डा. मनमोहन सिंह की यादगार किस तरह की हो ?
वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर,
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं।
स्वर्गीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह पर विरोधी अक्सर यह आरोप लगाते रहे कि वह ़खामोश प्रधानमंत्री थे। वे उन्हें ‘मौनी बाबा’ तथा ‘मौनमोहन सिंह’ जैसे नाम भी देते रहे। परन्तु सच यह है कि वह प्रत्येक बात पर खुल कर बोले और जिस बात का जवाब ज़रूरी होता था, उसे देने से कभी नहीं झिझके। उन्होंने अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में कुल मिला कर 117 प्रैस कांफ्रैंसें कीं और प्रत्येक प्रैस कांफ्रैंस में पत्रकारों को छूट रही कि वे अनापेक्षित एवं कठिन सवाल पूछ सकते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी अंतिम प्रैस कांफ्रैंस में लगभग 90 पत्रकार उपस्थित थे और उनकी ओर से पूछे गए सभी 65 सवालों के जवाब भी दिये गए। हां, वह वाचाल (नकारात्मक रूप में अधिक बोलने वाले) नहीं थे। उपरोक्त शे’अर की भांति वह स्वयं की तारीफ नहीं करते थे, परन्तु उनके निधन के बाद उनकी प्रतिभा बोल रही है। यही कारण है कि विश्व के नेता उनकी तारीफ कर रहे हैं। उनके जीवन काल में उनका उपहास करने वाले भी अब उनका गुणगान करने के लिए मजबूर हैं। बिल्कुल उनके कहने की भांति इतिहास उनके प्रति दयालुता दिखाने लग पड़ा है।
यह अफसोस की बात है कि उनके निधन पर भी राजनीति हो रही है, परन्तु वे राजनीतिज्ञ ही किस बात के हुए जो राजनीति न करें? डा. मनमोहन सिंह एक गैर-राजनीतिक प्रधानमंत्री थे, परन्तु यह भी नहीं कि उन्हें राजनीति की समझ नहीं थी, अपितु वह विश्व तथा देश की राजनीति को अच्छी तरह समझते थे। उनका दूसरी बार प्रधानमंत्री बनना उनकी राजनीतिक समझ का ही परिणाम माना जा सकता है। विश्व की सबसे बड़ी सुपर पावर का राष्ट्रपति बराक ओबामा ऐसे ही यह नहीं कह सकता कि जब डा. मनमोहन सिंह बोलते हैं तो दुनिया सुनती है। उन्हें भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री होने का गौरव भी प्राप्त हुआ।
हां, अफसोस की बात यह है कि केन्द्र सरकार ने उनका अंतिम संस्कार राजघाट के बजाय आम लोगों के श्मशानघाट निगम बोध घाट पर करवाया। इससे भाजपा स्वयं भी बैक-फुट पर आ गई है, परन्तु जब तक भाजपा को अपनी इस गलती का एहसास हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी, परन्तु शायद इस नुकसान की पूर्ति के लिए ही पूरी सरकार ही डा. मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए निगम बोध घाट पर पहुंची थी। यह अलग बात है कि मौके पर मौजूद एक ही लाइव कैमरा जो शायद दूरदर्शन का था और जिससे लाइव टैलीकास्ट लेकर ही शेष सभी चैनलों को ब्राडकास्ट करना पड़ा, उसका फोकस डा. मनमोहन सिंह की मृत देह, उनके रिश्तेदारों, उनकी पार्टी के नेताओं के स्थान पर बार-बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपती मुर्मू, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा अन्य साथियों पर ही होता रहा, परन्तु इसके बावजूद जब विपक्ष सरकार पर हमलावर हुआ तो नुकसान की पूर्ति के लिए आम परम्परा के विपरीत देर रात को सरकार को घोषणा करनी पड़ी कि डा. मनमोहन सिंह की उचित यादगार बनाई जाएगी।
समझा जा रहा है कि शायद जो हुआ, अच्छा ही हुआ। अब डा. मनमोहन सिंह की यादगार उनके कद के अनुसार बनाना केन्द्र सरकार की मजबूरी बन गई है। नहीं तो यदि राजघाट पर अंतिम संस्कार की अनुमति दे दी जाती तो वहां एक चबूतरे जैसी समाधि बना कर और एक बगीचा बना कर ही काम चला दिया जाना था, परन्तु अब इस प्रकार नहीं निपटेगा। हमारी जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार ने डा. सिंह की यादगार बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसलिए पारिवारिक सदस्यों की सहमति ली जा रही है। पता चला है कि इस कार्य के लिए केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, दिल्ली में 3-4 स्थानों पर जिनमें स्मृति स्थल, किसान घाट तथा राजघाट शामिल हैं, जगह की पहचान कर रहा है। इसके लिए ट्रस्ट बनाने की तैयारियां भी हैं। संभावना है कि इसकी घोषणा डा. मनमोहन सिंह की अंतिम अरदास के अवसर या उससे पहले ही कर दी जाएगी।
किस तरह की हो डा. मनमोहन सिंह की यादगार
डा. मनमोहन सिंह के बारे में सोशल मीडिया पर एक शे’अर लोग बार-बार पोस्ट करके वायरल कर रहे हैं, जो उनकी श़िख्सयत पर चरितार्थ होता है :
ज़माना कर ना सका उस के कद का अंदाज़ा,
वो आसमान था पर सर झुका के चलता था।
इसलिए अलग-अलग लोग, नेता, विद्वान तथा राजनीतिज्ञ डा. मनमोहन सिंह की शान के मुताबिक यादगार बनाने के लिए अपनी-अपनी सलाह दे रहे हैं। जिस तरह का योगदान भारत की पटरी से उतर चुकी आर्थिकता को पटरी पर लाने में डा. मनमोहन सिंह का रहा है, वह उन्हें आधुनिक भारत की नई अर्थ-व्यवस्था की मज़बूत नींव रखने बाला सिद्ध करता है। यदि आज भारत विश्व की तीसरे दर्जे की सबसे बड़ी आर्थिकता बनने की ओर बढ़ रहा है, तो इसकी मज़बूत नींव डा. मनमोहन सिंह ने ही रखी थी। डा. मनमोहन सिंह ने भारत की आर्थिकता ही नहीं सुधारी, अपितु उन्होंने भ्रष्टाचार रोकने के लिए एक हथियार ‘सूचना का अधिकार’ भी दिया। यही हथियार उनकी अपनी सरकार को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया गया और मौजूदा सरकार इस हथियार को लगातार कमज़ोर कर रही दिखाई देती है। डा. मनमोहन सिंह ने ही अनाज सुरक्षा का अधिकार, भूमि अधिग्रहण करने का कानून, किसानों के ऋण माफ करना तथा परमाणु संधि जैसे बड़े-बड़े कार्य किये। मनरेगा भी उनकी देन थी। डा. मनमोहन सिंह भारतीयों के हाथों को काम करने के पैसे देने तथा उस पैसे से सस्ता अनाज उपलब्ध करवाने के समर्थक थे। यह नीति व्यक्ति के स्वाभिमान को नहीं गिराती। मुफ्त खाने वाले कौमों का स्वाभिमान धीरे-धीरे कमज़ोर होता जाता है।
गौरतलब है कि डा. मनमोहन सिंह प्राथमिक रूप में एक शिक्षा-दानी थे। इसलिए अच्छा हो यदि उनके कद के समान उनकी याद में दिल्ली में ‘डा. मनमोहन सिंह इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी आफ इक्नॉमिक्स एंड ट्रेड’ बनाई जाए और इस यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान इंस्टीच्यूट बनाया जाए जो भारत के विकास संबंधी डा. सिंह के विचारों को और आगे ले जा सके तथा भारत सरकार को विश्व स्तर पर आवश्यक आर्थिक नीतियों के बारे में अग्रणी परामर्श देने में समर्थ हो। भारत का विदेशी व्यापार घाटा 2023 में 67 बिलियन डालर था, जो भारतीय रुपये में 57 खरब रुपये से अधिक है। अत: इस सम्भावित यूनिवर्सिटी में उद्योग एवं व्यापार स्कूल तथा स्कूल आफ पब्लिक पालिसी जैसे अंतर्राष्ट्रीय विभाग होने चाहिएं। इसके साथ ही इस यूनिवर्सिटी में एक म्यूज़ियम (संग्रहालय) भी हो जिसमें डा. मनमोहन सिंह के कार्यों तथा जीवन की झलकियों संबंधी तस्वीरें भी हों। इसमें डा. मनमोहन सिंह के संबंध में अन्य जानकारी भी सम्भाल कर रखी जाए।
याद रखें, सब ने एक दिन जाना है। प्रसिद्ध लेखक रसूल हमज़ातोव का एक कथन है—
‘हमारा बीता हुआ कल, वर्तमान तथा भविष्य आपस में जुड़े होते हैं। यदि आप बीत चके पर पिस्तौल की गोली चलाएंगे तो भविष्य आपको तोप से उड़ाएगा।’ इसलिए मौजूदा सरकार के कर्णधारों को सलाह है कि वे डा. मनमोहन सिंह को उतना सम्मान अवश्य दें जितना वह अपने किये कार्यों के लिए भविष्य में चाहते हैं।
सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे की बात
हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल बादल की कार्यकारिणी अपने अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का इस्तीफा किसी समय भी स्वीकार कर सकती है। इसके लिए स्वयं सुखबीर सिंह बादल भी सहमत हैं, परन्तु झिझक तो श्री अकाल त़ख्त साहिब द्वारा नियुक्त की गई सात सदस्यीय समिति को कमान सौंपने में है। अकाली दल ने वरिष्ठ वकील कमल सहगल से श्री अकाल त़ख्त साहिब द्वारा दिये गये निर्देशों के बारे में कानूनी सलाह ली है, जो उन्होंने लगभग 12 पृष्ठों में दी है। अकाली नेता कहते हैं कि यदि इस प्रकार अकाली दल की बागडोर धार्मिक आदेशों के तहत बनाई समिति को सौंपी गई तो अकाली दल कानूनी तौर पर अपनी मान्यता गंवा लेगा। अकाली दल इसलिए अभी भी बीच का रास्ता ढूंढने के प्रयास कर रहा है, परन्तु इस बीच शिरोमणि कमेटी की अंतरंग कमेटी ने जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर लगे आरोपों की जांच के लिए बनाई कमेटी का कार्यकाल बढ़ा दिया है, जिससे सिख राजनीति में टकराव बढ़ रहा दिखाई देता है। हमारी जानकारी के अनुसार अब अकाली दल बादल ने कार्यकारी अध्यक्ष बलविन्दर सिंह भूंदड़ के नेतृत्व में आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है। अकाली दल अब पूरा ज़ोर मकर संक्रांति के अवसर पर ताकत प्रदर्शन पर लगाएगा। यह इसलिए भी ज़रूरी समझा जा रहा है कि मुक्तसर साहिब में ही मकर संक्रांति के अवसर पर टीम भाई अमृतपाल सिंह, भाई अमृतपाल सिंह के पिता बापू तरसेम सिंह तथा सांसद सरबजीत सिंह खालसा के नेतृत्व में नया अकाली दल बनाने की घोषणा करने जा रही है। हमारी जानकारी के अनुसार इस नए अकाली दल का अध्यक्ष जेल में बंद भाई अमृतपाल सिंह को तथा कार्यकारी अध्यक्ष उनके पिता बापू तरसेम सिंह को बनाया जाएगा जबकि भाई सरबजीत सिंह खालसा को एकमात्र वरिष्ठ उपाध्यक्ष या महासचिव बनाये जाने के आसार हैं। फिलहाल इस नये अकाली दल के लिए शिरोमणि अकाली दल ‘वारिस’, ‘वारिस पंजाब दे’ तथा ‘वारिस पंजाब दा’ तीन नाम सोचे गए बताए जाते हैं, परन्तु अभी भी नाम के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ, विचार-विमर्श जारी है।
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