार नदी प्रबंधन के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
आदिकाल से जीवनदायिनी रही हमारी पवित्र नदियां आज खुद दम तोड़ रही हैं। नदियों और झीलों के रूप में पानी के प्रचुर प्राकृतिक स्रोतों पर विचार करते हुए देखे तो भारत एक समृद्ध देश है। देश को नदियों की भूमि के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है, भारत के लोग नदियों की पूजा देवी और देवताओं के रूप में करते हैं। लेकिन क्या विडंबना है कि नदियों के प्रति हमारा गहन सम्मान और श्रद्धा होने के बावजूद, हम उसकी पवित्रता, स्वच्छता व भौतिक कल्याण बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं। हमारी मातृभूमि पर बहने वाली गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र व कावेरी या कोई अन्य नदी हो, कोई भी प्रदूषण से मुक्त नहीं है। नदियों के प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मनुष्यों, पशुओं, मछलियों और पक्षियों को प्रभावित करने वाली गंभीर जलजनित बीमारियां और स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने खुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर कब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हजार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के लिए उन्हें समाप्त करने की साजिश निरंतर चल रही है। गंगा एक्सप्रेस-वे से लेकर गंगा नदी के इर्द-गिर्द रहने वाले 50 हजार से ज्यादा दुर्लभ पशु-पक्षियों के समाप्त हो जाने का खतरा भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पहल पर रुक गया हो, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। गंगा और यमुना के मैदानी भागों में माफियाओं एवं सत्ताधीशों की मिलीभगत साप दिखाई देती है। नदियों के मुहाने और पाट स्वार्थों की बलिवेदी पर नीलाम हो रहे हैं। कभी गंगा के समान पवित्र मानकर लोग इसके पानी का प्रयोग भोजन बनाने में करते थे। आज गंदी व प्रदूषण के कारण खाने की बात तो छोडिये लोग नहाने से भी डर रहे हैं।