कमज़ोर हो रही हैं देश में सत्ता-परिवर्तन की सम्भावनाएं 


सन् 2018 के अंतिम दौर में हुये विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता वाले तीन राज्यों में हुए सत्ता परिवर्तन के उपरान्त वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होने की उम्मीदें राजनीतिक धरातल पर की जाने लगीं, जिसकी आहट वर्तमान केन्द्र की भाजपा सरकार को अंदर से अंदर ही बौखलाहट पैदा कर दी। उसे भी आभास भी होने लगा कि विरोधी तेवर सन् 2019 के आम चुनाव में कहीं सत्ता से उसे दूर न कर दें । इसी कारण मोदी सरकार आमजन को अपने पक्ष में कर आम चुनाव में जनमत को हासिल करने के प्रयास में सक्रिय होती दिखाई दे रही है। इस क्रम में सवर्ण आरक्षण, वर्तमान जीएसटी, पेट्रोल, डीजल एवं गैस की दरों में कमी , किसानों को कर्ज माफी की योजनाएं लागू करने के राजनीतिक हथकंडे के साथ चुनाव से पूर्व तीन तलाक , राम मंदिर मुद््दे पर आमजन के समक्ष विपक्ष के नकरात्मक रवैये को उभारकर अपने पक्ष को सबल करने के राजनीतिक प्रयास की प्रक्रियाएं शुरू हो गई हैं।
प्रेस से अपने आपको सदा दूर रखने के आरोपों से घिरे प्रधानमंत्री मीडिया के माध्यम से आमजन को बताने के प्रयास में जुड़ते नजर आने लगे है कि वर्तमान केन्द्र की भाजपा सरकार विश्व स्तर पर देश की प्रतिष्ठा बनाये रखने में सक्षम  है एवं देश की हिफ ाजत भाजपा के नेतृत्व में ही संभव है। इस दिशा में वर्तमान केन्द्र सरकार सक्रिय होती नजर आ रही है जहां राफेल के मामले में विपक्षी कांग्रेस के लगाये आरोप को निराधार साबित करने में सुफ ल होती नजर आ रही है।
भाजपा के विपक्षी राजनीतिक दलों में सतही धरातल पर आपसी ताल मेल नहीं मिलने एवं मुख्य विपक्षी कांग्रेस के अन्दर युवा तेवर तथा पुराने नेताओं के बीच उभरती अनबन आगामी चुनाव में फि र से भाजपा को केन्द्र में वापसी के हालात बनाने की पृष्ठभूमि में सहायक सिद्ध होती नजर आ रही है। इस परिवेश में राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में विधानसभा चुनाव से पूर्व टिकट बंटवारे से लेकर, चुनाव उपरान्त दल नेता के चयन एवं मंत्री परिषद् के गठन एवं उनके विभाग बंटवारे को लेकर मुख्य विपक्षी कांग्रेस के भीतर उभरे असंतोष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस तरह के उभरते परिवेश के साथ - साथ सत्ता पक्ष के विपक्षी अन्य राजनीतिक दलों में सही गठबंधन न हो पाना भी आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को फि र से केन्द्र में सत्ता तक पहुंचाने में मददगार साबित हो सकता है।
वैसे वर्ष 2018 में अनेक प्रकार की राजनीतिक घटनाएं घटीं जिसमें प्रमुख रहा इस वर्ष का चुनावी माहौल जो विवादित बोल एवं सत्ता परिवर्तन के चलते चर्चाओं के केन्द्र बिन्दु में समाया रहा । इस दौरान हुये उप-चुनाव में विपक्षी गठबंधन के चलते भाजपा को कई जगहों पर करारी हार का सामना करना पड़ा । इस तरह के उभरते परिवेश के चलते वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के आसार उभर कर सामने आने लगे थे पर राजनीतिक क्षेत्र में विपक्षी दलों की एकात्मक भूमिका में पड़ती दरार से वर्ष 2019 के आम चुनाव में सत्ता परिवर्तन की उभरती संभावनाएं कमज़ोर होने लगी हैं।  सत्ता पक्ष भाजपा  के सामने खड़े राजनीतिक दलों में मुख्य रूप से सपा एवं बसपा जिनका आपसी गठबंधन तो आगामी चुनाव देखते हुए बनता नजर आ रहा है पर कांग्रेस से इस गठबंधन की दूरी आम चुनाव में पूर्ण-रूपेण लाभ दे पायेगी, कहना कठिन है। राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में विधानसभा चुनाव से पूर्व एवं उपरान्त नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में उभरे असंतोष का प्रतिकूल प्रभाव लोकसभा चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है। चुनाव उपरान्त इन राज्यों में गठित मंत्रिमंडल से कई वरिष्ठ चेहरों का ओझल होना कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में नुक्सान पहुंचा सकता है। 
इन तीनों कांग्रेस शासित राज्यों में मंत्रिमंडल गठन में आपसी तालमेल नहीं बैठ पाने के कारण कई जिलों से मंत्री नहीं बनाये जाने से उभरा असंतोष भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में नुक्सान पहुंचा सकता है। वैसे कांग्रेस अपने भीतर उभरे भूचाल को नजरअंदाज कर रही है जो उसके लिये घातक साबित हो सकती है। सत्ता पक्ष भाजपा के अनेक विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस से तालमेल के पक्ष में नहीं हैं जिससे वोटों के ध्रुवीकरण का हो पाना संभव नहीं है जिसका लाभ सत्ता पक्ष भाजपा को मिलना स्वाभाविक है। 
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में सत्ता परिवर्तन तो अवश्य हुआ पर इन राज्यों में जीत हार का अन्तर अधिकांश जगहों पर कम होने के कारण भाजपा को केन्द्र की सत्ता से हटा पाना इतना आसान नहीं जहां आज भी देश के युवाओं में नेतृत्व के मामलें में भाजपा नेतृत्व अन्य दलों की अपेक्षा सशक्त दिखाई दे रहा है। चुनाव में नोटा भी सत्ता पक्ष भाजपा की हार का प्रमुख कारण रहा जहां सत्ता पक्ष भाजपा के सत्ता से नराज समर्थक ही नोटा का बटन दबा गये । जहां वर्ष 2014 के आम चुनाव बाद 18 राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां 11 राज्यों में भाजपा को सफ लता मिली थी वहीं वर्ष 2018 में उसके हाथ से चार मुख्य भाजपा शासित राज्य कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ उसके हाथ से निकल गये। यहीं नहीं इस दौरान हुए उप-चुनावों में भाजपा को करारी हार मिली जहां सपा एवं बसपा के हुये गठबंधन ने सदियों से भाजपा के हक में चली आ रही गोरखपुर की सीट तो छीनी ही साथ ही साथ उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री वाली सीट पर भी कब्जा जमा लिया । इस तरह के हालात को देखते हुए  इस दिशा में जो बात उभरकर सामने आ रही थी जहां आगामी लोकसभा चुनाव में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के आसार बनते नजर आने लगे वहीं सत्ता पक्ष के विरोधी पक्ष में आपसी तालमेल नहीं बन पाने एवं कांग्रेस के अन्दर उभरे असंतोष से सत्ता परिवर्तन की उभरती संभावनाएं कमज़ोर होती दिखाई दे रही हैं। (संवाद)