ऑस्ट्रेलिया की पहचान का प्रतीक है कोआला

कंगारू के बाद कोआला दूसरा ऐसा भालूनुमा जीव है, जिससे ऑस्ट्रेलिया की पहचान तय होती है। अपनी विशिष्ट थैलीधारी (मार्सुपियल) बनावट के कारण यह दुनिया के दुर्लभ स्तनपायों में से एक होता है। कंगारू की तरह ही मादा कोआला के शरीर में एक थैली होती है, जिसमें इसका बच्चा ‘जॉय’ जन्म के बाद कई महीनों तक पलता है। कोआला इसलिए इन दिनों चर्चा में है, क्योंकि पिछले पांच सालों से ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में बार-बार लगने वाली एक विनाशकारी जंगली आग, जिसे बुश फायर्स कहते हैं, उसके कारण इसके 60 से 70 प्रतिशत तक आवास जलकर खत्म हो गये हैं। इसलिए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर इनको तुरंत विशेष संरक्षण न दिया गया, तो दुनिया की यह दुर्लभतम जीव प्रजाति अगले कुछ दिनों में हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी। तीन साल पहले आधिकारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने भी अपने कंगारू के बाद इस दूसरे विशिष्ट जीव को संकटग्रस्त सूची में डाल दिया था। बावजूद इसके अभी तक इसके लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं किये गये।
ऑस्ट्रेलिया के जिन हिस्सों में कोआला के ऊपर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है वो हैं- क्वींसलैंड, न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलियन कैप्टिल टेरिटरी आदि। वैसे इन आग की घटनाओं के पहले ही इन सभी क्षेत्रों में 30 से 60 प्रतिशत तक कोआला की आबादी घट चुकी थी। जीव वैज्ञानिकों ने कई साल पहले ही ऑस्ट्रेलिया की सरकार को यह चेतावनी दी थी कि अगर इनके संरक्षण के गंभीर प्रयास नहीं किये गये, तो कुछ दशकों में ही ये जंगलों से लगभग गायब हो जाएंगे। हालांकि इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में कोआला अस्पताल, पुनर्वास केंद्र स्थापित किये गये। यूकेलिप्ट्स (सफेदा) वनों का पुनरोपण हुआ। इनको सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए ‘कोआला क्रॉसिंग’ जैसी संरचनाएं बनायी गईं तथा बीमारियों से उपचार के लिए विशिष्ट शोध केंद्र स्थापित किये गये ताकि कंगारू की तरह ऑस्ट्रेलिया की पहचान का प्रतीक जीव कोआला विलुप्त न हो। 
जहां तक कोआला के बारे में संक्षिप्त जानकारी का सवाल है तो यह एक शांत, बेहद धीमी गति से चलने वाला और भालू की तरह दिखने वाला मगर भालू न होकर यह एक बेहद प्यारा और अनोखा जीव है। कोआला की समूची ज़िंदगी यूकेलिप्ट्स यानी सफेदा के पेड़ों पर निर्भर होती है। पिछले कई महीनों से वन्यजीव मीडिया में कोआला इसलिए बेहद चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि हाल के सालों में बार-बार ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगने वाली विशेष आग बुश फायर्स के चलते बहुत बड़े पैमाने पर कोआला के प्राकृतिक आवास नष्ट हो गये हैं। साथ ही पिछले कुछ सालों से ये एक खास तरह की बीमारी से भी ग्रस्त हैं। जिस कारण दुनिया के जीव वैज्ञानिकों को यह चिंता है कि कहीं यह विशिष्ट वन्यजीव प्रजाति हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट न हो जाए। कोआला का वैज्ञानिक नाम- फास्कोलार्कटोस सिनेरियस है। ऑस्ट्रेलिया में वन्यजीव विशेषज्ञ बार-बार लोगों को यह बताया करते हैं कि यह भालू नहीं है लेकिन इसकी बनावट और यह दिखने में कुछ इस तरह है कि हर बार बताने के बावजूद लोग इन्हें कोआला बियर यानी कोआला भालू कहकर पुकारने से बाज नहीं आते। 
जहां तक कोआला कैसे दिखते हैं का सवाल है, तो इनका गोल सिर, बड़ी नाक, फूले हुए कान और कद लगभग 60 से 85 सेंटीमीटर का होता है। इनका वजन 4 से 15 किलो तक होता है, बिल्कुल धीरे-धीरे चलने वाला और पेड़ों पर रहने वाला यह विशेष जीव अपनी ऊर्जा बहुत कम खर्च करता है। इसके शरीर में एक मोटा फूलदार ग्रे रंग का फर होता है। कोआला लगभग पूरी ज़िंदगी यूकेलिप्ट्स की पत्तियों पर गुजारता है। क्योंकि यूकेलिप्ट्स के पत्तों में बहुत कम पोषक तत्व होते हैं। इसलिए कोआला का मेटाबॉलिज्म बहुत धीमा होता है। दिन में 18 से 20 घंटे तक सोना इसके लिए बहुत आम है। इनके आवास पूर्वी और दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के वनों में खासकर विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड में पाये जाते हैं। ये पेड़ों से बहुत कम उतरते हैं। ये पेड़ों में ही रहते हैं और उसी की पत्तियां खाते हैं तथा पेड़ों में ही सो जाते हैं। कोआला की संख्या इसलिए भी संकट में है, क्योंकि मादा कोआला सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है और इस बच्चे का आकार जन्म के समय एक जैली वीन के जितना होता है और अपने इस बच्चे को छह महीनों तक मां शरीर में मौजूद विशिष्ट थैली में रखती है। छह महीने मां की पीठ पर रहकर यह दुनिया को देखता है। 
हाल के सालों में कोआला के बड़े पैमाने पर आवास तो नष्ट ही हुए हैं यह ‘क्लैमाइडिया संक्रमण’ का भी शिकार हो चुका है, जिससे इसको अंधापन, प्रजनन और मूत्र संबंधी गंभीर समस्याएं होती हैं। ऐसे में बहुत से कोआला भूख, निर्जलीकरण और सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। यही कारण है कि इन दिनों ये विलुप्त होने की कगार पर हैं। कोआला ऑस्ट्रेलिया की पहचान तो स्थापित करता ही है, ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरणीय संतुलन में भी इसकी अहम भूमिका है। इन दिनों तो पर्यटन उद्योग में भी इसकी बड़ी भूमिका उभरकर आयी है। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया घूमने जाने वालों में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग कंगारू और कोआला को देखने की जिज्ञासा रखते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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