मर्यादा-पुरुषोत्तम ही नहीं, राष्ट्र-निर्माता भी थे श्री राम


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारत के आद्योपांत नायक हैं। न भूतो न भविष्यति। हालांकि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम ही कहा जाता है मगर सही मायनों में वह लीला पुरुषोत्तम भी हैं। श्री राम का समूचा व्यक्तित्व नायकत्व से परिपूर्ण है। वह ऐसे कालजयी नायक हैं कि युग बदलते रहेंगे मगर उनकी श्रेष्ठता बरकरार रहेगी। जैसा कि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है, ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहु बिधि बहु संता।’ सो वाकई राम की अनंत कथाएं हैं। उनको लेकर सैकड़ों-हजारों नहीं, लाखों-करोड़ों कहानियां हैं।
पूरे हिंदुस्तान के नायक
भले दक्षिण भारत में राजनीतिक मजबूरियों के चलते द्रविड़ राजनेता (दुरई स्वामी से लेकर एम करुणानिधि तक) उन्हें नॉर्थ की सुपरमेसी स्थापित करने वाला करार देते हों मगर माइथोलॉजिकल परिदृश्य में नज़र उठाकर देखें तो राम समूचे भारत के अलग अलग हिस्सों में बिल्कुल अलग अलग नजर आते हैं। वहीं के, बिल्कुल स्थानीय। हिंदुस्तान का कोई ऐसा कोना नहीं है, हिंदुस्तान की कोई ऐसी जुबान नहीं है, हिंदुस्तान की कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसमें राम के नानावतारों का वर्णन न किया गया हो। 
नाना पुराण निगमागम...
भारत की किसी भी भाषा के साहित्य में सर्वाधिक अजर-अमर कथाएं सिर्फ  और सिर्फ  राम की हैं। संस्कृत में रामायण और रघुवंशम, हिंदी में रामचरित मानस, तमिल में कंबन की रामकथा, असमी में शंकरदेव की रामकथा और संस्कृत में ही जयदेव की उत्तर राम कथा। ये सबके सब कालजयी ग्रंथ सिर्फ  और सिर्फ  इसी वजह से हैं क्योंकि इनमें राम कथा का वर्णन है। दुनिया के दूसरे महापुरुषों के साथ यह बात लागू नहीं होती है। उनके जीवन की कथा एक ही होती है। वे एक ही जगह पैदा हुए होते हैं और उनकी ज़िंदगी की तमाम कहानियां चाहे जिस भाषा में लिखी जाएं, वे सब एक ही होती हैं। लेकिन रामकथा और भगवान राम के साथ ऐसा नहीं है। भारत के अलग-अलग प्रांतों, क्षेत्रों, उपक्षेत्रों में राम की अनंत कहानियां, राम के जन्म की अनंत कथाएं, बिल्कुल अलग अलग हैं। 
अंतर्राष्ट्रीय किरदार
अगर राम को उनकी अंतर्राष्ट्रीय विराटता की नजर से देखें तो और आश्चर्य होता है। थाईलैंड का राज परिवार अपने को राम के वंशज मानता है लेकिन यह नहीं मानते कि वह राम, जिनके वो वंशज हैं, अयोध्या में पैदा हुए थे। थाईलैंड में मान्यता है कि राम बुद्ध के अवतार थे और वह थाईलैंड में ही पैदा हुए थे। सिर्फ  राम ही नहीं, रावण, सीता, लक्ष्मण यानी संपूर्ण रामायण का अपना थाई विस्तार मौजूद है।
जावा, बाली, सुमात्रा, श्याम, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, श्रीलंका, फिलीपींस यहां तक कि लैटिन अमरीका में पेरू, उत्तरी अमरीका महाद्वीप में गुयाना, हिंद महासागर में मॉरीशस, आस्ट्रेलिया महाद्वीप में फिजी अर्थात् जहां-जहां भी राम की कथाओं का विस्तृत फलक है, वहां हर जगह राम के संदर्भ में यह उदारता लोगों ने हासिल की है कि उनके लिए राम अपने समाज, जनजीवन और अपनी चेतना से पैदा हुए राम हैं। उन्हें जरूरत नहीं है कि वह राम के लिए अयोध्या या भारत के मोहताज रहें। शायद राम के इसी विश्वव्यापी प्रभाव, मान्यता, मर्यादा सबके पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर कभी किसी ने एकछत्र कब्जा नहीं किया। बाली द्वीप के राम कंद-मूल नहीं, खजूर खाते हैं। वहां हनुमान बेर खाकर रावण के महल में गुठली नहीं फेंकते बल्कि नारियल तोड़कर उसका पानी पीते हैं और बचा नारियल फेंक देते हैं। 
पहले राष्ट्र निर्माता 
श्री राम महज मर्यादा पुरुषोत्तम ही नहीं थे बल्कि वह भारत के पहले  सर्वस्वीकृत नायक और अनूठे राष्ट्र निर्माता भी थे। कभी आपने सोचा कि राम वनवास दिये जाने के बाद रमणीक हिमालय की तरफ  क्यों नहीं गये? उन्होंने घनघोर जंगलों, बीहड़ों को वनवास के लिए क्यों चुना जिन्हें अरण्य और दंडकारण्य कहते हैं जहां उस काल में सूरज की किरणें तक नहीं प्रवेश कर पाती थीं, जहां उस काल में हर पल अस्तित्व के लिए संघर्ष था? वास्तव में इस चयन के पीछे ज़बरदस्त विचार और नायकत्व बोध छिपा है। अगर राम वनवास काटने हिमालय की किसी कंदरा में चले जाते तो भारतवर्ष का निर्माण कैसे होता? आर्य संस्कृति का विस्तार कैसे होता? हिंदू सनातन धर्म प्रतिष्ठित कैसे होता? राम ने इसीलिए वनवास के लिए उन बीहड़ों को चुना जहां मूल्यों और मान्यताओं, सदाचार और संस्कृति का अभाव था, जहां आदमीयता और मानवीयता का अभाव था। वह इन्हीं क्षेत्रों को समृद्ध करने गये थे। वह महान शासक थे, महान धर्मज्ञ और नीतिज्ञ भी थे। राम की क्रांतिकारिता का भी कोई मुकाबला नहीं है। उन्होंने रावण की लंका जीती लेकिन उसे अपने अधीन नहीं किया। वहां की गद्दी पर विभीषण को बिठाया और उनसे बराबरी के रिश्ते, मित्रता के रिश्ते बनाये।  
(इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर)