हृदय परिवर्तन
चुन्नू अपनी दादी मां के पास एक छोटे कस्बे में रहता था। उसके चाचा और दादा पास शहर में नौकरी करते थे। चुन्नू के माता-पिता एक दुर्घटना में मारे जाने के कारण चुन्नू को अपनी दादी के पास रहना पड़ता था। जब तक चुन्नू छोटा था, अपनी दादी के साथ-साथ रहता, छोटे-मोटे कामों में मदद करता और आज्ञाकारी बच्चे की तरह रहता था।
थोड़ा बड़ा होने पर चाचा ने उसके पास के एक स्कूल में डाल दिया। अब चुन्नू रोज खुशी-खुशी स्कूल जाता और वापिस आकर दादी को स्कूल की बातें बताता और सो जाता। शाम को थोड़ा खेल कर दादी की मदद करता। हर शनिवार को सुबह से बहुत प्रसन्न रहता कि आज चाचा और दादा शहर से आयेंगे, मेरे लिए खाने को और कुछ अन्य चीज़ें लायेंगे।
ज्यों-ज्यों चुन्नू बड़ा होने लगा, उसकी मित्रता कस्बे के कुछ शरारती बच्चों से बढ़ती गई। अब चुन्नू का न तो पढ़ाई में उतना ध्यान लगता, न दादी की मदद में। दादी पर भी थोड़ा रौब मारने लगा था चुन्नू। दादी बेचारी, बिना मां-बाप के बच्चे को अधिक गुस्सा न करती। कुछ-कुछ उसकी शैतानियों और बदतमीजियों को नजरअंदाज कर देती परन्तु दादी के नज़रअंदाज करने ने उसको अधिक तेज़ बना दिया।
चाचा ने चुन्नू को समझाने का प्रयास किया और अपना ध्यान पढ़ाई में लगाने के लिए कहा। चुन्नू को उसके अच्छे नम्बर लाने पर अच्छा-सा तोहफा देने का भी लालच दिया। चुन्नू पर इन बातों का असर न हुआ। वह अपनी मस्ती में रहा। परीक्षाएं पास आ गई, अभी भी उसको किसी प्रकार की चिन्ता न थी। रात को देर से आना और सुबह देर तक सोना उसकी दिनचर्या का एक हिस्सा था। परीक्षाएं हो गई। परिणाम निकलने का दिन भी आ गया। चाचा उन दिनों बीमार पड़ गए और छुट्टी पर घर पर रहे। परिणाम के बाद पता चला कि चुन्नू सफल नहीं हुआ है। चाचा अध्यापक से मिलने गए और चुन्नू की असफलता के बारे में बातचीत की। चाचा ने इस बारे में चुन्नू से अधिक बात नहीं की, न ही उसे डांटा या भाषण दिया।
चाचा और दादा चुप चुप रहने लगे। अब शनिवार को जब आते, चुन्नू पर अधिक ध्यान न देते, न ही उसके लिए अधिक उपहार लाते। चाचा ने एक काम अच्छा किया कि चुन्नू का नाम स्कूल से नहीं कटवाया। पुन: उसे उसी कक्षा में पढ़ने के लिए फीस जमा करवा दी।
दो-चार माह में चुन्नू को समझ आनी शुरू हो गई और उसने महसूस किया कि मेरे दादा, चाचा और दादी मेरे शुभचिन्तक हैं, मुझे उनके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। उनकी आशाओं को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए। अब उसने धीरे-धीरे गन्दे मित्रों का साथ कम कर दिया और अपना ध्यान पढ़ने और दादी की मदद में लगाना प्रारम्भ कर दिया।
कुछ ही माह बाद अध्यापक ने चाचा को बुलाया और उसका रिपोर्ट कार्ड चाचा को दिखाया। चाचा चुन्नू के इस परिवर्तन से बहुत प्रसन्न हुए। चाचा ने घर आकर उसे गले लगा लिया और खूब प्यार किया। चाचा ने कहा, ‘मुझे पूरी आशा थी कि चुन्नू तुम ज़रूर अच्छे बच्चे बनोगे। इसी आशा के सहारे पर मैंने तुम्हें असफल होने पर भी डांटा मारा नहीं था।’ इस प्रकार चाचा की समझदारी ने चुन्नू को अच्छे रास्ते पर लाने में मदद की। (उर्वशी)