बुमराह ने बुलंद की कप्तानी के लिए तेज़ गेंदबाज़ों की आवाज़

ओप्टस स्टेडियम, पर्थ में 22 वर्षीय हर्षित राणा ने जिस गेंद पर ट्रेविस हेड को बोल्ड किया, वह अविश्वसनीय डिलीवरी थी- कोण बनाती हुई अंदर की तरफ आयी, फिर सीधी हो गई और ऑ़फ-स्टंप को स्पर्श करती हुई निकल गई। अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे हर्षित का यह पहला टेस्ट विकेट था, इसके लिए उन्होंने जसप्रीत बुमराह की कप्तानी की प्रशंसा की, जो रोहित शर्मा की अनुपस्थिति में कप्तानी कर रहे थे। इसी टेस्ट में जब स्लिप्स में विराट कोहली ने एक आसान सा कैच छोड़ दिया तो बुमराह ने गुस्से का प्रदर्शन नहीं किया बल्कि अपना कूल अंदाज बनाये रखा, जबकि तेज़ गेंदबाज़ स्वभाव से आक्रमक होते हैं। बुमराह की इस कूलनेस की कमेंटेर्ट्स ने जमकर तारीफ की। गौरतलब है कि बुमराह ने हमेशा से ही कप्तान बनने की अपनी इच्छा को सार्वजनिक किया है, लेकिन विशेषज्ञ दो प्रमुख कारणों से उन्हें कप्तान बनाने के पक्ष में नहीं रहे। एक, तेज़ गेंदबाज़ स्वभाव से आक्रमक व गुस्सैल होते हैं, इसलिए कप्तानी की बागडोर उनके हाथ में देना खतरनाक व हानिकारक हो सकता है, जो टीम के हित में नहीं होगा। दूसरा यह कि तेज़ गेंदबाज़ कप्तान बनने के बाद खुद को मैच में ओवर-बॉल या फिर अंडर-बॉल कर सकता है और यह दोनों ही सूरतें टीम के लिए लाभकारी न होंगीं क्योंकि एक में उसके चोटिल होने का खतरा रहेगा और दूसरे में टीम को नुकसान होगा। 
गौरतलब है कि ये बातें उस समय भी उठी थीं, जब ऑस्ट्रेलिया ने तेज़ गेंदबाज़ पैट कम्मिंस को अपना कप्तान बनाया था, लेकिन उन्होंने इन धारणाओं को अपनी सफल कप्तानी से गलत साबित कर दिया है। बुमराह भी विशेषज्ञाें को गलत साबित करने के संकेत दे रहे हैं, इसलिए अनुमान यह है कि रोहित शर्मा के बाद वह ही भारतीय क्रिकेट टीम के नियमित कप्तान होंगे। यह सही है कि ये बातें सिर्फ तेज़ गेंदबाज़ों को कप्तान बनाने के सिलसिले में ही नहीं उठती हैं बल्कि हर प्रकार के गेंदबाज़ के संदर्भ में उठायी जाती हैं, इसलिए क्रिकेट के इतिहास में बहुत कम गेंदबाज़ ही कप्तान बनाये गये हैं, अधिकतर मामलों में बैटर्स को ही यह ज़िम्मेदारी दी गई है। अगर केवल भारत की ही बात करें तो इस धारणा को इसलिए भी बल मिलता, क्योंकि जब स्पिन गेंदबाज़ों जैसे बिशन सिंह बेदी व एस. वेंकटराघवन को कप्तानी सौंपी गई तो उनका प्रदर्शन औसत से भी नीचे रहा और भारत के सबसे सफल गेंदबाज़ अनिल कुंबले की कप्तानी गोकि सफल कही जा सकती है, लेकिन इस धारणा के चलते उन्हें बहुत जल्द कप्तानी से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया गया था। 
बहरहाल, अगर आलराउंडर्स को कप्तान के रूप में देखा जाये तो भारत के लिए कपिल देव (1983 विश्व कप विजेता), पाकिस्तान के लिए इमरान खान (1992 विश्व कप विजेता), वेस्टइंडीज के लिए गैरी सोबर्स और दक्षिण अफ्रीका के लिए शौन पोलक बहुत सफल कप्तान रहे हैं। लेकिन इंग्लैंड के इयान बोथम व न्यूज़ीलैंड के रिचर्ड हेडली, जो दोनों ही अति सफल व प्रभावी आल राउंडर्स रहे, कप्तान के तौर पर एकदम फ्लॉप रहे। बोथम जब असफलता के कारण कप्तानी से हटे तो उसी टीम को माइक बेयरली ने विजेता बना दिया। बांग्लादेश के आल राउंडर शाकिब-उल-हसन भी बतौर कप्तान असफल रहे। क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल हरफनमौला खिलाड़ी जैक कालिस को कभी दक्षिण अफ्रीका का कप्तान बनने का अवसर ही नहीं मिला।  
ऐसा नहीं है कि बैटर्स ही सफल कप्तान बनते हैं। अगर क्लाइव लोयड (वेस्टइंडीज), इयान चैपल, एलन बॉर्डर, स्टीव वा व रिकी पोंटिंग (ऑस्ट्रेलिया), मंसूर अली खान पटौदी, सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी व विराट कोहली (भारत), ग्रीम स्मिथ (दक्षिण अफ्रीका), मुश्ताक मुहम्मद (पाकिस्तान), अर्जुन रणतुंगा (श्रीलंका), मार्टिन क्रो (न्यूज़ीलैंड), जो रूट (इंग्लैंड) जैसे बैटर्स सफल कप्तान रहे तो बतौर कप्तान असफल बैटर्स की भी एक लम्बी सूची है, जिनमें सचिन तेंदुलकर (भारत), ब्रायन लारा (वेस्टइंडीज), जावेद मियांदाद (पाकिस्तान) जैसे दिग्गज शामिल हैं। दरअसल, एक कप्तान के रूप में सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि आप किस स्तर के बैटर, गेंदबाज़ या आल राउंडर हैं बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आपमें नेतृत्व क्षमता है या नहीं और साथ ही यह भी कि आपको टीम किस स्तर की मिली है। बॉब विल्स (इंग्लैंड) शुद्ध तेज़ गेंदबाज़ थे, लेकिन उन्होंने अच्छी व स्तरीय कप्तानी की। माइक बेयरली तो अच्छे बैटर भी नहीं थे और गेंदबाज़ी उन्हें आती नहीं थी, लेकिन एक कप्तान के तौर पर वह बहुत सफल रहे, अपने नेतृत्व कौशल व सटीक योजनाएं बनाने के कारण। 
हां, यह ज़रूरी है कि एक सफल कप्तान बनने के लिए अच्छी व संतुलित टीम का होना भी ज़रूरी है, लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर कप्तान बनाये गये खिलाड़ी में नेतृत्व कौशल नहीं है, तो वह अच्छी टीम का भी बेड़ा डुबो देता है और जिसमें लीडरशिप गुण होते हैं, वह टूटी कश्ती को भी अक्सर तूफान से निकाल ही लेता है। इसलिए बहस यह नहीं होनी चाहिए कि बुमराह चूंकि तेज़ गेंदबाज़ हैं, उन्हें कप्तानी की ज़िम्मेदारी नहीं देनी चाहिए बल्कि देखना यह है कि बुमराह में नेतृत्व गुण व कौशल हैं या नहीं। बुमराह को जब भी कप्तानी का अवसर मिला है, तो उन्होंने दिखाया है कि उनके कंधों पर एक कूल सिर है, वह टीम को साथ लेकर चलने और संकट के समय में उसे उबारने की भरपूर सलाहियत रखते हैं। इसलिए अनुमान यह है कि रोहित शर्मा के बाद भारत के कप्तान पद पर सबसे बड़ी दावेदारी जसप्रीत बुमराह की होगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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