कीड़े मकौड़ों का शिकार करने वाली तितली मछली

सामान्य रूप से, उड़ने वाली मछलियों को दो भागों में बांटा जा सकता है-समुद्र की उड़ने वाली मछलियां और ताजे पानी की उड़ने वाली मछलियां। ताजे पानी की अर्थात् नदियों, तालाबों और झीलों की उड़ने वाली मछलियों में तितली मछली प्रमुख है। तितली मछली उष्णकटिबंधी अफ्रीका के दक्षिणी भाग में पायी जाती है। इसकी खोज सन् 1876 में की गयी थी। तितली मछली का जीव वैज्ञानिक नाम है-पेन्टोडोन बछोलजी। यह बड़े-बड़े तालाबों, झीलों तथा नदियों के रूके हुए पानी में सतह के नीचे पाई जाती है। अफ्रीका में इसे अमेजन और नाइजर नदियों के बेसिन में बहुतायत से देखा जा सकता है। यह अपना अधिकांश समय जलीय पौधों के मध्य व्यतीत करती है। 
जीव वैज्ञानिकों के अनुसार तितली मछली उड़ नहीं सकती, लेकिन यह दो मीटर तक ऊंची छलांग लगा लेती है। कुछ समय पूर्व, पी.एच. ग्रनीवुड और के.एस. थामसन द्वारा तितली मछली के अध्ययन से संबंधित किये गए प्रयोग बड़े महत्त्व के माने जा रहे हैं। इन दोनों जीव वैज्ञानिकों ने तितली मछली को काटकर इसके आंतरिक अंगों का बड़ा ही सूक्ष्म और गहन अध्ययन किया तथा अनेक तथ्यों की खोज की। इन जीव वैज्ञानिकों के अनुसार तितली मछली की शारीरिक संरचना बड़ी अद्भुत थी तथा शारीरिक संरचना की दृष्टि से यह सभी मछलियों से अलग थी। तितली मछली के कंधों, छाती के मीनपंखों तथा इनसे संबद्ध मांसपेशियों की संरचना सर्वाधिक विचित्र थी। इस मछली की हड्डियां इतनी पतली थीं कि इसे काटते समय दोनों जीव वैज्ञानिकों को बड़ा सावधान रहना पड़ा। इसके कंधों के जोड़ चौड़े और चपटे थे तथा इनसे संबद्ध मांसपेशियां अत्यधिक विकसित थीं। छाती की मासपेशियां उड़ने वाले पक्षियों के समान थीं। तितली मछली के मीनपंखों की संरचना इस प्रकार थी कि वह सामान्य मछलियों के समान इन्हें मोड़कर अपने शरीर से नहीं चिपका सकती थी। इसके मीनपंख पक्षियों के पंखों की तरह ऊपर-नीचे गति कर सकते थे। इन दोनों जीव वैज्ञानिकों ने तितली मछली का गहन अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तितली मछली भले ही उड़ नहीं पाती, किन्तु इसकी शारीरिक संरचना इस प्रकार की है कि यह सरलता से उड़ सकती है।
तितली मछली एक छोटी मछली है। इसकी लंबाई 8 सेंटीमीटर से 12 सेंटीमीटर तक होती है। तितली मछली का शरीर नाव के आकार का होता है। तितली मछली का शरीर नाव के आकार का होता है। यह ऊपर से चपटी और नीचे से गोलाई लिये हुए होती है। इसका रंग धूसर हरे से लेकर कत्थई रूपहले तक होता है तथा इसकी पीठ एवं बगलों पर कत्थई अथवा गहरे हरें रंग के धब्बे और रेखाएं होती हैं। तितली मछली का मुंह बड़ा होता है और ऊपर की ओर उठा रहता है। इसके नथुने लंबे और ट्यूब के आकार के होते हैं। तितली मछली का प्रमुख भोजन नदियों, तालाबों और झीलों में पाए जाने वाले छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े हैं। इसके साथ ही यह पानी की सतह पर गिरने वाले कीड़े-मकोड़े भी खाती है। तितली मछली का समागम और प्रजनन बहुत रोचक होता है। यह एक ऐसी मछली है, जिसमें प्राय: भ्रामक समागम देखने को मिलता है, अर्थात् नर और मादा दोनों समागम कि स्थिति तो बना लेते हैं, किन्तु समागम नहीं करते। भ्रामक समागम के समय मादा तितली मछली की पीठ पर नर चढ़ जाता है और अपने छाती के मीनपंखों की फिनरेज द्वारा मादा को कसकर जकड़ लेता है। यह स्थिति कई-कई घंटों तक बनी रहती है, किन्तु इसके बाद भी प्राय: समागम नहीं होता। तितली मछली में आंतरिक समागम होता है, समागम के समय नर के पेट के मीनपंख के बीच की फिनरेज लंबी और ट्यूब जैसी हो जाती है। इसी से नर की पहचान होती है। दोनों समागम के समय अपने अपने शरीर को मोड़कर इस प्रकार की स्थिति बना लेते हैं कि इनके प्रजनन अंग एक दूसरे के सामने आ जाएं। 
तितली मछली के निषेचित अंडे बहुत हल्के होते हैं एवं मादा के शरीर से निकलते ही पानी की सतह पर आ जाते हैं तथा तैरते रहते हैं। इनसे बच्चे निकलने का समय पानी के तापक्रम पर निर्भर करता है। सामान्यतया इन अंडों के लिए 30 डिग्री सेल्सियस तापक्रम आदर्श होता है। आदर्श तापक्रम पर तीन दिन में अंडों के आवरण फट जाते हैं एवं इनसे तितली मछली के छोटे-छोटे बच्चे निकल आते हैं। तितली मछली के अंडों के समान ही इसके बच्चे भी पानी की सतह पर तैरते रहते हैं तथा ये जन्म लेते ही भोजन लेना आरंभ कर देते हैं। इनका प्रमुख भोजन स्प्रिंग टेल, ग्रीन फ्लाई जैसे अत्यंत छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े हैं। तितली मछली के बच्चे कुछ समय बाद बड़े हो जाते हैं और वयस्क तितली मछली के समान जीवन आरंभ कर देते हैं। तितली मछली मृतजीव अथवा मृतजीवों का मांस कभी नहीं खाती। यह जीवित कीड़े-मकोड़ों का शिकार करती है और उन्हें ही खाती है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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