सिराज की अक्लमंदी
मुगलगढ़ के एक शाही मेहमानखाने में तीन युवक आकर ठहरे- मूसा, अहमद और सुल्तान। तीनों एक ही उम्र के थे, तो जल्द ही उनकी दोस्ती हो गई। एक दिन उन्हाेंने मिलकर शहर घूमने का मन बनाया और सुबह से ही शहर की खास जगहों पर घूमने के लिए निकल पड़े।
कई जगह देखने के बाद वह तीनों शाही बाग में पहुंचे जहां एक बड़ा तालाब भी था। उन लोगों ने सोचा क्यों न इस तालाब में नहाया जाए। बाग के दरवाजे पर एक बूढ़ा चौकीदार बैठा रहता था जो आने-जाने वालों के सामान की रखवाली करता था। उन तीनों के पास एक थैला था, उसमें तीनों ने अपने कीमती सामान आदि रखकर चौकीदार के हवाले कर दिया और चौकीदार से यह शर्त रखी कि जब तक हम तीनों साथ में नहीं आएं, तब तक यह थैला हम में से किसी को नहीं देना।
तीनाें मजे से शाही तालाब में नहाने लगे। थोड़ी देर बाद ही सुल्तान पानी से बाहर आ गया और उसने अपने दोस्तों से पूछा, ‘क्या मैं सिर पोंछने के लिए चौकीदार से तौलिया ले लूं।’ उन दोनों ने हां कर दी। उसने चौकीदार से जाकर तौलिया मांगा तो उसने देने से इंकार कर दिया। सुल्तान ने आवाज़ देकर अपने दोस्तों से कहा कि चौकीदार तौलिया नहीं दे रहा है। तब मूसा और अहमद ने तालाब में से ही इशारा कर चौकीदार को कहा कि इसे तौलिया दे दो। चौकीदार ने थैला दे दिया। थैला मिलते ही सुल्तान का मन बदल गया और वह उसे लेकर गायब हो गया।
थोड़ी देर बाद मूसा और अहमद ने चौकीदार को बुलाकर थैला मांगा। चौकीदार बेचारा घबरा गया। बोला, ‘आप लोगों ने ही तो इशारे से मुझे थैला सुल्तान को देने के लिए कहा था।’
मूसा बोला, ‘हमने तो तौलिया देने के लिए इशारा किया था।’ इस बात को लेकर उनमें झगड़ा होने लगा। बात इतनी बढ़ गई कि काबुल के काजी की अदालत तक पहुंच गई। काजी ने पूरा किस्सा सुनने के बाद चौकीदार को कसूरवार ठहराया और हुक्म दिया कि तीन दिनों के अंदर-अंदर थैला लौटाया जाए। इस फैसले से चौकीदार बहुत दुखी हो गया। वह घर पहुंचा तो भी बहुत परेशान था। वह चौकीदार अपने छोटे से पोते सिराज के साथ रहता था। जब सिराज ने उनसे उदासी का कारण पूछा तो चौकीदार ने अपनी सारी परेशानी उसे सुनाई।
सिराज बड़ा ही समझदार बच्चा था। थोड़ी देर सोचता रहा फिर हंसकर अपने दादा से बोला, ‘मैं आपको इस मुसीबत से छुटकारा पाने की तरकीब बता सकता हूं।’
चौकीदार ने कहा, ‘बताओ बेटा, तुम क्या कर सकते हो अपने बूढ़े दादा के लिए।’
उसने अपने दादा से कहा, ‘जिन लोगों का थैला गायब हो गया है, उन्होंने आपसे शर्त रखी थी कि जब तीनों साथ में आएं तो ही आप उन्हें थैला वापिस दें। कल आप अदालत में कहें कि मैं थैला देने के लिए तैयार हूं लेकिन शर्त के मुताबिक जब तीनों साथ में आएंगे तो ही मैं वह लौटाऊंगा।’
यह बात सुन पोते की अक्लमंदी पर बूढ़ा चौकीदार खुशी से उछल पड़ा। उसकी सारी परेशानी दूर हो चुकी थी। सुबह चौकीदार ने अदालत में जाकर अपने पोते की बताई हुई तरकीब के अनुसार सब कुछ कह दिया।
काजी साहब ने चौकीदार की दलील को स्वीकारा और दोनों नौजवानों से कहा, ‘वादे के मुताबिक तुम अपने तीसरे दोस्त को भी ले आओ और अपना थैला वापस ले लो।’ उन्होंने चौकीदार को भी थैला गायब करने के इल्जाम से बरी कर दिया।
बूढ़ा चौकीदार खुशी-खुशी घर लौटा और अपने अक्लमंद पोते को गले से लगा लिया। (उर्वशी)