क्या यूजीसी की हैंडबुक से साइबर अपराध पर अंकुश लगेगा ?

इंटरनेट की दुनिया मे साइबर अपराध समाज के लिए कोढ़ बनता जा रहा है। इसकी रोकथाम के लिए यूजीसी की हैंडबुक कितनी कारगर साबित होगी यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन हैंड बुक की हिदायतों और जानकारियों को अमल में लाया जाएगा तो काफी हद तक साइबर ठगों से बचा जा सकता है। बहुत ही साधारण तरीके से उक्त हैंडबुक में साइबर अपराधों से बचने की जानकारी दी गई है। देश में बढ़ते साइबर खतरों के खिलाफ यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) द्वारा शुरू किये गये अभियान के महत्व को समझा जा सकता है। इसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों, छात्रों और दूसरे कर्मचारियों को शामिल किया गया है, साथ ही, साइबर खतरों से बचने के लिए उनके लिए एक हैंडबुक भी तैयार की गयी है। इस 126 पन्नों की  हैंड बुक में साइबर हमलों से बचने के लिए क्या करना है, क्या नहीं, इस बारे में विस्तार से समझाया गया है। जैसे, इंटरनेट के इस्तेमाल के दौरान किसी भी एप या वेबसाइट पर भरोसा न करना, मोबाइल या लैपटॉप का इस्तेमाल करते समय उसमें एंटी वायरस रखना, कोई भी एप या सॉफ्टवेयर अधिकृत स्टोर से जांच-परख के बाद ही खरीदना, अलग-अलग इंटरनेट अकाउंट के लिए अलग-अलग पासवर्ड रखना, और उन्हें बदलते रहना आदि। यही नही इसमें अपने व्यक्तिगत विवरण और वित्तीय लेन-देन के पिन को सोशल मीडिया या व्हाट्सएप पर साझा न करने, स्पैम ई-मेल या मित्रता के संदिग्ध अनुरोधों पर प्रतिक्रिया न देने और गुमनाम स्रोतों से आये संदेशों पर क्लिक न करने की सलाह दी गयी है।
हैंडबुक में दर्ज कुछ महत्वपूर्ण उपायों की चर्चा करे तो इसमें मुख्य रूप से सलाह दी गई है कि यूपीआई से भुगतान में कभी भी अपना पिन साझा न करें। भुगतान से पहले प्राप्तकर्ता की पहचान सत्यापित करें। नेट बैंकिंग फ्रॉड से बचने के लिए अंजान लिंक्स पर क्लिक न करें। बैंकिंग लेन-देन के लिए सार्वजनिक वाईफाई का प्रयोग न करें। ऐसी ऑनलाइन योजनाओं में निवेश न करें जो असामान्य रूप से उच्च रिटर्न का वादा करती हों। सोशल मीडिया पर अज्ञात लोगों की मित्रता उनके सत्यापन के बिना न करें। डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए धमकी भरे काल या ईमेल से न घबराएं और प्रतिक्रिया न दें। सोशल मीडिया हैकिंग से बचने के लिए जटिल और यूनिक पासवर्ड का प्रयोग करें। गेमिंग ऐप फ्राड से बचने के लिए केवल आधिकारिक एप स्टोर्स से ही गेम और एप्स डाउनलोड करें। डेटिंग एप पर सतर्क रहें और पासवर्ड या निजी तस्वीरें साझा न करें। इस हैंड बुक में साइबर सुरक्षा से जुड़े कानूनी पक्ष, देश में साइबर अपराध से जुड़े कानून और सज़ा के बारे में तो बताया ही गया है। साइबर हमले की स्थिति में संबंधित प्राधिकरण से शिकायत करने के लिए भी कहा गया है। दरअसल, साइबर हमलों का शिकार होने वालों में बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा से जुड़े छात्र-छात्राएं हैं, क्योंकि वे अपनी दैनिक गतिविधियों में एंड्रॉयड मोबाइल, कम्प्यूटर और लैपटॉप का अधिक इस्तेमाल करते हैं। चूंकि यह पीढ़ी साइबर मामलों में तुलनात्मक रूप से ज्यादा कुशल भी होती है। इसलिए विश्वविद्यालय परिसर में मिलने वाली जानकारियों को वे अपने परिजनों और परिचितों में साझा भी कर सकते हैं।
हैंड बुक में यह भी जानकारी दी गई है कि बाहर जाते समय ऑनलाइन पोस्ट शेयर करने से बचें, ताकि किसी को आपके बाहर होने की खबर न लगे। डार्क वेव के प्रति सजग रहें, बच्चे अगर ऑनलाइन पढ़ाई या गेम खेलते हैं पर निगरानी भी ज़रूरी है। अपने बायोमैट्रिक डेटा और आधार को कभी किसी को न बताएं और उसे डिजिटली लॉक रखें, दो चरण का लॉक लगाएं। वाइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल वाइप के ज़रिये अपने अपने ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हमें सुरक्षा प्रोटोकॉल रखें। किसी सार्वजनिक पावर चार्जिंग स्टेशन पर कभी मोबाइल चार्ज न करें, वहां हमेशा हैकिंग का खतरा बना रहता है। बैंक की ओर से खाते को लेकर कभी कोई डिटेल नहीं मांगी जाती है, आप जानकारी न दें। एटीएम पिन का पासवर्ड, ओटीपी समेत अन्य जानकारी भी किसी से शेयर न करें।  इंटरनेट पर किसी भी संदिग्ध लगने वाले लिक को क्लिक न करें। ऑनलाइन बुकिंग के दौरान प्रचलित मोबाइल एप का ही प्रयोग करें। 
आयोग के मुताबिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक कामकाज में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अधिक से अधिक निर्भरता के कारण ही साइबर सुरक्षा पर ध्यान देना इतना महत्वपूर्ण हो गया है। उसका यह भी मानना है कि इस अभियान में शामिल होकर छात्र, अध्यापक और कर्मचारी न सिर्फ  खुद को, बल्कि संस्थान और देश को सुरक्षित रखने में भी मदद कर सकते हैं। उसने इस संदर्भ में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के प्रमुखों को अपने यहां एक व्यवस्था बनाने के लिए भी कहा है. देश में साइबर अपराधों के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में यह अभियान बेहद उपयोगी साबित हो सकता है।

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