बाल कहानी-बटुआ
एक दिन चिंपू खरगोश अपनी साइकिल से स्कूल जा रहा था उसके साथ उसके दोस्त रानू बंदर और सोनू भालू भी अपनी अपनी साइकिल पर थे।
तभी चिंपू की साइकिल की चेन उतर गई।
‘अरे, रूको रूको,’ वह बोला, ‘मुझे साइकिल की चेन चढ़ाने दो’ इतना कहकर वह साइकिल से नीचे उतर कर चेन चढ़ाने लगा।
‘यार चिंपू, तुम इस खटारा साइकिल को कब तक चलाओगे,’ रानू बंदर ने उसकी साइकिल की तरफ इशारा करके कहा, ‘तुम नई साइकिल क्यों नहीं खरीद लेते।’
‘रामू ठीक कहता है,’ सोनू भालू रानू की बात का समर्थन करता हुआ बोला, ‘तुम जल्दी से नई साइकिल खरीदो वरना हम लोग तुम्हारे साथ साइकिल से कहीं नहीं जाएंगे।’ रास्ते में 10 बार तुम्हारी साइकिल की चेन उतर जाएगी तो क्या हम बार-बार रूक कर तुम्हारा इंतजार करेंगे।
ंिचंपू साइकिल की चेन चढ़ाने के बाद हाथ पोंछता हुआ बोला, ‘यार, तुम लोग अच्छी भली साइकिल को खटारा क्यों बता रहे हो। हां, इसकी चेन बहुत पुरानी हो चुकी है। चेन नई खरीदकर आज लगाऊंगा। चेन के लिए पिताजी से पैसे आज मैंने ले लिये हैं।’
तीनों फिर अपनी-अपनी साइकिल पर बैठकर जल्दी-जल्दी स्कूल की तरफ चल दिए। अभी वे कुछ ही दूर गए होंगे कि उन्हें सड़क के बीचोबीच पेड़ का एक मोटा तना पड़ा दिखाई दिया।
सड़क के दोनों तरफ गहरा गड्डा था। साइकिल उधर से निकालना मुश्किल था, इसलिए तीनों दोस्त साइकिल से उतर कर उस तने को एक तरफ हटाने लगे।
तभी वहां लुटेरा रंगा सियार आ गया। उसके हाथ में एक बड़ा सा चाकू था। तीनों को तना हटाते देख कर हंसते हुआ बोला, लगा लो लगा लो, चाहे जितना जोर लगा लो। यह मोटा तना तुम लोगों से नहीं हटेगा।
तीनों ने पीछे मुड़ कर देखा तो उनके होश उड़ गए, ‘अरे, यह तो रंगा है’ तीनों उसे पहचानते थे। रंगा अक्सर स्कूल जाने वाले बच्चों को डरा धमका कर उनसे रूपए पैसे छीन लेता था।
‘तुम लोगों को रोकने के लिए ही तो मैंने इस तने को सड़क के बीच में लुढ़का दिया था- रंगा तीनों को चाकू दिखाता हुआ बोला, चलो, जल्दी से तीनों अपना-अपना बटुआ मेरे हवाले कर दो वरना तुम्हारी जान ले लूंगा।
चाकू देख कर तीनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। निहत्थे तीनों उस बदमाश से लड़ भी नहीं सकते थे और न ही जान बचाकर वहां से भाग सकते थे क्याेंकि तीनों की साइकिल रंगा के कब्ज़े में थीं।
कुछ सोचकर चिंपू ने रंगा से कहा, ‘देखो, हमारे पास पैसे नहीं हैं। हमें जाने दो।’
यह सुनकर रंगा गुस्से से बोला, ‘ऐसे कैसे जाने दूं। आज तुम लोगों को स्कूल में फीस जमा करानी है। तुम लोगों को घर से फीस के पैसे ज़रूर मिले होंगे। चलो, जल्दी से अपना-अपना बटुआ निकालो।
तीनों ने डर से अपना-अपना बटुआ निकाल कर रंगा को दे दिया।
रंगा ने तीनों का बटुआ खोलकर देखा। उसमें रूपए थे। तीनों बटुआ अपनी जेब में रखता हुआ रंगा बोला, ‘तुम लोग बहुत समझदार बच्चे हो। तुम लोगों को अपनी जान बहुत प्यारी है।
इतना कहकर वह वहां से जाने लगा तो तीनों उसे रोकते हुए बोले, ‘अरे भई, यह तना तो सड़क पर से हटाते जाओ। हमें स्कूल जाना है।’
रंगा ने जोर लगाया और एक ही झटके में तना वहां से एक तरफ हटा दिया। फिर अपना सीना चौड़ा करता हुआ बोला, ‘मेरी तरह ताकतवर बनो।
‘तुम सिर्फ ताकतवर ही नहीं बल्कि दयालु भी हो, तभी कुछ सोचता हुआ चिंपू बोला, तुमने दया करके इस तने को यहां से हटा दिया वरना हम स्कूल कैसे जा पाते?
अपनी प्रशंसा सुनकर रंगा फूलकर कुप्पा हो गया। उसने कहा, मैं बच्चों पर जुल्म नहीं करता। उन्हें मारता पीटता भी नहीं, बस, उन्हें धमका कर उनसे पैसे छीन लेता हूं।
‘सचमुच तुम बहुत अच्छे हो,’ चिंपू रंगा को मक्खन लगाता हुआ बोला, ‘रंगा भाई, क्या तुम हमारा बटुआ हमें वापस नहीं दे सकते?’
‘बड़े चालाक हो, मुझे मक्खन लगाकर तुम बेवकूफ बनाना चाहते हो। लूटा हुआ माल मैं कभी वापस नहीं करता।’
‘बटुआ से पैसे निकाल कर कम से कम हमारा बटुआ तो वापस कर दो चिंपू बोला। यह सुनकर रंगा कुछ सोचने लगा। फिर उसने अपनी जेब से बटुए निकाले और उसमें रखे पैसे निकाल कर तीनों को बटुआ वापस करता हुआ बोला, ‘लो, अपना बटुआ ले लो। इन बटुओं का मैं क्या करूंगा।’
रंगा के जाने के बाद रानू और सोनू ने चिंपू से कहा, ‘खाली बटुआ मांगकर तुमने कौन सा बुद्धिमानी का काम किया? अरे, बुद्धिमानी तो तब होती जब तुम पैसे भी वापस मांगते।’
चिंपू दोनों को समझाता हुआ बोला, हमारा बटुआ वह ज़रूर कहीं फेंक देता। इससे अच्छा मैंने मांग लिया। हमें दूसरा बटुआ खरीदना तो नहीं पड़ेगा।
अरे, यह बात तो हमने सोची ही नहीं। मान गए तुम्हारी बुद्धि को-दोनों एक साथ बोले।
तीनों अपना अपना बटुआ उलट पुलट कर देखने लगे। तभी चिंपू चौंकता हुआ बोला, ‘अरे, गलती से रंगा ने मुझे अपना बटुआ थमा दिया। देखूं जरा इसमें क्या है?’ यह कहकर वह रंगा का बटुआ खोलकर देखने लगा।
उस बटुए में (कुछ) रूपए और उसका पहचान पत्र तथा पता था।
स्कूल जाने के बजाए तीनों पुलिस स्टेशन चल दिए। पुलिस इंस्पेक्टर शेरसिंह को बटुआ सौंपते हुए तीनों ने उन्हें पूरी बात बताई।
‘बच्चों, इस बटुए के सहारे वह बदमाश ज़रूर पकड़ा जाएगा,’ शेरसिंह ने कहा, ‘तुम लोगों ने पुलिस को बटुआ दे कर बहुत बुद्धिमानी का काम किया है’ इतना कहकर उन्होंने उन तीनों की पीठ थपथपाईं।
अगले ही दिन रंगा को पुलिस ने दबोच लिया। (उर्वशी)