अकेला इन्सान

मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे हर कोई मुझसे कुछ कहना चाह रहा हो। नींद इतनी गहरी थी कि मुझे अपना-आप तक महसूस नहीं हो रहा था।
अचानक सोते-सोते मुझे एक झटका-सा लगा। मुझे लगा जैसे कोई मुझे उठा कर कहीं ले जा रहा है। नींद इतनी गहरी थी कि इतना सब होने के बावजूद भी मैं अपनी आंखें तक नहीं खोल पा रहा था। बहुत अजीब-सा लग रहा था। आहिस्ता-आहिस्ता मुझे अपने बदन पर अनजानी पकड़-सी महसूस होने लगी। मैं अपनी आंखें खोलने का प्रयास कर रहा था। थोड़े प्रयास के बाद मैंने अपनी आंखें मलते-मलते खोली। आंखों में मुझे कुछ चुभन-सी महसूस हुई। मेरे सामने खुला आसमान और आस-पास घने वृक्ष ही वृक्ष थे।
‘अरे! यह क्या?’ मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे उठा रखा है और कहीं ले जा रहे हैं।
मैंने करवट बदल कर देखना चाहा पर उठाने वाले की पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं हिलजुल भी नहीं पा रहा था। मैंने ज़ोर से गर्दन घूमा कर देखा कि मुझे कुछ जानवर सच में कहीं उठाकर ले जा रहे थे और पीछे-पीछे बहुत सारे पशु-पक्षी आ रहे थे जैसे किसी मुर्दे को श्मशानघाट ले जा रहे हों। पीछे चले आ रहे पशु-पक्षी आपस में हंस-हंस कर बातें कर रहे थे।
रे, कौन हो तुम और मुझे कहां ले जा रहे हो’? मैंने गुस्से  से घूरते हुए उनको पूछा।
‘तुम्हें दिखता नहीं हम कौन हैं’। एक भालू बोला। उसने हाथ में एक लट्ठ पकड़ रखा था। और भी दो-तीन भालू उसके पास खड़े थे। उन्होंने भी मुझे गुस्से से घूरा और मैं सहम गया। उन्होंने मुझे फिर से लकड़ी के तख्ते पर मृत व्यक्ति की तरह लेटा दिया और मुझे धीरे-धीरे एक ऐसे स्थान पर ले गए जहां बड़े-बड़े पत्थर और इर्द-गिर्द बड़े-बड़े वृक्ष ही वृक्ष थे शायद यह जंगल था। मैंने गौर से देखा सचमुच यह जंगल ही था।
‘इसे यहां ही खड़ा कर दो’ वहां पहले से ही उपस्थित एक वृद्ध लोमड़ ने कहा। उन्होंने मुझे खुले मैदान में खड़ा कर दिया। मेरे इर्द-गिर्द जंगल का हर जानवर खड़ा था और जंगल के सभी पक्षी पेड़ों की ढालों पर बैठे मुझे गुस्से से घूर रहे थे।
‘सभी पीछे हट कर अपना-अपना स्थान ग्रहण करें’ रीछ ने कहा। सभी जानवरों और पक्षियों के बीच मैं अकेला खड़ा अपने-आपको अपराधी की भांति महसूस कर रहा था। शायद सभी मेरे बारे में ही बातें कर रहे थे। मैं असमंजस में था कि मुझे यहां क्यों लाया गया है और मेरा अपराध क्या है? ‘ओह...! यह बात है.... ’ जब मैंने उन तीन बंदरों को अपनी बाईं ओर बैठे देखा। उन्होंने टोपियां अभी भी पहनी हुई थी। उनके पास और भी बंदर, कुत्ते और बिल्लियां बैठे हुए थे। इतने में सभी अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए जब एक बड़ी देह वाले शेर का उस सभा में आगमन हुआ। शेर के बैठने के उपरांत सभी अपने-अपने स्थान पर बैठ गए। लेकिन मैं सम्पूर्ण सभा में अकेला ही अपराधियों की भांति खड़ा था। 
‘हां भई, क्या समस्या है’? शेर के पास एक हाथी ने बैठते हुए पूछा।
‘इस आदमी ने हमें थप्पड़ मारे हैं’ तीनों बंदरों ने मेरी तरफ संकेत करते हुए कहा। ‘मैंने.....?’
‘हां, तुम्हारे साथ ही बात कर रहे हैं’ रीछ से गुस्से से कहा।
‘ये मेरे घर मेरी रजाई में सो रहे थे, इसलिए’
‘क्यों भाई?’ ‘नहीं सर, हम इसकी नहीं अपनी रजाई में सो रहे थे, हमें हमारी मां यहां सुला कर गई थी क्योंकि वो घर भी हमारा है और वो रजाई भी हमारी है’
‘नहीं सर, वो रजाई और घर दोनों मेरे हैं, ये झूठ बोल रहे हैं मान न मान मैं तेरा मेहमान’ मैंने गुस्से से कहा। 
‘नहीं सर, वह जगह हमारी थी लेकिन इस व्यक्ति ने उस जगह पर कब्जा कर लिया है और वहां लगे सभी वृक्ष काट कर इसने वहां अपना घर बना लिया है, परन्तु वहां की सम्प्रभुता तो ईश्वर ने हमें प्रदान की है’ उन बंदरों की मां ने बड़े विश्वास भरे अंदाज़ से आगे आकर कहा। ‘तुम कौन हो?’ रीछ ने पूछा।