पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश से घुसपैठ की बढ़ती कोशिशें

पिछले कुछ सप्ताह में बांग्लादेश से त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में अवैध रूप से भारत में घुसने के लिए लोगों के समूहों द्वारा किये गये प्रयासों में वृद्धि हुई है। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और विभिन्न राज्य पुलिस बलों ने घुसपैठ को रोकने के लिए यथासंभव सतर्कता बढ़ा दी है, खासकर बांग्लादेश में जारी हिंसा को देखते हुए। लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है, क्योंकि भारत के पूर्वी पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल ने लक्षित अल्पसंख्यक समुदायों के बड़े वर्गों में विस्थापन की आशंकाओं को बढ़ा दिया है।
मौसम ने भी इस काम को और मुश्किल बना दिया है। सर्दियों में कोहरे की वजह से अवैध तरीके से सीमा पार करने/आवागमन करने वाले अपराधियों को मदद मिल रही है, जिससे सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों/सैनिकों की परेशानी और बढ़ गयी है। सुरक्षाकर्मी इस समय बहुत तनाव में हैं, क्योंकि सैकड़ों लोग भारत में शरण मांग रहे हैं जबकि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भारत-बांग्लादेश सीमा की ओर जा रहे हैं।
इस तरह के सामूहिक पलायन के प्रयास आमतौर पर बांग्लादेश में सशस्त्र इस्लामी आतंकवादियों द्वारा हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ  किये गये हमलों के लम्बे दौर के बाद होते हैं। त्रिपुरा के सीमावर्ती क्षेत्रों से आने वाली रिपोर्टों के अनुसार अगरतला रेलवे स्टेशन और आस-पास के इलाकों से 110 से अधिक बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को गिरफ्तार किया गया है। उनमें से अधिकांश की नौकरी की तलाश में दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, मुम्बई और अन्य भारतीय शहरों में जाने की योजना थी।
पूर्वोत्तर की मीडिया में आई खबरों के अनुसार बीएसएफ, त्रिपुरा पुलिस और सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने बताया कि पिछले कई महीनों में गिरफ्तार किये गये बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 600 से अधिक हो गयी है। पकड़े गए रोहिंग्याओं की संख्या करीब 65 है। ये लोग चटगांव के नजदीक बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में स्थित शिविरों से भागे थे। अवैध विदेशियों को महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हासिल करने में मदद करने वाले करीब 30 भारतीयों को भी गिरफ्तार किया गया है। 
बांग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करने वाले त्रिपुरा और मेघालय में की गयी गिरफ्तारियों की जानकारी मीडिया के लिए प्राप्त करना आसान था, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा करना आसान नहीं था। पूर्वोत्तर राज्यों के विपरीत, पश्चिम बंगाल के अधिकारियों ने बांग्लादेशी या रोहिंग्या घुसपैठियों की गिरफ्तारी की संख्या के बारे में नियमित ब्रीफिंग नहीं की है, बल्कि उन्होंने कभी-कभार ही ऐसा किया जानकारी दी है। न ही पश्चिम बंगाल के पुलिस बलों द्वारा अवैध सीमा पार करने वाले तथा कानून तोड़ने वालों से लोगों की सुरक्षा के लिए उठाये गये कदमों के बारे में जानकारी दी है। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन पश्चिम बंगाल स्थित बीएसएफ अधिकारी भी राज्य के पुलिस बलों द्वारा स्थापित उदाहरण का अनुसरण कर रहे हैं, जो जनहित से जुड़े मामलों पर सोची-समझी चुप्पी बनाये रखते हैं।  चाहे जो भी कारण होए न तो पश्चिम बंगाल सरकार और न ही पश्चिम बंगाल स्थित बीएसएफ ने पारदर्शिता के मानदंडों का पालन किया है। लोकतंत्र में अधिकारियों का कर्त्तव्य है कि वे लोगों को उनके सामने आने वाले खतरों के बारे में जागरूक करें, खासकर कानून और व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा और रक्षा से संबंधित मामलों में। कुल 4100 किलोमीटर लम्बी भारत-बांगलादेश सीमा में से पश्चिम बंगाल-बांग्लादेश सीमा 2217 किलोमीटर लम्बी है, जिसमें से लगभग 1000 किलोमीटर की सीमा कठिन भू-भाग के कारण सीमांकित या बाड़ नहीं है। दोनों तरफ  नदी के किनारों पर भूमि कटाव की समस्या थी। साथ ही नदियों के बहाव में बदलाव और मौसमी रूप से नदी के द्वीपों (चार) का दिखाई देना/गायब होना भी था, जिससे बाड़ लगाना मुश्किल हो गया था। स्वाभाविक रूप से बीएसएफ  को यह काम असामान्य रूप से कठिन लगा और दोनों तरफ के तस्कर/अपराधी इसका पूरा फायदा उठा रहे थे।
इससे भी बदतर समस्या बीएसएफ और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच कभी न खत्म होने वाली सार्वजनिक झड़पों की है। बीएसएफ लम्बे समय से राज्य की जड़ता और बाड़ लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने में अनिच्छा की शिकायत कर रही थी, लेकिन राज्य सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। आम धारणा यह है कि टीएमसी अपने मुस्लिम वोट बैंक की रक्षा करना चाहती थी। परिणामस्वरूप 1000 किलोमीटर लम्बी सीमा कई सालों से अपेक्षाकृत असुरक्षित बनी हुई है जबकि घुसपैठ में काफी वृद्धि हुई है। (संवाद)

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